हम बुरा क्यो ना माने – संगीता अग्रवाल

” बहू जल्दी जल्दी हाथ चलाओ नितेश के दोस्त होली खेलने आते ही होंगे फिर अर्चना भी तो आ रही है जमाई जी के साथ अपनी भाभी की पहली होली पर !” सरला जी पकोड़े तलती हुई अपनी बहू मीनाक्षी से बोली।

” जी मम्मीजी बस होने वाला है !” मीनाक्षी मुस्कुराते हुए बोली। 

इधर मीनाक्षी ने पकवानो से मेज सजाई उधर अर्चना अपने पति विमल और अपने बेटे के साथ आ गई। सबने एक दूसरे को होली की शुभकामनाएं दी। तभी नितेश के दोस्त भी आ गए। मीनाक्षी सहित सभी ने उन्हे भी होली की शुभकामनाएं दी।

” क्या भाभी ऐसे सूखी सूखी शुभकामनाएं दोगी !” एक दोस्त मीनाक्षी से बोला।

” जी पहले आप नाश्ता कीजिये फिर होली भी खेल लेंगे !” मीनाक्षी मुस्कुरा कर बोली।

थोड़ी देर बाद सभी नाश्ता करके बाहर आ गये और होली खेलने लगे। मीनाक्षी अंदर ही रुक गई क्योकि सब कुछ फैला हुआ था तो उसने सोचा थोड़ा संगवा दे पहले फिर होली खेलने बाद ये सब कहाँ हो पायेगा। वो जल्दी जल्दी हाथ चला रही थी बाहर बज रहे गाने से उसके पैर खुद ब खुद हिल रहे थे। 

” भाभी जी क्या बात है लगता है डांस का बहुत शौक है आपको!”अचानक नितेश का वही दोस्त जिसका नाम अरुण था अंदर आ बोला।

” अरे आप यहाँ कुछ चाहिए आपको ?” मीनाक्षी उसे देख सकपका गई ।

” हां भाभी जी एक गिलास पानी चाहिए !” वो बोला।

” जी अभी देती हूँ !” मीनाक्षी ये बोल गिलास मे पानी कर उसे देने लगी ।

उसने मीनाक्षी को ऊपर से नीचे तक घूर कर देखा मीनाक्षी को बहुत अजीब लगा उस वक़्त घर मे कोई नही था और वो किसी को आवाज़ भी देती तो कोई सुनता नही इतने शोर मे।

अरुण ने पानी लिया और पीने की जगह उसमे से थोड़ा पानी अपने हाथ मे लिया और गिलास मेज पर रख दिया । इससे बेखबर मीनाक्षी ने बचा हुआ काम छोड़ा और बाहर की तरफ जाने लगी।

” अरे रुकिए तो भाभी जी ऐसी क्या जल्दी है !” ये बोल अरुण ने अपने दोनो हाथ मीनाक्षी के गाल पर रगड़ दिये ।

” ये सब क्या है आपको इस तरह मुझे रंग लगाने का कोई हक नही बाहर सबके सामने होली खेल सकते है आप !” मीनाक्षी थोड़े गुस्से मे बोली और बाहर की तरफ जाने लगी।

” अरे रुकिए तो आप तो बुरा मान गई होली है और हमारा हक है आपको रंग लगाने का इसमे बुरा क्या मानना !” अरुण एक हाथ से उसका हाथ पकड़ दूसरे से फिर रंग लगाने लगा किन्तु इस बार उसका हाथ गालो पर फिसलता हुआ नीचे की तरफ आ गया। अब मीनाक्षी के लिए सहन करना मुश्किल हो गया।

” तड़ाक….. क्यो बुरा ना माने हम होली के बहाने आपको छेड़छाड़ का लाइसेंस मिल गया और हमें बुरा मानने का भी हक नही क्यो क्या हम इंसान नही !” मीनाक्षी अरुण को जोर से थप्पड़ मारती हुई बोली।




” तुमने मुझे थप्पड़ मारा !” अपना गाल सहलाता हुआ अरुण दहाड़ा।

” क्या हुआ बहू कोई परेशानी है …और अरुण तुम यहाँ क्या कर रहे हो? ” तभी वहाँ बहू को बुलाने आई सरला जी मामले को समझते हुए बोली।

