नजर का टीका – बालेश्वर गुप्ता : Short Stories in Hindi

Short Stories in Hindi :   तुम्हे कुछ होश भी है, कुछ भी कहे जा रहे हो।पढ़ लिख लिये हो,नौकरी करते हो इसका मतलब यह तो नही,खानदान की इज्जत को तार तार करोगे।क्यूँ अपने ही खानदान को दागदार करने पर तुले हो?देखो राजीव मैं तुम्हे किसी विधवा से शादी करने की इजाजत नही दे सकता।अधिक आदर्शवादी बनने की कोशिश मत करो।

       पर बाबूजी,मेरी पूरी बात तो सुन लो,एकदम निर्णय मत दो बाबूजी।

     खूब सुन लिया और खूब समझ भी लिया,तुम मेरे एकलौते बेटे हो,तुम पर मेरा भी हक़ है,मैं किसी भी कीमत पर तुम्हे विधवा लड़की से शादी नही करने दूंगा, बस यही मेरा आखिरी फैसला है।

       रमेश जी पुराने जमीदार थे उनका एक ही बेटा राजीव था जो एक प्रतिष्ठित कंपनी में मैनेजर था।अभी अविवाहित था। एक कुशाग्र बुद्धिशाली,आत्मविश्वासी और खुले,सुलझे विचारों का व्यक्तित्व का स्वामी राजीव अपनी कंपनी में भी सभी के लिये सहयोगी भी था और लोकप्रिय भी।

राजीव और संदीप एक दूसरे के कॉलेज के समय के घनिष्ठ मित्र थे।संदीप की शादी छः माह पूर्व ही मानसी से हुई थी।

सुन्दर तो थी ही मानसी साथ ही एक इंटर कॉलेज में अध्यापिका भी थी।संदीप एक संयुक्त परिवार में रहता था।संदीप की माँ और  बड़ा भाई अशोक भी अपनी पत्नी और अपने एक बच्चे के साथ ही इस परिवार के अंग थे जिसमें मानसी भी जुड़ गयी थी।

     सप्ताह में एक बार राजीव का संदीप के घर अवश्य ही होता था।एक दूसरे के दुख सुख को दोनो एक दूसरे से साझा कर लेते थे।

मानसी भी बिना संदीप के कहे समझ गयी थी कि राजीव संदीप का गहन मित्र है और पूर्णतया शालीन है।मानसी इसी कारण राजीव को पूरा सम्मान देती थी।

     एक बार राजीव ,संदीप ,मानसी,अशोक और उसकी पत्नी सब मिलकर अपने नगर के बाहर नदी के किनारे पिकनिक मनाने गये।घर से नाश्ता खाना सब लेकर गये थे। सब मस्ती में थे,खूब खेले पसीना पसीना हो गये तो नदी में नहाने का मूड बन गया।

दोनो महिलाओं ने नहाने से मना कर दिया।राजीव,संदीप और अशोक नदी में नहाने उत्तर गये।तीनो खूब एक दूसरे पर पानी डालते खिलंदड़ी करते रहे।

इसी बीच संदीप कुछ आगे चला गया,शायद वहां कोई गढ्ढा था,वहां पैर पड़ते ही उसका संतुलन भी बिगड़ गया और संदीप उस गहरे पानी मे समा गया।देखते देखते सब कुछ समाप्त हो गया,कोई कुछ नही कर पाया।

गोताखोरों को संदीप का शव भी अगले दिन मिल पाया।एक खुशहाल परिवार गम के सागर में डूब चुका था।मात्र छः माह का विवाहित संदीप दुनिया छोड़ चुका था और उसकी पत्नी मानसी का तो सब कुछ ही उजड़ गया था।

      मानसी ने अपनी ससुराल में ही रहने का निर्णय लिया।आत्मनिर्भर थी ही,सो अपनी दिनचर्या उसी अनुरूप बना ली।संदीप की माँ ने कई बार मानसी को समझाने का प्रयास किया कि बेटी जिंदगी पहाड़ बन जायेगी, अभी तूने देखा ही क्या है,दूसरी शादी कर ले।

इतना सुनते ही मानसी की आंखों में आंसू तैर जाते,धीरे से बोलती,मां उन्होंने ने तो बिसरा दिया,मैं कैसे उन्हें भूल जाऊं?माँ अचकचा कर मानसी को चिपटा खुद भी बेटे की याद में रोने लगती।

    दुनिया बात ना बनाने लगे राजीव ने संदीप के घर जाना अब बहुत ही कम कर दिया था।एक रात को राजीव को फ्लैट के दरवाजे को खटखटाने की आवाज सुनी,घंटी न बजाकर  दरवाजे को खटखटाना आने वाले की व्यग्रता को दर्शा रहा था।

राजीव को अपनी नींद खराब हो जाने पर कुछ झुंझल तो आयी,फिर भी उसने दरवाजा खोला तो वो अवाक रह गया,सामने बदहवास सी पसीने से तरबतर मानसी खड़ी थी।राजीव ने दरवाजा खुला रखा और मानसी को अंदर बुला लिया।

किचन से पानी लाकर मानसी को पिलाया।कुछ देर बाद जब मानसी स्थिर चित हो गयी तब राजीव ने मानसी की ओर देखा।

          रोते रोते मानसी ने बताया कि संदीप के गुजर जाने के बाद उसके जेठ यानि संदीप के बडे भाई अशोक की नीयत ही खराब हो गयी।गाहे बगाहे उसे छूना उसका क्रम बन गया।

एक दिन हिम्मत करके मैंने कहा भी कि भाईसाहब आप विवाहित भी है, एक बच्चे के पिता है,क्या आपको यह शोभा देता है।

