जीवन चलने का नाम – उमा वर्मा

 ” बच्चे बड़े हो रहे थे ।उनकी शिक्षा अपनी गति से चल रहा था कि मैं बीमार रहने लगी ।अम्मा चिंता करती ।कैसे चलेगा घर? तभी निराशा के क्षण में एक आशा की किरण नजर आई।एक गरीब माँ अपने चार बच्चों को लेकर द्वार पर खड़ी हो गई ।उसने कहा ” हम गरीब लोग हैं, गांव से रोजी-रोटी के तलाश में आए हैं कुछ बचा खुचा हो तो देने की कृपा करें ।बदले में आपके घर का काम कर दिया करेंगे ।और फिर हमने उसे रख लिया ।उसका नाम बसंती था ।

उसे खाना खिलाया और कपड़े दिया ।वह बहुत खुश हो गई ।दूसरे दिन से वह हमारे लिए सब कुछ करने लगी ।उसके रहते हमे कोई चिंता न होती ।सुबह पाँच बजे वह आकर हमें गर्म गर्म चाय पिलाती, बर्तन धोती झाड़ू पोछा कर देती ।हमें बहुत आराम हो गया उससे ।मै भी धीरे-धीरे ठीक हो।गई ।वक्त के साथ तारीखे बदलती रही ।जाने कितने चेहरे बदलते रहे,समय का पहिया अपनी गति निभाता रहा ।बच्चों के पढ़ाई के बीच मैंने भी अपनी पढ़ाई शुरू कर दिया ।

दो ही कमरे के में, परिवार के भीड़ भरी जिंदगी के बीच बच्चों और मेरी पढ़ाई निर्बाध गति से चलने लगी ।कभी-कभी बच्चे कहते ” अब बस भी करो माँ, कितना पढ़ाई करोगी ।ऐसे में तो हम पीछे रह जायेंगे तुम से ।न जाने कितनी यादें  जो अकेले पन की धरोहरऔर साथी है मेरे ।जीवन में कितने लोगों से मिलना हुआ कुछ अपने न होते हुए भी अपने से लगे।कुछ बहुत अपने होते हुए भी पराये हो गये ।

सच में कभी कभी ऐसा होता है जब कोई खास से अचानक भेंट हो जाती है तब हम अपलक उसे देखते रह जाते हैं और तब ऐसा महसूस होता है जैसे किसी जन्म की हमारी पुरानी पहचान रही हो ।लगता है यह मेरा बिलकुल अपना है ।जिसे समय के अन्तराल  ने कभी दूर कर दिया हो ।यह बड़ी आश्चर्य जनक बात है कि इस युग में भी हम रिश्तों में बंध कर जी लेते हैं उसे घसीटते रहते हैं ।




चाहत कभी घसीटी नहीं जा सकती उसे भोगना पड़ता है, जीना पड़ता  है ।कोई भी व्यक्ति किसी भी व्यक्ति से जुड़ सकता है लेकिन यह जुड़ना सनद नहीं मांगता ।जीवन में कभी धूप कभी छांव लगी रहती ।ऐसे ही जीवन चलता रहा ।बच्चों की शिक्षा पूरी हुई ।उनकी नौकरी लग गई ।बेटे का ब्याह  तय हो गया ।एक बहुत सुन्दर कन्या  मेरे घर की बहू बन गई ।सब कुछ ठीक चलने लगा था की पति की तबियत बहुत खराब हो गई ।

मै दिन रात चिंता में रहने लगी ।बीमारी समझ में ही नहीं आ रही थी ।कभी ठीक रहते कभी बेचैन हो जाते।और एक दिन ईश्वर ने उन्हें अपने पास बुला लिया ।जिसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते अब उनही के बिना जीना होगा ।अकेले समय काटने के कोई उपाय नहीं सूझ रहा था ।लगता था कुछ करना चाहिए ।फिर कागज कलम  थाम लिया ।अखबार और पत्रिका में लिखने लगी ।कुछ छपता कुछ नहीं छपता।मन को खुद समझाती कि जीवन है तो कभी धूप कभी छांव लगी रहती है ।

थोड़े दिन के बाद बेटी का ब्याह  हो गया ।जीवन कहाँ रुकता है ।भागता रहा ।सरपट।नाती पोते घर में आ गये।खुशी की किलकारियों से घर गूँजने लगा ।बेटी अपने घर में खुश थी ।नाती दस साल का हो गया तो दामाद जी की तबियत बहुत खराब हो गई ।वे अपनी बीमारी को टालने की कोशिश करने में लग गये ।डाक्टर ने जवाब दे दिया था उनकी किडनी खराब हो गई थी ।

नब्बे प्रतिशत ।बेटी बहुत चिंतित रहती ।जिसे चाय की भी आदत नहीं थी उसे यह बीमारी कैसे हो सकती है ।लेकिन होनी को कौन टाल सकता है ।वे भी बहुत जल्दी दुनिया से मुक्त हो गये।मै सोचती रहती क्या अब मेरी बेटी किसी शुभ मौके पर किसी को आशीर्वाद के दो अक्षत दे पायेगी? शायद नहीं ।दुनिया बहुत बेरहम भी तो है ।मैंने उसे समझाया ।अब तुम्हे  अपने बेटे के लिए माँ और पिता दोनों बननी है ।उसने अपने आँसू रोक लिया ।हाँ माँ अब मुझे अपने बेटे के लिए जीना है ।उसने नौकरी ज्वाइन कर ली थी ।बेटा पढ़ाई में आगे बढ़ने लगा ।वह अपनी पढ़ाई पूरी करके एक अच्छी कंपनी में सेटल हो गया ।लड़के नौकरी पर आ जाते हैं तो रिश्ते भी आने लगते हैं ।

फिर एक अच्छी कन्या से उसकी शादी भी हो गई ।सबकुछ जल्दी जल्दी होता जा रहा था ।शायद ईश्वर को यही मंजूर था ।उनकी इच्छा को भला कौन जानता था ।बेटी बहुत खुश हो गई ।बेटा बहू दोनों बहुत अच्छे हैं ।अब जिंदगी आराम से गुजरेगी।दो महीने और बीत गए ।फिर एक दिन अचानक मेरी बेटी दुनिया से मुक्त हो गई है ।जीवन चलने का नाम है चलता ही रहता है चलता ही रहेगा ।उमा वर्मा ।

 

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