झूठ – कमलेश राणा

कमलेश राणा

स्वरचित

मैं उन दिनों एक स्कूल में टीचर थी।उस स्कूल के प्रिंसिपल शर्मा जी बहुत ही सज्जन और मिलनसार प्रकृति के इन्सान थे।उस समय उन की उम्र लगभग 33वर्ष थी।

कुछ समय बाद मैने वो स्कूल छोड़ दिया।बाद में पता चला कि 38वर्ष की कम उम्र में ही कैंसर के कारण उन्होँने दुनिया को अलविदा कह दिया।मुझे बहुत दुख हुआ पर होनी को कौन टाल सकता है।उस समय उनके बेटे की उम्र 13वर्ष और बेटी की उम्र मात्र 3वर्ष थी।

काफी समय बाद एक दिन मॉर्निंग वॉक के वक़्त उनकी पत्नी से मुलाकात हुई और धीरे-धीरे दोस्ती में बदल गई।एक दिन बातों बातों में उन्होँने मुझ से कहा-“दीदी,आप मेरी परी को tution पढ़ा देंगीं,तो मुझे बड़ी खुशी होगी।”अब मना करने का तो कोई सवाल ही नहीं था,वैसे भी पढ़ाने का शौक मुझे हमेशा से रहा है।


उस समय परी 3 क्लास में थी और उसकी उम्र 8साल थी।बहुत ही प्यारी और मासूम बच्ची वो मुझे बहुत प्यार करती थी और मैं भी उस से दिल से जुड़ गई थी।दिसंबर का महीना था बच्चे सैंटा क्लाॅज की बातें कर रहे थे और मेरी परी अपने पापा के  घर आने का इंतजार कहने लगी -“सब के पापा को छुट्टियाँ मिल जाती हैं पर मेरे पापा को पता नहीं क्यों छुट्टी ही नहीं मिलती।मम्मा हर बार कह देती हैं कि अगले महीने आयेंगे।”यह कहते हुए  उसकी आँखों में ढेर सारी शिकायत थी और मेरी आँखों में  आँसू।मैं चाह कर भी उस नन्ही सी जान के लिए कुछ नहीं कर पा रही थी।

आखिर बच्चों का इंतजार पूरा हुआ।क्रिसमस भी आ गया।अगले दिन सुबह जैसे ही परी आई मैने उसे एक स्कूल बैग दिया और कहा-“कल सैंटा तुम्हारे लिये यह बैग लेकर आया था,कह रहा था कि परी के पापा ने उसके लिए भेजा है ।”यह सुनकर परी खुशी से नाचने लगी और मैं मन ही मन ये सोचने पर मजबूर हो गई कि कई बार एक झूठ भी कितनी बड़ी खुशी  दे सकता है।

यह मेरा प्रथम प्रयास है आप सभी के सहयोग की आकांक्षा रखती हूँ 

कमलेश राणा

ग्वालियर

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!