यही तो है जिंदगी – गोमती सिंह

सरिता इकहरे बदन की गौर वर्ण की बहुत ही खुबसूरत लड़की थी।  तीखे नयन नक्स, कमर तक लटकती लंबी मोटी सी छोटी जो सुन्दर सुन्दर बालफूल से सुसज्जित होती थी । माथे पर दमकते बिन्दी तथा मांग सिंदूर से सुशोभित होते थे हांथों पर सुर्ख चूड़ियों की खनक से पूरी गृहस्थी गुंजायमान होती थी । 

          भगवान ने उसे हर खुशी से आबाद किया था । विवाह के दो वर्ष के बाद ही उसकी गोद में एक पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई थी।  

            अब शुरु हुई थी भागम-भाग की  जिंदगी । पति महोदय बैंक में सर्विस करते थे अत:  सुबह-सुबह 8बजे  उनके लिए नाश्ता तथा लंच भी तैयार करके देना पड़ता था।  साथ ही साथ नवजात शिशु का लालन-पालन भी बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है । इन्हीं सब में उलझ कर वो इतनी तल्लीन हो गई थी कि कब माथे की बिंदी भ्रूमध्य से खिसक गई रहती थी इसका उसे पता ही नहीं चलता था।  ।

           इसी दिनचर्या में उसके दिन महीने साल गुजरते चले जा रहे थे । पति महोदय ऑफिस से घर ,  घर से ऑफिस।  इतनें में ही ब्यस्त होकर रह गए थे ।

      अब सरिता चाह रही थी कि कहीं बाहर पर्यटन को जाते । मगर पति देव ऑफिस से छुट्टी नहीं मिलने का रोना रो कर खिसक जाते थे।  

             दामिनी जैसी दमकती खुबसूरती अब बुझने के कगार पर थी । आज सुबह जब सरिता अपनें पति मनोज के लिए टेबल पर नाश्ता लगा रही थी तभी मनोज ने सरिता की ओर देखा और मधुरस जैसे मीठे बोल में कहने लगा ”  क्या हुआ सरिता! कुछ परेशान सी लग रही हो ।”  वो क्या कहती , उसे तो अपनी जिंदगी में कुछ परेशानी लग ही नहीं रही थी । सुबह के चाय से लेकर सासू माँ तथा ससुर जी की तमाम ब्यवस्था, बच्चे का होमवर्क इसके बाद  रात 10 बजे मेन गेट में ताला लगाना   फिर सब के सो जाने के बाद खुद का भी सो जाना । इन सब में वह रच बस गई थी।  




         उसने सहजता से कहा – कुछ नहीं जी , मुझे कोई परेशानी नहीं है।  इतना कह कर वह अपने अगले रूटीन को पूरा करने में जुट गई । 

        एक गृहणी की पीड़ा को समझ पाना सहज बात नहीं होती है । उसे खुद को पता नहीं रहता कि उसे भी कुछ तकलीफ है , 

                 हाँ मगर समझना चाहें तो पति ही गृहणी के दुख तकलीफ का अंदाजा लगा सकते हैं।  

       यहाँ  सरिता के साथ यही हुआ उसके पति महोदय को आभास हो गया कि श्रीमती जी कुछ परेशान सी हैं।  

उन्होंने  एक दिन ऑफिस से वापस आते हुए एक बहुत ही सुन्दर साड़ी खरीद लिए।  घर आकर सोफ़ा में बैठते हुए साड़ी सेंटर टेबल पर रख दिया; आवाज़ लगाई सरिता! ओ सरिता!! पति की आवाज़ सुनकर सरिता तुरंत चली आई । मनोज ने साड़ी उसके हांथो में थमाते हुए कहा – लो , बहुत दिनों से तुम्हारे लिए नई साड़ी नहीं खरीदा था सो आज मन किया, मगर सरिता पर कुछ भी फर्क नहीं पड़ा। ” हर्ष ना विषाद।  ” हाँ जी ठीक है।  बस इतना कहकर अपने काम में लगी रही । मनोज अचंभित हो गया!  दो चार दिनों बाद मनोज सरिता के लिए सोने की कान की बूँदें लेकर आया कहने लगा देखो सरिता , इसे पहन कर देखो , बहुत खुबसूरत लगोगी । तुम्हारे चेहरे पर खूब जंचेगें इस पर भी सरिता खास प्रभावित नहीं हुई।  हाँ जी! सोने की चीज है अलमारी में हिफाजत से रख दोगे क्या! कहते हुए वह आंगन में  रस्सी पर सुख रहे कपड़े निकालने चली गई।  कपड़ो को लाकर  वहीं मनोज के बगल में बैठ कर कपड़े घड़ी करनें लगी । मनोज पढा लिखा नरम दिल का इंसान था वह भांप गया कि सरिता को किसी भी गिफ्ट या उपहार से खुश नहीं किया जा सकता । उसने तरकीब लगाई -सरिता लाओ इन  सब  कपड़ो को मैं घड़ी कर देता हूँ।  मनोज का इतना  बोलना था कि सरिता की आँखों में चमक आ गई।  मनोज को दिली तसल्ली हुई।  उसने मन ही मन सोचा  – मानाकि मैं सरिता को बाहर हिल स्टेशन घुमाने नहीं ले जा सकता मगर गृहस्थी के काम में हाथ तो बटा सकता हूँ।   मैंने कई-कई प्रकार के उपहार लाए मगर उसके चेहरे पर चमक वापस नहीं आई । जैसे ही मैंने उसके काम में  हाथ बटाना चाहा उसकी आँखें चमक गई । पति पत्नी एक दुसरे के दुख तकलीफ को समय रहते समझ जाएँ और  हंसी खुशी जीवनयापन करें यही तो है जिंदगी।  

              ।।इति।।

            -गोमती सिंह 

        स्वरचित, मौलिक ,अप्रकाशित

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