मैं हूं ना – प्रेम बजाज

सुहानी एम. बी.ए. है अच्छी नौकरी है, खूबसूरती ऐसी कि जो देखे तो पलक झपकना भूल जाएं। 

 गहरी नीली आंखें, पतले कमान से होंठ, सुराही सी गर्दन,तीखी नाक उफ़्फ़्फ़्।

 उस पर कयामत ढा रहा गोरे रंग पे, गालों पे छोटा सा काला तिल, सीना कामदेव को आमंत्रण देता, कई रिश्ते आए मगर अक्सर कहीं ना कहीं दहेज का लालच दिखता, जो सुहानी के माता-पिता दे नहीं सकते थे।

 क्योंकि पिता की पोस्ट आफिस में सरकारी नौकरी, और जायदाद के नाम पर  बस ले देकर दो कमरों का छोटा सा घर, मोटे दहेज की डिमांड कहां से पूरी करें?   

ख़ैर इश्वर भी कभी -कभी कोई चमत्कार करता है, एक रिश्ता ऐसा आया सुहानी के लिए,जो एक पैसा भी इनका खर्च ना कराने को तैयार, बस मन्दिर में शादी करके ले जाएंगे और अपने घर जाकर रिशेप्शन करने को तैयार थे।

 मां-पापा ने हां कर दी, सुहानी चुप जो मां-पापा कहें  सब ठीक, लड़के को बिन देखे शादी के लिए तैयार, भाई- भाभी भी सर से बोझ उतारना चाहते थे सो सुहानी को बताया, ” सुहानी हमने लड़का देखा ठीक है, और उस पर देखो सरकारी नौकरी है, साथ में तेरी भी अच्छी -खासी नौकरी है, छोटा सा परिवार केवल मां-बाप है, सुखी रहेगी” 

 सुहानी ने बस हां में सिर हिला दिया। 

शादी के समय जब सुहानी ने नज़र उठाकर  दुल्हे (अनीश) को देखा तो  काला रंग, मोटा पेट बाहर को निकला हुआ, सिर पर बालो के नाम पर चांद चमकता हुआ, बस चुप हो कर रह गई।

 शादी के बाद ससुराल में रिशेप्शन बहुत शानदार की गई, जो भी आता यही फुसफुसाता लंगूर को हूर मिल गई, लड़की तो परियों की रानी है, ना जाने क्या मजबूरी रही होगी बेचारी की । 

शादी के दो महीने बाद ही सास को पेरालाईज़ का अटैक आया, अब घर की देखभाल कौन करें, पतिदेव ने हुक्म सुनाया, सुहानी तुम नौकरी छोड़ दो, घर पर मां की देखभाल करो”   सुहानी ने चुपचाप हां में सिर हिला दिया। 

 सुहानी सारा दिन घर का काम काज करती, सास की सेवा में लगी रहती, उस पर ससुर जी बहुत परेशान करने लगे , थोड़ी-बहुत पीने की आदत थी, जो अब और बढ़ गई, नित- नई डिमांड होने लगी, कभी सुहानी से कोई स्नैक्स, कभी चिकन, कभी कुछ, कभी कुछ डिमांड करते रहते, सुहानी इन सबमें अनीश को समय ना दे पाती।



 अनीश, ” सुहानी, तुम सारा दिन क्या करती हो, जो काम इस समय हो रहा है वो दिन में क्यों नहीं कर लेती? मेरे लिए तुम्हारे पास समय ही नहीं है, और अपनी शक्ल तो देखो, तुमसे तो काम वाली बाई ही अच्छी लगती है, कभी ढंग से रहना सीखो”। सुहानी चुपचाप हां में सिर हिला देती।  

एक दिन तो हद ही हो गई, ससुर ने हाथ पकड़कर सुहानी को खींच लिया अपनी तरफ, जैसे-तैसे हाथ छूडाकर भागी, अनीश टूर पर गए हुए थे किसे कहें, अनीश के आने पर कुछ कहने की हिम्मत करने लगी मगर फिर चुप कि अनीश अपने पिता के बारे में नहीं मानेंगे ऐसी बात, उल्टा उस पर ही दोष ना लग जाए ये सोचकर चुप रह गई। 

इस तरह अनीश को घर पर स्त्री सुख की कमी खली वो भी इस सुख की तलाश में बाहर भटकने लगा, इससे शराब की लत भी पड़ गई, अक्सर पीकर आने लगा, और सुहानी से गाली-गलौच करता, कभी-कभी तो हाथ भी उठा देता, मगर सुहानी सब चुपचाप सहती। 

अब तक मां-पापा गुजर चुके थे, किसे कहती, इश्वर ने अभी तक गोद भी सूनी रखी थी कि कोई सहारा बन जाता जीने का, गोद भरती भी तो कैसे? पति तो किसी और के साथ सोकर आता, जब बीज ही नहीं तो फल कहां से आएगा? 

