अधिकार – डाॅ संजु झा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi :..बाजार में रंग-बिरंगी राखियाँ देखकर ऊषा को आभास हो गया कि सावन का महीना आ चुका है।पूरी खरीददारी कर चुकने के बाद  हर वर्ष की भाँति ऊषा के  कदम राखी की दुकान पर थम गए। उसने बिना भोल-भाव किए एक खूबसूरत-सी राखी ले ली और घर वापस आ गई। 

शाम हो चली थी।दूर गगन में परिंदे अपने घोंसलों में लौट रहे थे।पेड़ों की सब्ज आकृतियाँ धीरे-धीरे स्याही में बदलने लगी थी।उसके घर में खामोशी पसरी थी।पति अभी तक दफ्तर से नहीं लौटे थे,बच्चे भी खेलने गए थे।वह उठकर  बेमन से बाजार से लाए हुए सामान समेटने लगी।तभी आज खरीदी हुई राखी उसके हाथ में आ गई। भींगे हुए नयनों से वह हाथ में राखी लेकर अतीत की यादों में गुम हो गई। 

बचपन से ही ऊषा को राखी बाँधने का बहुत चाव था।राखी दिन वह बड़े अधिकार से अपने बड़े भाई  रजत से अपनी माँग रखते हुए कहती -” भैया!इस बार मुझे अपने साथ फिल्म दिखाने ले चलना या मुझे नई डिजाइन की ड्रेस दिलवा देना!”

बगल में खड़े उसके मम्मी-पापा उसकी बातें सुनकर मुस्कराते रहतें।रजत के कुछ बोलने से पहले ही कह उठते -” हाँ!हाँ! तुम्हारी सारी माँगे जरुर पूरी करेगा।”

 यह सुनकर उसका भाई  रजत कह उठता -” पापा!मैं तो अभी पढ़ ही रहा हूँ।मैं कहाँ से इसकी माँगे पूरी करुँगा?”

जबाव में उसके पापा कहते -” बेटा!अभी तो मैं ही तुम्हारी बहन की माँगे पूरी करुँगा।बाद में जब बड़े होकर तुम कमाने लगोगे ,तो अपनी बहन की माँगे पूरी कर देना और उसके अधिकार अवश्य दे देना।”

रजत जबाव में सिर हिला देता।

वक्त तेजी से करवटें बदलने लगा।दोनों भाई-बहन बड़े हो चुके थे।ऊषा की पढ़ाई अभी अधूरी ही थी कि उसकी शादी हो गई। ऊषा एम.ए फाइनल में थी और उसके पति दिल्ली विश्वविद्यालय से पी-एच .डी कर रहे थे।सबकुछ अच्छा चल रहा था।अकस्मात एक दुर्घटना में उसके माता-पिता का निधन हो गया।पिता सरकारी डाॅक्टर थे,इस कारण अनुकंपा के आधार पर उसके भाई को नौकरी मिल गई। अचानक  से मायके में भाई-भाभी का राज कायम हो गया। कल तक जो भाई-भाभी उसे प्यार-दुलार से रखते थे, वही माता -पिता की मौत के बाद  उसकी उपेक्षा करने लगें।

एम.ए की परीक्षा देकर ऊषा पति के साथ दिल्ली आ गई। पति की  पी-एच.डी अभी पूरी नहीं हुई  थी,इस कारण  पति-पत्नी ट्यूशन कर घर चलाने लगें।इस बीच ऊषा एक बेटी की माँ भी बन गई। बचपन से ऊषा ने कभी आर्थिक तंगी महसूस  नहीं की थी।अब दिल्ली जैसे शहर में उसका गुजारा करना मुश्किल हो रहा था।

कुछ दिनों के लिए ऊषा बेटी को लेकर मायके  आ गई। लाख हिम्मत करने पर भी वह अपना दुख-दर्द भाई-भाभी से नहीं कह पाई।एक दिन  मामी से मिलने पर उसने अपना दुख-दर्द बयां करते हुए कहा-“मामी!  आप भैया से  बोलो कि पापा के मिले हुए पैसों में से मुझे कुछ दे दे।जबतक मेरे पति को नौकरी नहीं मिल जाती है,तबतक कुछ आर्थिक सहारा हो जाएगा।”

उसकी मामी ने उसकी दिक्कतों को महसूस करते हुए कहा-“ऊषा!मैं जरूर रजत से इस बारे में बात करुँगी।पिता की सम्पत्ति पर तुम्हारा भी अधिकार है!”

