अपने लिए : पूनम अरोड़ा : Moral in Hindi

आज सौम्या की जिन्दगी का यादगार दिन था , बरसों  से घुटते संजोए सपने को यथार्थ के धरातल की स्वर्णिम  आभा मिल रही थी ।कभी सोचा भी न था कि  खाली समय में  ऐसे ही मन के उद्गारों को कागज पर उकेरते उकेरते खेल खेल में  एक दिन पत्रिका में  प्रकाशित होने भेज दिया था ।आशा के विपरीत मैगजीन की बहुत  ही सुखद प्रतिक्रिया ने मानो उसके अरमानों को उड़ने के लिए एक आकाश दे दिया ।

हमेशा से ही मन में खुद की  एक वर्किंग  वुमेन  की छवि ही अंकित की हुई थी और उसी के अनुसार ग्रेजुएशन के बाद बीएड भी करने की प्लानिंग थी।पढ़ने में  सदा से ही अव्वल रहती और माता पिता भी ऊँचे मुकाम पर ही देखना चाहते

लेकिन फिर वही  कहते हैं  ना “संजोग और समय” शायद दोनों   किसी के लिए नहीं रूकते ।दोनों  को ही शायद  बहुत जल्दी  थी इसलिए पता नहीं  कैसे कब सब कुछ होता चला गया और वह अपने सब ख्वाबों,सपनों  को पीछे छोड़कर  केतन की पत्नी उसके घर की हाऊसवाइफ बन कर रह गई ।

वो लड़की जो कभी पापा की परी थी, माँ  की  लाड़ो थी, भाईयों  का खिलौना थी, जाने कब  उड़नखटौले से उतरकर धरा की कठोर भूमि पर पदार्पण  कर गई ।

जाने कब जिम्मेदारियों  ने उसके पंख बोझिल कर दिए। जाने कब  क्षितिज  के अनंत विस्तार में  उड़ने की उसकी इच्छा  घर की दीवारों  के  भीतर  सीमित हो गई,

जाने कब मातृत्व  की पखुड़ियों ने प्रस्फुटित होकर उसे कली से पूर्ण विकसित सुरभित  पुष्प बना दिया  ।माना कि हाऊसवाइफ  की उपाधि भी वैसे गरिमामय होती है ,बिना वेतन ,बिना प्रशंसा ,बिना अवकाश की एक सम्मानजनक पोस्ट ।

वो भी निभाने में  कोई  असुविधा नहीं  थी लेकिन टीस उठती कि इतनी पढ़ाई लिखाई ,मेधावी होने ,प्रतिभावान होने का क्या फायदा ?पति से पूछा कहीं  जाॅब के लिए तो पुरूषोचित अहं आडे आ गया “तुम्हें  किस बात की कमी है ।

शादी से पहले ही बता दिया था हम लोगों  ने कि नौकरी नहीं  करानी ।”अच्छा ! होम टयूशन ले लूँ ” डरते डरते पूछा ?      

    नकारात्मक  उत्तर के बाद स्त्रोचित  मान अभिमान के बाद  बेमन से स्वीकृति  दे दी गई  और उन बच्चों  के एक दो घंटे पढा कर ही मानो जैसे जीवन की सार्थकता पा ली उसने ।मन खुश रहने लगा था ,घर के कामों  में  भी मन लगता आखिर गृहिणी की भूमिका से हटकर  शिक्षा  का सदुपयोग  तो कर पा रही है।

फिर बच्चे  हुए ,उनकी जिम्मेदारियों  की व्यस्तता फिर उनको पढ़ाने में  अपनी सार्थकता, अपनी खुशियों  को समाहित कर लिया । बच्चों की पढ़ाई ,परीक्षा,कोर्स सब की जिम्मेदारियां को पूर्ण करना ही उसका ध्येय रह गया था अब ।

