देविका – डॉ उर्मिला शर्मा

देविका जल्दी-जल्दी नए साल के अवसर पर पिकनिक पर जाने के लिए तैयारी कर रही थी। कई सालों से कहने के बाद पंकज इस साल पिकनिक पर जाने को तैयार हुआ था। उसके फैक्ट्री के ही एक अन्य सहयोगी मित्र भी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ पिकनिक स्पॉट पर आ रहे थे। वो लोग लोकल थे जबकि देविका को लगभग 50 किलोमीटर दूर जाना था।

सुबह से उठकर उसने नमकीन पूरी, भुजिया और हलवा बना लिया था। छोटे गोलू के लिए एक्स्ट्रा टोपी और स्वेटर हैंडबैग में रख लिया।

बहुत उत्साहित थी देविका। पिकनिक के बाद उसे राजधानी भी घूमना था। 8बजे दोनों पति-पत्नी बस से पिकनिक स्थल पर पहुँचे तो देखा पंकज के दोस्त और पत्नी तबतक पहुंच चुके थे। दोनों परिवार साथ- साथ घूमने लगे। पहले उन्होंने पार्क देखा। देविका खूब तस्वीरें खिंचवा रही थी। फिर उन्होंने डैम भी देखा। दोपहर होने पर साथ में लाए चादर बिछाकर उन्होंने लंच किया। पंकज के दोस्त की पत्नी वेज बिरयानी और थर्मस में चाय लायी थी। हंसी-मजाक करते हुए उनलोगों ने बड़े प्रेम से खाना खाया। सालभर के गोलू के साथ पंकज के दोस्त की 5 वर्षीय बेटी खूब खेल रही थी। फिर उसके वो लोग ऑटो कर मेन रोड गए। वहाँ पर उन्होंने घुम-घुमकर खरीददारी की। चाट व गोलगप्पे खाये। घूमते- घामते 8 बजनेवाले थे तो देविका ने वापस चलने की जल्दी मचाई। बस स्टैंड तक पंकज के मित्र उन्हें छोड़ने आये। सभी बसें काफी भरी हुई जा रही थीं। बस वाले पैसेंजर लेने को तैयार पर सीट देने को नहीं। आधे घण्टे से वो लोग खड़े थे। तभी एक टैक्सी वाले सामने से आया और पूछा -“कहां जाना है आपलोगों को?”

पंकज ने जो जगह बताई तो झट से टैक्सीवाले ने कहा -“हमको भी उधर से ही आगे जाना है। आपलोग चाहें तो हमारे साथ चल सकते हैं।”

जब किराए की बात उन्होनें पूछी तो उस आदमी ने कहा -“आपलोग जितनी चाहे दे देना…हम तो उधर जा ही रहे हैं।”

पंकज के दोस्त ने कहा उसके साथ जाने को कहा तो वह तैयार हो गया। सर्दी गहराते जा रही थी। पंकज के दोस्त व पत्नी भी अपने घर जाने के लिये उतावले नजर आ रहे थे। बल्कि उन्होनें तो रात को अपने घर रुक जाने के लिये कहा भी था।

ख़ैर टैक्सी में बैठ कर वो लोग चल दिये। 10 मिनट बाद ही ड्राइवर को एक काल आया तो उसने कहा -“आ जाओ।”




कुछ ही मिनटों बाद ड्राइवर टैक्सी साइड कर दिया और एक आदमी को उसने बिठा लिया। पंकज को यह बात नागवार गुजरी। उसने कहा “भैया!… अपने तो कहा था कि आप अकेले जा रहे हैं।”

“ये मेरा दोस्त है, उसको भी उधर ही जाना है जहां  जा रहे हैं।”

देविका को वह आदमी देखने से ही अच्छा नहीं लग रहा था। वह अंदर से डरी हुई थी लेकिन बाहर से न जता रही थी। गाड़ी तेज गति से भागी जा रही थी। कुछ मिनटों बाद ही ड्राइवर के सीट के बगल में बैठा वह आदमी सीट के ऊपर पैर रखकर पीछे की ओर मुड़ गया। और बड़ी फुर्ती से पीछे के सीट पर पहुंच गया। पंकज के मुंह से इतना ही निकला -“क्या कर रहे हो ?”

तबतक उसने पॉकेट से चाकू निकालकर पंकज की ओर यह कहते हुए बढ़ाया -“चुप!…एकदम चुप।”

पंकज के चिल्लाने पर वह आदमी उसे को मारने लगा। तभी गाड़ी धीरे हुई। उस आदमी ने गेट खोलकर पंकज को धक्का देकर गिरा दिया। अबतक देवकी खतरे को भांप चुकी थी। वह आदमी उसकी ओर बड़ा और उसका दुपट्टा खिंचते हुए अश्लील बातें कहने लगा। ड्राइवर गाड़ी भगाए जा रहा था। वह आदमी उसके साथ जबरदस्ती करने लगा। तभी बगल में सोया गोलू उठकर रोने लगा। देविका उस आदमी से बचने की पूरी कोशिश कर रही थी। बार-बार धक्का देकर गिरा दे रही थी। गिरकर उठने के बाद वह आदमी और गुस्सा में देविका को मारने और जोर जबर्दस्ती करने लगा। गोलू जोर-जोर से चीखे जा रहा था। तभी वह आदमी ड्राइवर से बोला -“अबे! गाड़ी धीरे कर।”

देविका समझ न पायी और सोसहने लगी कि अब क्या होनेवाला है। गाड़ी जैसे ही धीरे हुई, उसने गेट खोलकर गोलू को उठाकर बाहर फेंक दिया। देविका चीख पड़ी। पूरी ताकत से उसने उस आदमी को धक्का देकर गिरा दिया और उसे नोंचने लगी। तभी गाड़ी में अचानक ब्रेक लगकर रुकी। उसने देखा कि सामने से पुलिस की जीप रुकी। ड्राइवर गेट खोलकर भागने लगा तभी पुलिस ने उसे दबोच लिया। साथ ही उस आदमी को भी पकड़ लिया। वह चीखे जा रही थी -“कोई मेरे बच्चे को बचाओ। उसे गाड़ी से फेंक दिया है।”

वह पुलिस की जीप में बैठ कर उस उल्टी दिशा में गयी जिधर से आ रही थी। थोड़ी ही दूरी पर एक स्थान पर भीड़भाड़ देख जीप रोकी। पता चला वहीं पर बच्चा गिरा था जिसे लेकर लोग पास के नर्सिंग होम ले गए हैं। पुलिस देविका को नर्सिंग होम ले गयी। वहीं पर पता चला कि पुलिस को उसके पति ने ही होश में आने पर फोन किया था। उनका भी इलाज चल रहा था।

डॉ उर्मिला शर्मा

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