अधिक शराब के कारण पति को ( lung cancer) लंगकैंसर हो गया, जिससे जल्दी ही स्वर्ग सिधार गया, भाई-भाभी सार्वजनिक रूप में आकर अफसोस करके चले गए, बहन को एक बार भी उसका हाल-चाल ना पूछा, सुहानी चुपचाप सब अकेले झेलती रही।

  मगर अब ससुर के लिए खुला रास्ता था, बेटा रहा नहीं, पत्नी बैड पर, किसी ना किसी बहाने सुहानी को छुता रहता, वो बेचारी चुपचाप कन्नी काट लेती। 

पति की सरकारी नौकरी थी, इसलिए उसके स्थान पर सुहानी को नौकरी मिल गई, सुहानी का आफिस ससुर के आफिस से पहले रास्ते में था तो ससुर जाते हुए छोड़ देते और आते हुए ले लेते, और रास्ते में कभी-कभी सुहानी से गन्दे-गन्दे मज़ाक करते, सुहानी चुपचाप सहती रहती।

  एक दिन तो हद हो गई घर आकर ससुर जी जब पीने बैठे तो एक नहीं दो पैग बनाए और सुहानी को पीने के लिए ज़बरदस्ती करने लगे और उसके मुंह को गिलास लगा दिया।

 ऐसे लगा जैसे ज़हर का घूंट भर लिया हो, साथ में सिर चकराने लगा, शायद कोई घटना घटती मगर इश्वर ने खेल खेला, उसकी सास की तबीयत अचानक बिगड़ गई, सुहानी को तो नशा हो गया, उसे कुछ पता नहीं ससुर जी ने ही सास की रात भर देखभाल की।  

अगले दिन से फिर वही रूटीन सुहानी का, बहुत परेशान रहती थी हर समय।

 किससे कहे और क्या कहें कुछ समझ ना आता, बस चुप रहती हर पल, आफिस में भी ज्यादा बात ना करती किसी से, मगर आलोक जो उसका कुलीग था, दरअसल उसे ना जाने क्यों शादी के नाम से नफ़रत थी।

 इसलिए अब तक कुंवारा था, वो इसकी तरफ आकर्षित होने लगा, सुहानी को भी उसकी कम्पनी अच्छी लगती, धीरे-धीरे दोनों को नज़दिकीयां अच्छी लगने लगी।



 आलोक सुहानी का बहुत ध्यान रखता, उससे पूछता भी कि अगर कोई मन में बात हो तो उसे कहकर अपने मन का बोझ हल्का कर सकती है, मगर सुहानी कुछ ना कहती चुप ही रहती। 

एक दिन ससुर ने सारी हदें तोड़ दी, रात को अचानक सुहानी को जगाया,” सुहानी मेरे सिर में बहुत दर्द है, थोड़ी सी मसाज कर दो” 

उससे मसाज कराते हुए उसके शरीर के साथ छेड़खानी करने लगे और जबरदस्ती उसे अपनी हवस का शिकार बना लिया। 

सुहानी दो दिन तक रोती रही, आफिस नहीं गई, कहे तो किससे, और क्या कहे, चुप्पी की आदत जो थी। 

तीसरे दिन ससुर ने रौब दिखाकर कि,”आफिस जाना शुरू करो, सरकारी नौकरी है, छूट गई तो खाना भी नहीं मिलेगा, मैंने तुम्हें पालने का ठेका नहीं ले रखा” चुपचाप आफिस के लिए तैयार होकर चल दी। 

एक महीने बाद जब महावारी नहीं आई तो सुहानी को घबराहट होने लगी, चैक कराने पर पता चला कि उम्मीद से है, मरने की ठान ली, क्या करती? ज़िन्दा रह कर कैसे दुनियां का सामना करती? 

एक दिन आफिस से हाफॅ डे लेकर चल पड़ी अकेले अनजान राहों पर, आलोक को शक हुआ, वो भी छुट्टी ले सुहानी का पीछा करने लगा तो देखा सूहानी नदी की तरफ जा रही थी, जैसे ही सुहानी नदी में छलांग लगाने लगती है आलोक हाथ थाम लेता है,” सुहानी ये क्या कर रही हो तुम, ज़िन्दगी से हार कर हम ज़िन्दगी को खत्म कर लें ये किसी समस्या का हल नहीं, हमें हर समस्या का डट कर मुकाबला करना है, तुम्हें जो भी परेशानी है मुझसे कहो, मैं हर पल तुम्हारे साथ हूं” 

सुहानी आलोक के गले लगकर फफक-फफक कर रो पड़ी, काफी देर रोने के बाद उसने अपने-अपने को संभाला  और बोली अब मैं चुप नहीं रहूंगी, ये चुप्पी तोड़नी होगी अब मुझे,” और आलोक को वो शुरू से अब तक सबकुछ बताती है। अब उसे आलोक का सहारा मिल गया, वो  ससुर के खिलाफ केस दर्ज कराने का और इन्साफ लेने के लिए अटल फैसला कर लेती है।

 वो कहती हैं कि, आज वो चुप नहीं बैठेगी।

आलोक उसकी सारी बाते जानकर बस इतना ही कह पाता है, मैं हूं ना।

*कुछ ऐसे भी बेनाम रिश्ते होते हैं, जो पराए होकर भी अपने से लगते हैं*

#पराये _रिश्ते _अपना _सा _लगे 

मौलिक एवं स्वरचित

प्रेम बजाज, जगाधरी ( यमुनानगर)

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