आपबीती , एक, पुरूष की – प्रीती सक्सेना

  कहानी के आरंभ के पहले ही बताना चाहूंगी,,

  ये आपबीती है एक,, पुरूष की,, जिसने मैसेंजर के माध्यम से मुझ तक पहुंचाई है,,, मुझसे, न्याय की उम्मीद रखी है,,, उम्मीद है,, जस की तस लिख पाऊंगी।

गरीब माता पिता की सन्तान,,, थोड़ी सी खेती, खाने वाले ढेर,, भर पेट खाना, और पेट भरना, किसे कहते हैं, जाना ही न था,, जागते सोते बस रोटी ही दिखती थी,, बस सब भाई बहन,, इंतजार करते थे,, कब चूल्हा जले,, रोटी बने,, और खाने को मिले,, गांव में छाछ फोकट में मिल जाती थी,, नमक डालकर,, रोटी भिगोकर खा लेते थे।

एक नजदीक के रिश्तेदार गांव आए,, मां ने मुझे साथ ले जाने की विनती की,, पढाई कराने की बात की,, बदले में काम करवा लेने को कहा,, मुझे साथ ले गए,, मैं चाचा, चाची कहने लगा,, सरकारी स्कूल में दाखिला करवा दिया गया मेरा,,, काम भी कराया जाता,, छोटे बच्चो को संभालने को कहा जाता,,, थोड़ी भी भूल होने पर मारा पीटा जाता,,, खूब रोता,, पर मां का कहना याद आता,,, पढ़ लेना बेटा, तू ही परिवार की दरिद्रता को मिटाएगा।

    रूखा सूखा जो बचता,, पेट भर जाता,, बस जी रहा था,, अपनी उम्मीदों के सहारे। एक बार उनकी कोई नजदीक की रिश्तेदार आई,, पढ़ने के लिए,, मेरी उमर 14 साल की रही होगी,, एक दिन अकेले में उन्होंने मुझे पकड़ लिया और शारीरिक संबंध बनाने के लिए कहा,,, मैं थर थर कांप रहा था,, हाथ जोड़कर रो रहा था,, मौसी का संबोधन देता आया था,, स्त्री पुरूष के संबंधों से अनभिज्ञ ,,मैं क्या करूं,, उन्होंने मुझे मारा,, कहा ,,मैं झूठा इल्जाम लगा दूंगी,, कि तूने मेरे साथ गलत व्यवहार किया,,, मैं खिलौना बन गया,, जैसे चाहे वो मेरे साथ खेलती रही,, एक खिलौने की तरह,,, अपनी ही नजरों से गिरता रहा मैं…….



     एक दिन छोटे बच्चे को गोद में लेकर खड़ा था मैं,,, बच्चे ने एकाएक छलांग मारी,, और वो नीचे गिर गया,, चोट तो नहीं दिखी,, पर उसे रोता हुआ देखकर,, चाची ने चिमटा गरम कर मेरे पैरो में चिपका दिया,,, दर्द की अधिकता से। चीत्कार कर उठा मैं,, और घर से निकलकर भागता चला गया ,,,, एक अनजानी दिशा की ओर।

   ट्रक देखकर,, सरदार जी से प्रार्थना की मैने,, मुझे आगे कहीं छोड़ देना,, घाव टीस रहे थे,, पेट भूख से ऐंठ रहा था,, मेरी शक्ल देखकर एक डबलरोटी का पैकेट मुझे दिला दिया,,, ट्रक एक बड़े शहर में रुका,,, मैं वहीं उतर गया,, बस स्टैंड के पास काम ढूंढने लगा,,, एक फल वाला,, मेरी ही जाति का था,, तरस खाकर 30 रूपये महीना,, दोनों टाइम खाना,, चाय और दुकान में ही सोने की व्यवस्था कर दी ।

     दुर्भाग्य ने यहां भी मेरा पीछा नहीं छोड़ा,, तीन लड़के पहले से वहां थे,, जो घर से भागकर आए थे,,, पहले एक औरत के बलात्कार का शिकार बना था मैं,,, अब तीन पुरुषों ने मेरा शोषण किया,,, मैं महीने की पगार छुपाकर रखता,, गांव जाने के लिए,,, पर लडकों ने वो भी चोरी कर लिए,,, ताकि मैं  जा न सकूं,,, एक दिन मैं बेहोश हो गया,,, फल मालिक मुझे डाक्टर के पास ले गया,,, डाक्टर ने मुझसे पूछा,, तो हिम्मत करके,, मैने पूरी सच्चाई उन्हें बता दी,,, मालिक ने दया करके मुझे मेरे गांव का टिकट कटवा दिया,, और 20 रूपये,, हाथ खर्च को दिए।

 घर जा रहा हूं,,, इतना सुखद सपना था,,, आज

47 वर्ष बाद भी,, उस खुशी को महसूस कर सकता हूं,, मां की फैली बाहों में टूटकर गिर पड़ा,, दो रोटी ने मुझे कहां से कहां पहुंचा दिया मुझे,, पर अब कहीं नहीं जाऊंगा मैं,, जो भी करना है,,, बस यहीं करना है,,, दोनों भाइयों की सहायता से रोड पर,, पूरी सब्जी बेचने लगा,,, चल निकला काम,, तो आगे बढ़ने लगा ,, भूख ने मुझे बरबाद किया था,, आज सबकी भूख मिटा रहा हूं,, ईश्वर की कृपा से अपना ढाबा चला रहा हूं।

प्रीती सक्सेना

मौलिक

इंदौर

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!