गृहप्रवेश (भाग 3) – मंजरी त्रिपाठी

आज नताशा मिहिर और माधव को गये दो दिन हो गये।जानकी जी कई बार दौनो के कमरे में जाती और सूना कमरा देख कर सीने पे हाथ रखे बाहर आ जातीं।जगदीश जी से उनकी हालत नहीं देखी जाती।वो बार बार समझाते कि देखो जानकी चिड़िया और चिड़ा बहुत मेहनत और लगन से घौंसला बनाते हैं पर जब बच्चों के पंख निकल आते हैं तो वो उड़ ही जाते हैं।और यह स्वाभाविक है।और एक बात और कि चिड़िया कभी भी उनकी उड़ान पर दुखी नहीं होती,बल्कि उसे गर्व होता है अपनी परवरिश पे और वो धन्यवाद देती है ईश्वर को कि आज उसके बच्चे आज उड़ सके….तुम भी मन दुखी मत करो।

सुनो जानकी माता पिता का दुख ईश्वर देखता है।ऐसा ना हो कि तुम्हारा दुख देखकर ईश्वर अपने मिहिर को दोषी समझ ले।जीने दो बच्चों को सुख से,और तुम भी रामभजन में मन लगाओ।

जानकी जी चुपचाप सब सुनती रही और फीकी मुस्कान से मुस्करा कर बोलीं मिहिर के पापा मैं बच्चों को दोषी नहीं समझती मैं तो खुद को दोषी मान रही हूँ कि क्यों मैं बहू से टोका टाकी करती रही।अरे मैं तो सारी जिंदगी ऊपरवाले से मानती रही कि मुझे एक बिटिया दे देता।पर देखो जब मुझे बिटिया मिली तो मैंने उसको नाराज कर दिया,अरे क्या हो जाता जो मैं चुप रह जाती।आज मेरा आंगन यूं सूना तो ना होता,जानकी जी फफक फफककर रो पड़ीं।जगदीश जी उनका दुखः समझ रहे थे परंतु पुरुष थे सो रो भी नहीं सकते थे।

उधर नताशा और मिहिर अपनी गृहस्थी को अपने अनुसार सजा रहे थे।जानकी जी ने आने से पहले उनके लिये रसोई के राशन और नई गृहस्थी की आवश्यकता का लगभग प्रत्येक सामान मिहिर के इन्कार करने के बावजूद भी  दे दिया था।

अब नताशा स्वछंद दी कोई रोक टोक नहीं थी।पर फिर भी उसके मन में एक शंका थी।उसे पता था कि मिहिर अपने माँ और पापा से बहुत जुड़ा हुआ है।वो रोज सुबह 7बजे खिड़की के पास आकर खड़ी हो जाती थी।उसे पता था कि जगदीश जी उसके घर के पास वाले मंदिर पर रोज ही पूजा करने आते हैं,वो आज भी खिड़की के पास आकर खड़ी हो गई मिहिर माधव को गोद में लिये सड़क पर ही खड़ा था जब जगदीश जी मंदिर जाने के लिये गुजरे,तो जगदीश जी के चेहरे पर माधव को देखकर एक चमक सी आई और माधव भी दादाजी को देखकर मचलने लगा,नताशा को लगा कि मिहिर पापाजी की गोद में माधव को दे देगा पर उसने देखा कि मिहिर को वो कतई निर्विकार भाव से खड़ा रहा ऐसा लगा जैसे वो जगदीश जी को जानता ही नहीं।जगदीश जी भी दूसरी तरफ देखते हुये मंदिर की तरफ चले गये पर माधव जोर जोर से रोने लगा तो मिहिर उसे लेकर घर आ गया।

नताशा ने सब देख लिया था  तो उसने मिहिर से कहा कि माधव रो रहा था तो दे देते पापाजी की गोद में।

मिहिर नताशा की तरफ देखकर गंभीर स्वर में बोला, नहीं, माधव को भी अब आदत डालनी होगी,हम दौनो की तरह।और फिर तुम ही ने तो कहा था कि तुम्हे सिर्फ मेरा साथ और मेरा प्यार चाहिये।तो अब हम तीनों आपस में खूब खुश होकर रहेंगे….मुझे भी अब किसी और की आवश्यकता नहीं हैं।तुम नास्ता ले आओ मुझे आफिस के लिये देर हो रही है।

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गृहप्रवेश (भाग 4) – मंजरी त्रिपाठी

©मंजरी त्रिपाठी

उत्तरप्रदेश

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