आधुनिकता की चमक-दमक के मोह में इंसान जब खुद ही अपने पाँव में कुल्हाड़ी मार ले तो कोई क्या कर सकता है।राजेश्वरी जी ने भी ऐसा ही किया जब उनका भाई उनके बेटे निशांत के लिये सुंदर-सुशील लड़की सीमा का रिश्ता लेकर आया।
“दीदी, एक बार आप सीमा से मिल तो लीजिए, देखने में साधारण है तो क्या हुआ पर स्वभाव की बहुत अच्छी है…।आपकी बहुत सेवा करेगी।” नरेन्द्र ने अपनी दीदी को समझाने का प्रयास किया तो राजेश्वरी जी बोलीं, ” नहीं-नहीं नरेन्दर, निशांत हमारा इकलौता बेटा है।
कंपनी में बड़ा अफ़सर है।उसके लिये मैं कोई साधारण-गँवार लड़की नहीं,हाई सोसाइटी वाली गोरी-माडर्न मेम लाऊँगी।” कहते हुए उनका सिर घमंड से ऊँचा हो गया।
राजेश्वरी जी के इंकार करने पर नरेन्द्र ने सीमा जो कि उनके मित्र की बेटी थी,के साथ अपने बेटे अरुण का विवाह कर दिया।महीने भर बाद राजेश्वरी जी ने भी शहर के एक बड़े बिजनेस की बेटी मुक्ता के साथ निशांत का विवाह कर दिया।
मुक्ता आज़ाद ख्यालों की आधुनिक वेशभूषा वाली लड़की थी जिसके साथ चलने में निशांत बहुत गौरवान्वित होता था।मुक्ता का उठना-बैठना हाई सोसाइटी के लोगों में था जहाँ महिला किसी भी पुरुष के साथ हँसने-बोलने और डाँस करने को अपना सम्मान समझती थी।
माॅडर्न पत्नी के आकर्षण में निशांत ने इस बात को स्वीकार कर लिया।राजेश्वरी जी भी अपनी सहेलियों के बीच अपनी स्मार्ट बहू की बखान करते नहीं थकती।
साल भर के बाद नरेन्द्र ने राजेश्वरी जी को अपने दादा बनने की खुशखबरी सुनाई और पूछा कि दीदी,आप खुशखबरी कब सुना रहीं हैं तब वह ऐंठकर बोली, ” जल्दी क्या है, अभी तो बच्चों के खेलने-खाने के दिन हैं।”
दो साल बाद फिर नरेन्द्र ने उन्हें पोती होने की खुशखबरी सुनाई तब उन्हें ख्याल आया और बहू से हँसते हुए बोली कि अब तो इस घर में भी बच्चों की किलकारियाँ गूँजनी चाहिये।हमें दादी कब बना…।सुनते ही मुक्ता भड़क उठी,चीखते हुए बोली,” बच्चे पैदा करके मुझे अपनी फिगर खराब नहीं करनी।”
” लेकिन बहू..।” वह कुछ कहती,उससे पहले ही मुक्ता पर्स लेकर बाहर निकल गई।लाडली बहू की बात सुनकर तो राजेश्वरी जी के उम्मीदों पर पानी फिर गया।मुक्ता उसी दिन से घर देर से लौटने लगी।कभी-कभी तो शराब पीकर भी लौटती।
राजेश्वरी जी या निशांत के टोकने पर वह उन्हें गँवार और ओल्ड फ़ैशन वाले’ कहकर कमरे में चली जाती।बच्चे की बात पर तो उसने पहले ही निशांत को दो टूक जवाब दे दिया था।
अब निशांत को अपनी माॅर्डन पत्नी की आज़ादी खलने लगी और इसीलिए दोनों के बीच कलह बढ़ता ही गया।कभी-कभी तो वह भी शराब पीकर अपनी माँ पर अपना भड़ास निकाल देता।
राजेश्वरी जी की आँखों पर चढ़ा माडर्न बहू का आवरण उतर चुका था। रिश्तेदारों और अपनी सहेलियों को पोते-पोतियों के संग खेलते और बातें करते जब वे देखतीं तो उन्हें सीमा जैसी सुशील लड़की को ठुकराने का बहुत अफ़सोस होता।
वह सोचती कि काश! मुझे सीरत की परख होती।अगर सूरत की चमक-दमक देखकर मुक्ता को बहू बनाकर मैं अपने पाँव में कुल्हाड़ी न मारती तो आज सीमा मेरी बहू होती और मेरे घर में भी बच्चों की किलकारी गूँजती।
विभा गुप्ता
#अपने पाँव में कुल्हाड़ी मारना स्वरचित