अतीत का सबक – डॉ. पारुल अग्रवाल

संजना को आज बेटी सांभवी के करुणा से भरे हुए शब्दों और विनती ने आज से लगभग तीस साल पहले पहुंचा दिया था। जब वो बीस बाइस साल की कॉलेज में पढ़ने वाली छात्रा थी। जिसकी दुनिया घर से कॉलेज और कॉलेज से घर तक ही सीमित थी। जिसे कॉलेज में पढ़ने के लिए तो भेजा जा रहा था पर बस ये सोचकर कि जैसे ही अच्छा लड़का मिलेगा वैसे ही उसकी विदाई कर दी जाएगी।

किसी भी बाहर के लड़के से उसको बात करने की सख्त मनाही थी। वो भी सहमी सहमी सी अपनी ही दुनिया में डूबी रहती। पर कहते हैं ना कि दिल पर किसी का वश नहीं चलता। एक दिन संजना की सहेली नहीं आई थी, उस दिन संजना को अकेले कॉलेज जाना पड़ा था, वापसी में पता नहीं कहां से 3-4 मनचले लड़के उसके पीछे हो लिए थे तब उसके साथ पढ़ने वाले चंदन नाम के लड़के ने उसको बचाया था।

चंदन का भी घर का रास्ता, संजना के घर वाले रास्ते में ही पड़ता था। वो रोज संजना को देखता भी था,पर संजना तो खुद ही नज़र उठा कर किसी की तरफ देखती ही नहीं थी तो बात करने का सवाल ही नहीं होता था पर आज हालत कुछ ऐसे बने कि संजना को धन्यवाद कहने से दोनों के बीच बातचीत शुरू हो गई। संध्या के लिए किसी लड़के से बात करने का ये पहला अवसर था। धीरे धीरे दोनों की रोज कॉलेज में मुलाकात होने लगी और मुलाकात कब प्यार में बदल गई पता ही नहीं चला।

पर कहीं ना कहीं संजना को अपने प्यार का अंजाम पता था पर दिल के हाथों मजबूर थी। एक दिन किसी ने संजना और चंदन को एक साथ कॉलेज में घूमते देख लिया था बात उसके घर तक पहुंच गई थी।

घर वालों ने संजना से कुछ न पूछकर आनन फानन में अपनी ही जाति के बहुत बड़ी व्यापारिक परिवार में संजना का रिश्ता तय कर दिया और पंद्रह दिन के अंदर संजना की शादी भी हो गई। संजना चंदन को कुछ बता भी ना पाई क्योंकि उस समय मोबाइल फोन भी नहीं थे। इस तरह संजना और चंदन की प्रेम कहानी पूरी तरह परवान चढ़ने से पहले ही समाप्त हो गई।  दोनों के रास्ते अलग अलग हो गए। दोनों संस्कार और मर्यादा से बंधे अपने प्यार के लिए कुछ नहीं कर पाए।




संजना शादी करके एक बहुत बड़े घराने की बहु बनी जहां बहुत नौकर चाकर थे पर घरों के पुरुष ही सारे निर्णय लेते थे।  घर की बहु-बेटी का परिवार की किसी भी बात में दखल संस्कारों के खिलाफ समझा जाता था।संजना के लिए तो जैसे एक जेल से दूसरी जेल वाली बात थी। ऐसा नहीं था कि ससुराल में खाने पीने पर कुछ पाबंदी थी पर घर का वातावरण इक्कीसवीं शताब्दी में भी आज की दुनिया से थोड़ा अलग था।

अब तो संजना की भी शादी को पच्चीस साल बीत गए थे, उसके दो बच्चे भी थे एक बेटा और एक बेटी। उसने किसी तरह से अपने हालातों से समझौता कर लिया था पर आज शायद इतिहास अपने आपको दोहरा रहा था। आज जब उसकी बेटी की शादी की बात चली तो बेटी सांभवी ने हिम्मत करके बोल दिया कि वो अपने साथ पढ़ने वाले लड़के माधव से प्यार करती है और उससे ही शादी करेगी।

घर में तो जैसे भूचाल आ गया। आज संजना की बेटी का इस तरह अपने प्यार की घोषणा करना घर के संस्कारों के खिलाफ था। संजना की सास ने तो खुले स्वर में इन सब बातों के लिए संजना को ही ज़िम्मेदार बताया क्योंकि उन्हें लगा संजना ने ही अपनी बेटी में ठीक संस्कार नहीं डाले। घर के सभी लोग सांभवी के इस निर्णय के खिलाफ थे।




इधर संजना के दिमाग में अपने कॉलेज का वो समय जब वो अपने लिए कुछ नहीं कर पाई थी, चलचित्र की भांति चल रहा था। आज पता नहीं कहां से उसके अंदर हिम्मत आ गई और उसने अपनी बेटी के लिए उसका साथ देने का निर्णय लिया। आज वो अपने अतीत से लिए सबक से अपनी बेटी का वर्तमान संवारना चाहती थी।

इतने दिनो से चुपचाप रहने वाली संजना आज सभी बड़ों और घर के पुरुषों के सामने बिना डरे बोली कि माना मेरी बेटी को में इस घर के संस्कार नहीं दे पाई पर मेरे को अपनी बेटी पर पूरा भरोसा है अगर उसने किसी लड़के को अपने लिए पसंद किया है तो एक बार उस लड़के और उसके परिवार से मिलने में हर्ज़ ही क्या है? अगर ठीक नहीं लगा तो मुझे मेरी परवरिश पर इतना विश्वास है कि फिर मेरी लाडो उस लड़के से शादी करने की ज़िद नहीं करेगी।

वैसे भी मेरे को लगता है कि अब हम लोगों को थोड़ा समय के साथ चलना चाहिए और बच्चों को भी चाहे वो लड़का हो या लड़की उनको भी अपनी बात रखने का अधिकार देना चाहिए। संस्कार अपनी पसंद बताने से नहीं बल्कि अपने बड़ों का सम्मान ना करने से, मर्यादा का पालन ना करने से, नशा करने से और बदतीमीजी से बात करने समाप्त होते हैं। उसका ऐसा बोलना जहां सबको अचरज में डाल गया वहीं उसके ससुर जी को उसकी बात ठीक लगी और सर्वसम्मति से सबने उसकी बेटी सांभवी की पसंद माधव और उसके परिवार से एक बार मिलकर बात करने पर मोहर लगा दी।

दोस्तों संस्कारों का जीवन में होना और पालन करना बहुत जरुरी है पर संस्कारों के नाम पर घर की बहु और बेटी को बंधन में रखना भी गलत है। आपको मेरी कहानी कैसी लगी अपनी प्रतिक्रिया जरूर दीजियेगा।

#संस्कार 

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!