” मम्मीजी अब कोई परेशानी नही परेशानी को मैने एक थप्पड़ मे सीधा कर दिया …!” मीनाक्षी अरुण की तरफ देखते हुए बोली।

अरुण मीनाक्षी को घूरते हुए बाहर जाने लगा ” रुको अरुण !” सरला जी ने आवाज़ दी।

” तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी बहू के साथ बदतमीजी करने की !” सरला जी चिल्ला कर बोली।

” आंटी जी मैने तो बस रंग लगाया था भाभी जी तो बुरा मान गई और देखो बेमतलब मुझे थप्पड़ मार दिया !” अरुण सफाई देते हुए बोला।

” बुरा मानने का उसका हक है और क्यो ना माने तुम लोग होली जैसे त्योहार को छेड़छाड़ का जरिया बना लेते हो रंग लगाने के बहाने महिलाओ के शरीर को मसलने लगते हो और वो बुरा ना माने वाह बेटा क्या सोच है तुम्हारी । तुमने क्या सोचा तुम हमारी बहू के साथ बदतमीजी करके भी उसे ही गलत ठहरा दोगे और हम तुम्हारा यकीन कर लेंगे !” सरला जी गुस्से मे बोली। तब तक घर के बाकी सदस्य और नितेश के बाकी दोस्त भी अंदर आ गये क्योकि मीनाक्षी ने नितेश को फोन कर सबको ले अंदर आने को बोल दिया था। 

” माँ क्या हुआ ?” नितेश अंदर आते ही बोला।

” नितेश ये तुम अपने दोस्त से पूछो कि वो बाहर होली छोड़ अंदर क्यो आया वो भी चुपचाप ?” सरला जी बोली।

” अरुण तुम यहां और ये रंग !” नितेश कभी अरुण के हाथ कभी मीनाक्षी के गाल देख बोला और माजरा समझते ही गुस्से मे भर अरुण की तरफ दौड़ा। 




” तेरी इतनी हिम्मत की तू! ” नितेश ने अरुण के गाल पर थप्पड़ मारते हुए कहा।

” नही यार तू गलत समझ रहा है वो तो भाभी जी …!” अरुण सफाई देना चाह रहा था।

” बस बहुत हुआ अरुण अब तुम यहाँ से दफा हो जाओ कम से कम हम लोगो का नाम ना बदनाम करो अपने साथ हम यहाँ भाभी के साथ होली खेलने आये थे और तुम छी…कैसे घटिया इंसान हो तुम भाभी को अकेला देख ऐसी हरकत करने लगे !” नितेश का एक दोस्त बोला।

सबने अरुण को चेतावनी दे वहाँ से चलता किया ।

” भाभी जी अरुण की तरफ से हम सब आपसे माफ़ी मांगते है आपकी पहली होली थी यहां और उसका इतना कड़वा अनुभव रहा आपको।” नितेश् का वही दोस्त बोला और बाकी सबने हाथ जोड़ दिये।

“अरे नही नही आप सब ऐसा मत कीजिये । एक इंसान गलत हो तो जरूरी नही सब गलत हो चलिए आप सब बाहर चलकर एन्जॉय कीजिये !” मीनाक्षी बोली ।

” तुम भी चलो मीनाक्षी अब यहाँ अकेले एक मिनट नही रहोगी और हां मैं भी तुमसे माफ़ी मांगता हूँ क्योकि अरुण को मैने यहां बुलाया था।”नितेश बोला।

“बस कीजिये आप लोग प्लीज और चलिए बाहर एक शख्स के लिए अपना त्योहार मत बिगाड़िये उसे उसके किये का सबक मिल गया अब उसे हमेशा याद रहेगा कि कुछ बाते या हरकते बुरा मानने वाली ही होती है।” मीनाक्षी बोली।सभी बाहर आ गये और होली खेलने लगी।

दोस्तों कुछ लोग होली जैसे त्योहार को छेड़छाड़ का लाइसेंस समझ लेते है और फिर अपनी गलत हरकतो को बुरा ना मानो होली है बोल ढकने की कोशिश करते है । अरे भाई हम क्यो ना बुरा माने जब बात बुरा मानने की ही होगी तो ।

क्या आपके साथ भी कभी ऐसा कुछ हुआ है यदि हां तो अगली बार चुप ना बैठिये बुरा जरूर मानिये।

5वां_जन्मोत्सव 

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल  ( स्वरचित)

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