बुढ़ापे के दर्द की दवा – पूजा मनोज अग्रवाल

अरे मम्मा क्यूं बर्तन धो रही हो,,,कितनी सर्दी पड़ रही है ,,,फिर से बीमार हो जाओगी तुम,,, ।

नही बेटा,,,,तुम्हें तो पता है ना में तो पुराने जमाने की हूं और मेरे हिसाब से रसोई में रात को झूठे बर्तन छोड़ना अच्छी बात नहीं है,,, कहकर मालती जी हंसने लगी ।

” आपको कितना भी समझा लो आपको पर आप मेरी बात मानती ही नहीं हो ,,,,।

मैं कह रही हूं ना मैं बर्तन धो दूंगी ,,,,आप जाओ पापा के पास बैठ कर आराम करो । मैं बाकी सब काम निपटा कर आपके पास आ रही हूं यह कहकर राशि ने अपनी मां मालती को प्यार से धकेलते हुए कमरे में भेज दिया ।

राशि ने फटाफट सारे बर्तन धोए मां पापा के लिए दूध गर्म किया और उनके कमरे में लेकर पहुंच गई । दोनो को गरमा गरम दूध देखकर राशि ने अपने हाथों से मां के सूजे हुए पैरों में गर्म तेल लगा कर मालिश की और कुछ देर बातें करने के बाद मां को रजाई ओढ़ा कर वह दूसरे कमरे में सोने के लिए आ गई ।

मालती जी के मुंह से राशि के लिए दुआएं निकल रही थी । उन्हें गठिया बाय की बीमारी थी सो आए दिन जोड़ों के दर्द से वे परेशान रहा करती थी । मालती जी उस जमाने की थी , जब परिवार बड़े और संयुक्त हुआ करते थे ,,, सो इस बढ़ती उम्र के पड़ाव पर उन्हें अकेला रहना अच्छा ना लगता था । वे चाहती थी , हमेशा कोई न कोई उनके आस पास रहे जिससे उनका समय आराम से कट जाए ।

मालती जी की दो बेटियां और एक बेटा था । बेटा अपनी पत्नी के साथ नौकरी के सिलसिले में विदेश में रहा करता था, और बड़ी बेटी अपने परिवार के साथ रहती थी । बेटा बहू और बड़ी बेटी का साल में एकाध बार ही घर आना – जाना हुआ करता था । इस कारण मालती जी अपने पति के साथ अकेले ही रहा करती थी ।

मालती जी को अपने हाथ से ही खाना बनाने में संतुष्टि होती थी इसलिए घर के बाकी सभी कामों के लिए वह नौकरानी का सहारा ले लेती , परंतु खाना वह स्वयं अपने हाथों से ही बनाया करती थी ।

राशि एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब किया करती थी । शनिवार रविवार की छुट्टी होने पर वह हर रविवार अपनी मां के पास आ जाया करती थी । हर हफ्ते मां के पास आने की एक वजह यह भी थी ,,,यदि वह मां के पास न आया करती तो मां को एकाकीपन से डिप्रेशन की समस्या बढ़ जाती थी ।

आज फिर रविवार का दिन था , मालती जी सुबह से राशि और बच्चों का इंतजार कर रही थी कि अचानक फोन बजा उधर से राशि ने कहा ,” मम्मा आज मुझे बहुत जरूरी काम है , इस सिलसिले में कहीं जाना पड़ रहा है ,,,आपसे मिलने ना आ पाऊंगी ,,,। ” इधर मालती जी ने राशि की मनपसंद खीर बनाई थी तो उसके आज घर ना आ पाने की बात सुन कर वे निराश हो गई थीं।

कुछ ही पल बाद निराश मालती जी ने सोचा क्यूं ना मैं ही राशि के यहां हो आऊं,, और काफी समय से समधन जी से भी मुलाकात ना हो पाई है ।

यह सोचकर मालती जी ने राशि के घर जाने की तैयारी कर ली ,,उन्होंने सबके लिए खीर पैक की और राशि के घर पहुंच गई ।

वहां पहुंच कर उन्होंने घर की डोरबेल बजाई तो दरवाजा खोलने के लिए राशि की सास गेट पर आईं । उनके पैर पर प्लास्टर देख कर मालती जी को लगा की राशि ने तो इस बारे में कुछ ना बताया था ।