ऊषा-“मामी! मैं सम्पत्ति में हिस्सा नहीं माँग रही हूँ।बस कुछ दिनों के लिए आर्थिक सहारा ही।”

उसकी मामी ने कहा -“ऊषा!ठीक है।मैं बस कुछ पैसों की ही बात करूँगी।”

जब ऊषा की मामी ने रजत से ऊषा की परेशानियों के बारे में बताया,तो रजत ने गुस्सा होते हुए कहा-” मामी!आज आपने बिना सोचे-समझे ऊषा का पक्ष ले लिया।आइन्दा ऐसा नहीं होना चाहिए। पापा ने उसकी शादी में जो लेना-देना था,वो कर दिया।अब उसका यहाँ कुछ नहीं है।”

ऊषा की मामी -” रजत!ये मत भूलो कि पिता की सम्पत्ति पर बेटियों का भी अधिकार है।”

रजत-“मामी!ऊषा को अगर पिता की सम्पत्ति का इतना ही लोभ है,तो अपने अधिकार के लिए कोर्ट जाएँ।मैं उसे एक पैसे भी नहीं दूँगा।”

भाई की बातों से ऊषा का मर्मस्थल बेधित हो चुका था।अपमान का दंश उसके अंतस् में शूल की भाँति चुभ चुका था।व्यथित मन के साथ वह पति के पास दिल्ली लौट आई। उसकी जिन्दगी के चार-पाँच बर्ष बहुत कठिनाई से बीते।इस बीच उसके भाई ने एक बार भी उसकी सुधि नहीं ली,परन्तु वह हर वर्ष अवश्य भाई  के लिए  एक राखी खरीदकर आलमारी में रख लेती।जब तब उन राखियों को हाथ में लेकर भाई के प्यार को महसूस करती और उसकी आँखों से अश्रुधारा बह निकलती।

समय सदैव एक सा नहीं रहता।कुछ समय बाद ऊषा के पति को काॅलेज में नौकरी लग गई। ऊषा भी कोचिंग में पढ़ाने लगी।उसकी आर्थिक तंगी तो दूर हो गई, परन्तु भाई के प्यार से वंचित उसका दिल का कोना सूना ही रह गया।हर वर्ष राखी पर उसके दिल की टीस रिसने लगती है।ऊषा मन-ही-मन सोचती है कि उसने भाई से क्या माँगी थी,बस थोड़े दिनों की आर्थिक मदद ही न!क्या पिता की संपत्ति पर इतना भी उसका अधिकार न था!

कानून ने तो माता-पिता की संपत्ति पर बेटा-बेटी का बराबर का अधिकार दे दिया है,परन्तु कितनी बेटियाँ अपने अधिकार के लिए  कोर्ट जाती हैं?बेटियाँ तो हर पल अपने मायके की खुशहाली की दुआ करती हैं,परन्तु मुसीबत के क्षणों में मायके में उम्मीदभरी नजरों से देखने से ही तिरस्कृत हो जाती हैं।यह कटू सत्य है कि अगर बेटियाँ मायके में अपना अधिकार माँगती हैं,तो उन्हें जिन्दगीभर बेगानेपन का दंश झेलना पड़ता है।बेटियों को मायके में अपने अधिकार माँगने पर मायके की दहलीज अचानक  से इतनी संकुचित हो जाती है कि उसमें अधिकार और प्यार  दोनों एक साथ नहीं समा पाते।

ऊषा उठकर  राखी को पिछली अन्य राखियों के साथ रखकर चूम लेती है और भगवान से भाई की लम्बी उम्र का आशीष माँगती है।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅ संजु झा(स्वरचित)

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