लोगो के घर जितने बड़े हो गए है दिल उतने ही छोटे हो गए हैं !! – स्वाती जैन

जाने क्या था उन आँखों में , गहरे शांत समुद्र सी आँखें थीं !

जब भी सोसायटी के कंपाउंड में उनको देखती लगता जैसे कुछ कहना चाहती हो वह मुझसे !!

मैं शिप्रा अभी कुछ हफ्तों पहले ही हम शिफ्ट हुए हैं इस सोसायटी में , मेरे पति आलोक सुबह रोज दफ्तर चले जाते हैं और बच्चे स्कूल !! दोनों बच्चे अभी छोटे हैं तो उनके पीछे दिन कैसे निकल जाता हैं पता ही नही चलता !!

 

आज जब कंपाउंड में उस अधेड़ उम्र की स्त्री को देखा तो देखते रह गई !! सलीके से पहनी हुई कोर्टन की साड़ी , कंधो तक आते बाल और सबसे अहम उनकी आँखें जो मुझे उनकी तरफ खींच रही थीं !!

शायद वह मुझसे बात करना चाहती थीं मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मगर सुबह की आपाधापी में मुझे समय ही नहीं था !!

 

शाम को जब मैं कुछ काम से उतरी तब भी वह मुझे वही बेंच पर बैठी दिखाई दीं , इस बार भी उन्होने मुझे देखा और मैंने उन्हें देखा और मैं मेन गेट से बाहर निकल गई !!

 

रास्ते में मैं यही सोच रही थी गहरी शांत समुद्र सी उनकी आंखों में जैसे कोई गहरा राज छुपा हो उनको देखकर मुझे यह अनुभुति हुई !!

दो दिन बाद मुझे वह फिर दिखाई दीं इस बार मैंने सामने से ही बोला नमस्ते आंटी जी !!

वे भी बदले में बोलीं नमस्ते बेटा !!

मैंने कहा आप यहाँ कितने सालों से रहती हैं ??

हम तो बस अभी दो हफ्ते पहले ही शिफ्ट हुए हैं !!

वह कुछ कहतीं उससे पहले उनका फोन बज उठा !! वे फोन पर बात करने लगीं तो मैं उन्हे बाय बाद में बात करते हैं बोलकर निकल गई !! इस बात को लगभग एक हफ्ता होने आया ,आंटी जी मुझे दिखाई ना दीं !!



मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था , मैं गहरी सोच में थी कि आंटी जी आजकल आती क्यूं नहीं ??

मैं तो उनसे कुछ पूछ भी ना पाई थी कि उनका फ्लैट कौन सा है ?? वे कहाँ रहती हैं ?? आखिर मुझसे रहा ना गया मैंने गेट पर खड़े वॉचमैन से पूछा यहाँ एक आंटी बैठा करती थी , क्या आप जानते हैं वे कौन से फ्लैट में रहती हैं ??

 

वॉचमेन बोला उनका तो चार दिन पहले स्वर्गवास हो गया !!

मुझे लगा मेरी सुनने में कोई गलती हुई है!!

मैंने फिर से पूछा क्या ??

वॉचमेन ने फिर वही शब्द दोहराए !!

मैंने कहा कौन थी वे ?? कौन से फ्लैट में रहती थीं ?? क्या हुआ था उन्हें ??

वॉचमेन बोला उनका नाम आशादेवी था , यहाँ उनके बेटा और बहू रहते हैं , वे तो यहाँ से एक किलोमीटर दूर गाँव देवी रोड पर एक बिल्डिंग है वहाँ रहती थीं !!

 

सुनने में आया है कि पहले बेटा – बहु भी साथ ही रहते थे मगर बाद में वे दोनों यहाँ टॉवर में रहने आ गए और बुढिया बेचारी वहीं पडीं रह गई !! उनके गले में गाँठ हो गई थी इसलिए बेचारी रोज यहाँ बेटा – बहू के घर में चक्कर लगाती !!

डॉक्टर ने ऑपरेशन करवाने कहा था जिसमें लाखों रुपए का खर्चा था !!

जब भी आती घर में ताला लगा मिलता , वह घंटों तक नीचे इंतजार किया करती थी मगर कोई ना आता !!

मेमसाब मुझे तो लगता हैं बेटा – बहू जानकर भी अनजान बनना चाहते थे , दरअसल वे बुढ़िया के पीछे पैसा खर्च नहीं करना चाहते थे !!

चार दिन पहले उनके बेटे के मुँह से पता चला कि आशा जी के गले की गाँठ अचानक फट गई और उनका देहांत हो गया !!



आशा जी को डॉक्टर ने बहुत पहले बताया होगा मगर बेचारी बेटे – बहु से पैसे मांगने के कारण पहले बताई नहीं होगी !! अंत में कोई चारा नजर ना आया होगा तभी स्वाभिमान को परे रख आई मगर कुछ ना हो सका !! भगवान ऐसे बेटे – बहु किसी को ना दें !!

उतने में मेन – गेट से एक बड़ी और शानदार कार आती हुई दिखाई दी , जिसमें एक जोड़ा बैठा हुआ था !!वॉचमेन बोला मेमसाब यही हैं दोनों !!

 

मैंने उन्हें कार में से उतरते हुए देखा दोनों एक – दूसरे से हँसी – ठिठोली कर रहे थे , माँ के मरने का तनिक गम लड़के के चेहरे पर भी ना दिखाई दिया !!

 

उनकी मंहगी कार देखकर ही समझ आ गया था कि बंदे के पास पैसे की कोई कमी ना थी मगर शायद आजकल लोगों के घर जितने बड़े होते जा रहे थे दिल उतने ही छोटे होते जा रहे थे !!

 

रास्ते भर मैं यही सोचती रही कि कैसे लोग अपने माँ – बाप के साथ ऐसा कर सकते हैं ?? क्या यही दिनों के लिए इंसान औलाद जनता हैं ?? इससे तो लोग बेऔलाद ही ठीक हैं !!

मुझे उन आंटी जी का चेहरा रह – रहकर याद आ रहा था !!

जाने क्या कहना चाहती थी मुझसे ??

 

दोस्तों , आपको यह रचना कैसी लगी ?? जरूर बताईएगा और मेरी अन्य रचनाएँ पढ़ने के लिए मुझे फॉलो अवश्य करें !!

 

आपकी सखी

स्वाती जैंन

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