राशि की सास सुमित्रा जी अपनी समधन को देखकर बहुत प्रसन्न हुई और उन्हें अंदर ले गई । उनके पैर पर प्लास्टर देख कर मालती जी ने स्वयं ही अपने और सुमित्रा जी के लिए कॉफी बनाई और कॉफी लेकर दोनों समधन बातें करने बैठ गई ।

मालती जी ने उत्साहित होकर पूछा ,” और समधन जी कैसी कट रही है ,,? आपके घर में तो दो – दो बहुएं और बच्चे हैं ,आपका तो हर दिन परिवार में हंसते खेलते ही बीत जाता होगा ,,, और एक मैं हूं कि हर दिन बिना बच्चों के अकेले ही बिताना पड़ता है । “

मालती जी की यह बात सुनते ही सुमित्रा जी की आंखों में नमी आ गई । खुद पर नियंत्रण कर वह बोली ,” नहीं बहन जी,,, जैसा आप सोच रही हैं वैसा नहीं है,,, दोनों बहुएं कामकाजी हैं ,उन्हें तो सिर्फ शनिवार और रविवार की छुट्टी मिलती है । और उस दिन वह बच्चों को लेकर अपने – अपने मायके चली जाती हैं । और रही बात बच्चों की तो वे अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहते हैं । ,,,वैसे तो हम सभी बूढ़ों को उम्र का यह पड़ाव अकेले ही काटना है। ” यह कहकर सुमित्रा जी ने लंबी सी आह भरी ।

इतने ही घर की घंटी बजी और सुमित्रा जी की पड़ोसन आकर सुमित्रा जी के पास बैठ गई ,,,,बातों ही बातों में पता चला कि सुमित्रा जी की पड़ोसन उनकी सहेली है और दोनों सहेलियां रोज शाम एक साथ बैठकर कुछ गपशप कर लेती हैं । मालती जी दोनो के साथ समय बिता कर बहुत खुश थी ।

आज मालती जी को महसूस हुआ कि वे राशि को हर हफ्ते अपने पास बुला कर उसके परिवार पर अन्याय कर रही थीं । उन्हें एहसास हो गया कि यह जरूरी नहीं है कि जो लोग अपने बच्चों से अलग रह रहे हैं ,सिर्फ वहीं एकाकी जीवन व्यतीत कर रहे है,,,बल्कि आजकल अधिकतर परिवारों की जिंदगी ऐसे ही कट रही है ।

समय बदल रहा है आजकल बहुएं कामकाजी होती है , सो उनका बहुत सा समय ऑफिस में बीत जाता है । और फिर घर के बच्चे भी स्कूल , ट्यूशन और अतिरिक्त गतिविधियों के चलते दादा – दादी के साथ समय नहीं बिता पाते हैं ।

मालती जी को सारी बात समझ आ चुकी थी ,,,जिस दर्द से वे गुजर रही थीं,, वह तो आज बुढ़ापे में सबका दर्द बन चुका है , तो आज से मालती जी मन में यह ठान लिया है कि वह राशि को हर हफ्ते अपने पास बुला कर उसे परेशान नहीं करेंगी ।

आज इस बात को तीन महीने बीत चुके हैं । अब उन्होंने अपना एकाकीपन दूर करने के लिए सुमित्रा जी के साथ मिलकर एक समूह बना लिया है । समूह की सभी महिलाएं योगा , मेडिटेशन और कुछ समाज सेवा के कार्य करने के साथ – साथ मंदिरों में होने वाले धार्मिक आयोजनों में भी हिस्सा लेना शुरू कर दिया है । आज से कई वर्ष पहले घर की जिम्मेदारियों के चलते उनके अपने शौक जैसे बुनाई – कढ़ाई बागबानी पर तो जैसे विराम लग गया था । वे सभी शौक दोबारा जागृत कर मालती जी एक नए सिरे से अपनी जिंदगी जी रही हैं ।

अब राशि को भी हर हफ्ते मां के यहां जाने की जरूरत नहीं पड़ती । साथ ही साथ मालती जी की डिप्रेशन की दवाइयां भी छूट चली है ।

#दर्द 

स्वरचित मौलिक

पूजा मनोज अग्रवाल

दिल्ली दिल्ली

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