क्यों आप अपनी गृहस्थी और मेरी जिंदगी में आग लगाना चाहते हैं, मैं तो आपकी छोटी बहन जैसी हूँ।पर अशोक पर कोई असर नही पड़ा बल्कि वो और अधिक ब्लंट हो गया।

   मानसी कहे जा रही थी,माँ से बताया तो माँ बोली बेटी बूढ़ी जरूर हो गयी हूँ, पर मर्द की निगाहें तो पहचानती हूँ, मां बोली बेटी वो अंधा हो गया है, मैंने उसे इशारे से मां बेटे का पर्दा रखते हुए कहा है कि अशोक तुझे नरक में भी जगह नही मिलेगी,समझ जा।पर बोला मां तुझे बहम है।माँ ने कहा कि मैं उसकी पत्नी से सब बाते कहूंगी तू चिंता न कर।

       सुनकर लगा कि अब अशोक सुधर जायेगा।पर पर आज माँ जैसे ही पड़ौस में गयी तो अशोक मुझे अपनी बाहों में जकड़ जबर्दस्ती करने लगा,मैं किसी प्रकार अशोक से अपने को छुड़ा कर दरवाजा खोल बाहर की तरफ भागी तो माँ भी आ गयी,

माँ सब कुछ समझ गयीं थी,बोली मानसी तू अभी यह घर छोड़ दे ये वहसी तुझे इज्जत के साथ नही रहने देगा,बेटी जा तू भाग जा,राजीव शायद तेरी मदद कर दे।मुझे माफ़ कर देना बेटी।

       राजीव पूरी बात समझ चुका था,उसने मानसी को अपने जानने वाले होटल में कमरा लेकर उसमें मानसी को ठहरा दिया और उसे दिलासा दी कि वह बिल्कुल भी चिंता न करे।अपने फ्लैट पर वापस आ राजीव को नींद आने का तो प्रश्न ही नही था।

समस्या का समाधान उसे ही खोजना था।वो जानता था कि मानसी के पिता गरीब तो है ही साथ ही वे इस दुख को सहन नही कर पायेंगे, मानसी भी बुढ़ापे में उन्हें कोई कष्ट नही पहुचाना चाहती थी।

      अचानक ही उसके मष्तिक में मानसी से शादी करने का विचार आ गया, उसे लगा कि इससे मानसी को हर तरह की सुरक्षा भी मिल जायेगी, उसके खाली जीवन   मे भी खुशी की लहर आयेगी,मानसी का मासूम निश्छल चेहरा उसकी आँखों के सामने घूम गया, उसे लगा उसकी खोज भी पूरी हो जायेगी।

       अब पहले मानसी की रजामंदी और फिर उसके पिता की सहमति की आवश्यकता थी।मानसी को सब ऊंच नीच समझाने पर उसके ऊपर ही निर्णय छोड़ दिया गया।अगले दिन मानसी ने अपनी सहमति दे दी,अब राजीव के सामने  पुराने विचारो से बंधे अपने पिता को मनाने का दुरूह कार्य शेष था।

पिता  विधवा विवाह की बात सुनकर ही भड़क गये, वो कुछ भी सुनने को तैयार ही नही थे।राजीव ने हरचंद कोशिश की पर उसके पिता को न मानना था न माने।

      राजीव ने मानसी के साथ कोर्ट मैरेज कर ली। समय के साथ राजीव के प्यार ने मानसी को उबार लिया। अब उसने घर की जिम्मेदारी संभालने के साथ साथ अपना अध्यापन कार्य भी जारी रखा।वो एक आदर्श गृहणी और अध्यापिका की भूमिका में थी।

         राजीव और मानसी के लिये आज का दिन एक ऐतिहासिक खुशखबरी लेकर आया, मानसी को आदर्श अध्यापक के रूप में राष्ट्रपति पुरुस्कार घोषित हुआ था।एकाएक मानसी अखबारों की सुर्खियों में आ गयी थी।

       एक माह बाद मानसी को पुरुस्कार मिलना था।समय बीत नही रहा था।मन करता पुरुस्कार वाला दिन बस एकदम आ जाये।पुरुस्कार मिलने की तिथि से एक दिन पहले मानसी बोली राजीव हो सकता है, शाम को मुझे आने में थोड़ी देर हो जाये, इंतजार मत करना।

      राजीव चिंता में था कि रात्रि के 8 बज रहे थे और मानसी अभी तक आयी नही,कहाँ गयी ये भी नही बताया।इतने में ही मानसी की आवाज सुनाई दी वो चहक कर आवाज दे रही थी,राजीव देखो तो कौन आये हैं?

राजीव अपने कमरे से बाहर आकर अपने पिता को देख भावातिरेक में दौड़ उनके पैरों पर गिर पड़ता है,बाबूजी हमे माफ कर दो।

     अरे राजीव माफी तो मैं मांगने आया हूँ बेटा, ये मानसी है ना बेटा, ये मेरी बहू है ना इसने आज मेरे अहंकार को चूर चूर कर दिया।अरे हमने तो अपनी बहू का स्वागत किया ही नही था,तिरस्कार किया था,पर ये तो सीधे मेरे सामने ही पहुंच गयी

, पावँ छू बोली पिताजी मैं आपकी बहू हूँ मानसी।फिर बड़े अधिकार से बोलती है पिताजी मुझे राष्ट्रपति पुरुस्कार कल मिलना है जो आपके बिना मैं नही लूँगी।पिताजी मैं आपको अभी लेने आयी हूँ।बेटा मैं तो इसको देखता ही रह गया।बता क्या मैं रुक सकता था, बहू की बात टाल सकता था?

      राजीव तूने खानदान पर कोई दाग नही लगाया है रे,मानसी तो हमारे खानदान पर नजर का टीका है।

        बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

स्वरचित, अप्रकाशित।

#दाग 

(v)

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