उनकी सफलता जैसे अपनी कामयाबी लगती उसे ,उनकी उपलब्धियों से वह स्वयं को उत्कर्ष पर खड़ा महसूस करती ।उनके सपनों को अपनी आँखो में  सजा गौरवान्वित होती। बच्चे  बड़े हो गए ,सैटल हो गए ।अपने अपने ग़तव्य की ओर रवाना हो गए ।

अब घर के साथ साथ मन भी खाली । क्या करे!! ऐसे ही डायरियां  भरती रहती ,अपने ख्वाबों  को पन्नों  पर बिखेरती । तभी बिना किसी उम्मीद के पत्रिका के लिए रचना लिखी और वहाँ  से  पाॅजिटिव रिस्पांस  मिलने  पर बस स्वयं को उसी में  अनुबंधित कर लिया ।

उसके जीवन को एक लक्ष्य ,एक मंजिल  मिल गई थी और वो भी मनपसंद ।पति को पढ़ने लिखने का शौक नहीं  था वो जानती  थी लेकिन फिर भी पत्रिका में  रचना  छपने पर उत्साहित होकर उन्हें  दिखाती तो थपकी भी दे देते प्रोत्साहन की कभी कभी पीठ पर लेकिन पढ़ने की जहमत नहीं  उठाते । कोई  नहीं  वो इतने में  खुश थी, मन में आत्मसंतोष था ,आत्मगौरव था, मन का खालीपन एकाकीपन  भर गया था ।

और आज जब संस्था से फोन आया कि कुछ चयनित लेखकों  के  सम्मान  के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया गया है और उसमें  उसका भी नाम है  ,परिवार सहित  आमंत्रित  किया गया है ,तो  एक क्षण को जैसे विश्वास ही नहीं  हुआ ,धड़कनों का स्पंदन बेकाबू हो गया।

  ऐसी अकल्पनीय, अनिर्वचनीय अनुभूति  का एहसास हुआ उसको जिसे अभिव्यक्त नहीं  किया जा सकता ।उसके लिए यह बहुत  बड़ी उपलब्धि  थी ।वह मानों  हवा में  उड़ती हुई सी यह खबर सुनाने पति के पास बच्चों  की तरह भागी ।

उसे खुद को आश्चर्य  हुआ अपनी स्फूर्ति चपलता पे । मन की खुशी इंसान को कितना ऊर्जस्वित  कर सकती है यह उसने आज महसूस  किया। हुलस  कर उसने यह खुशखबरी उसे सुनाई तब उसने ठंडे से स्वर से बस इतना कहा  अच्छा  !!

जाओगी  क्या तुम।!! उसकी सारी  खुशी ,सारी ऊर्जा  मानो “सीता” बनकर धरा में  समा गई  ।ये कैसा सवाल !!  जीवन भर अपने सपनों  का गला घोट का सिर्फ उनके और बच्चों  के जीवन को संवारने में  लगा दिया ।

अपनी लेखनी को परे रख बेलन का चयन किया ,अपने मन की आवाज को दबा कुकर की सीटी को प्राथमिकता दी ।अपने मन में  जाले लगते गए और वो दीवारों  ,छतों  के जाले साफ करती रही लेकिन  अब जीवन की संध्या पर , अवकाश के समय अपनी खुद की प्रतिभा  के दम पर यह दिन आया है , उसके सपनों  को पंख मिले  है !! और इनका  यह रिस्पांस  !!

लेकिन आज वो यह पुरुषत्व  स्वीकार नहीं  करेगी । परिवार के कर्तव्यों का निर्वहन कर लिया उसने अब अपने  लिए ,अपनी खुशी के लिए अपने सपनों  के लिए जिएगी बाकी की जिन्दगी !!

यही सोचकर उसने आत्मविश्वास  और दृढ़ता से कहा “मैं  तो जाऊँगी ही मगर परिवार को भी बुलाया है ।तुम चलोगे क्या?

पूनम अरोड़ा

#पुरूष

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