“रिश्तों का तड़का” – अनिता गुप्ता

” ये जून की गर्मी, ऊपर से क्लाइंट के साथ मीटिंग ने दिमाग ही गर्म कर दिया है। अब रुचि के हाथ की कोल्ड कॉफी और मां की गोद ही इस गर्मी से राहत दिलायेगें।” सोचते हुए अनिरुद्ध ने घर में कदम रखा ।

मां को लॉबी में देख बोला,

” अरे ! मां। गर्मी में यहां क्यों बैठी हो ? चलो अन्दर आ जाओ , रुचि के हाथ की कोल्ड कॉफी पीते हैं।” कहते हुए अनिरुद्ध ने अपनी पत्नी रुचि को आवाज लगाई।

” तुम को ही मुबारक हो  रुचि के हाथ की कोल्ड  कॉफी।” मां ने तुनकते हुए कहा।

अनिरुद्ध की समझते देर नहीं लगी कि उसी की तरह गर्मी ने मां और रुचि दोनों का ही दिमाग गर्म कर रखा है। कमरे में पहुंच कर देखा तो लगा  देवी जी का कोई इरादा ही नहीं है, कोल्ड कॉफी बनाने का।

” चल बेटा। तू ही लग जा काम पर। नहीं तो आज खाना भी नहीं मिलेगा। ” अनिरुद्ध ने अपने आप से कहा और कपड़े बदल कर पहुंच गया रसोई में।

उसने तीनों के लिए कॉफी बनाकर  ट्रे में नाश्ता और कॉफी सजा दी और डाइनिंग टेबल पर ले जाकर मां और रुचि को आवाज लगाई।

दोनों आ गईं। लेकिन दोनों के चेहरे बारह बजे के सूरज की भांति तप रहे थे। मां ने एक ही घूंट में कॉफी का पूरा मग खाली कर दिया और बोली,

” काश ! मेरी जिंदगी में भी इस कॉफी के समान ठंडक होती।”  फिर एक पल को रुचि को देखते हुए बोलीं,

” दिल को कितना सकून मिलता है, जब साल में एक बार गर्मी की छुट्टियां होने पर बेटियां अपने मायके आतीं हैं। लेकिन कुछ लोगों को तो ये भी नहीं पसंद आता है।”

” क्यों क्या हुआ ? क्या इस बार दोनों दीदी नहीं आ रही हैं क्या ? ” अनिरुद्ध ने कहा।



” अरे ! मुझ से क्या पूछ रहे हो, पूछो अपनी श्रीमती जी से। ” मां ने रोष से कहा।

” मैं कहां मना कर रही हूं ? मैंने इतना ही तो कहा है कि मैं भी मायके जाना चाहती हूं।” इसमें बुरा लगने की क्या बात है ? ” रुचि बोली।

“हां ! हां ! मेरी बेटियां यहां आएं और तुम मायके चल दो। बच्चे तो खासकर अपनी मामी से ही मिलने आ रहे हैं । ” मां ने गुस्से से कहा।

अनिरुद्ध की पिछले साल फरवरी में शादी हुई थी और जून में उसकी दोनों बहने वैशाली और शैफाली अपने बच्चों के साथ मायके आई थीं, जैसा कि हर बार आती थी। दोनों के दो – दो बच्चे हैं और चारों एक नंबर के शैतान और दाल – रोटी – सब्जी को देखकर नाक सिकुड़ने वाले। फिर नानी के घर तो मस्ती करने आते है, तो यहां तो नूडल्स, पिज़्ज़ा, पास्ता, बर्गर ही खाना है और वो भी मामी के हाथ का।

इधर रुचि जिसको आए तीन महीने ही हुए थे और उसका शादी से पहले रसोई से दूर – दूर तक कोई नाता नहीं था,जून की भरी गर्मी में रसोई में दिनभर खड़े होकर काम करती रहती और बेटियां अपनी मां से बतियाती रहतीं।

इन्हीं सब बातों से घबराकर रुचि ने दीदियों के आने पर मायके जाने की बात कह दी और माहौल गर्म हो गया। अब मोर्चा अनिरुद्ध को ही संभालना था। उसने सोचा,

” अगर मैंने कुछ नहीं किया तो कभी भी रुचि  मां और बहनों को दिल से नहीं अपना पाएगी। इसलिए कुछ ऐसा करना चाहिए कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।”



” कब आ रहीं हैं, मेरी बहनें ? ” अनिरुद्ध ने पूछा और आंखों ही आंखों में रुचि को चुप रहने का इशारा किया

” रुचि के मायके जाने की बात सुन दोनों का ही आधा मन रह गया है,आने का। कह रहीं थीं , जब भाभी ही नहीं मिलेगी तो क्या मजा आयेगा ?” मां ने रुचि को घूरते हुए कहा।

” अरे वाह ! ऐसे कैसे ? ये कल की आई रुचि ही सबकुछ हो गई उनके लिए और हम कुछ नहीं । उनसे बोलों जल्दी से जल्दी आ जाएं। आप रहने दो, मैं ही फोन करता हूं । ” अनिरुद्ध ने कहा और फोन करके चार दिन बाद आने का प्रोग्राम भी पक्का कर लिया।

चार दिन बाद वैशाली और शैफाली अपने बच्चों के साथ आ गई और साथ में अपनी भाभी रुचि के लिए ढेरों गिफ्ट भी लाई।

” दीदी ! आज तो आप आराम करो  और रुचि के हाथों के दही बड़ों का आनंद लो। लेकिन कल प्लीज रुचि को राजमा चावल बनाना सीखा देना। वो क्या है ना वैशाली दीदी रुचि बना तो लेती है राजमा चावल। लेकिन आप जैसा बनाती हो ना ….।” अनिरुद्ध ने अंगुलियाँ चाटने का नाटक करते हुए कहा।

” अच्छा – अच्छा ठीक है। मैं ही बना दूंगी। मुझे क्या पता था कि मेरा भाई आज भी मेरे हाथ का राजमा चावल पसंद करता है।” वैशाली ने लाड़ से अपने भाई को देखते हुए कहा।

अगले दिन अपनी दीदी के हाथ का राजमा चावल खाते हुए अनिरुद्ध बोला,

” आज तो मजा आ गया। शैफाली दीदी ! आप कब अपने हाथों के छोले भटूरे खिला रही हो ?”

” यहां क्या ये दोनों काम करने आई हैं ? ” मां ने कहा।

” नहीं ! बिल्कुल नहीं । लेकिन  मेरी प्यारी दीदियां अपने भाई को  उसकी पसंद की डिशेज बना कर तो खिला सकती हैं। अगर दीदी ना कहती हैं तो कोई बात नहीं रुचि की बनाई डिशेज से काम चला लूंगा।” अनिरुद्ध ने बड़ी ही मासूमियत से कहा।

” ऐसे कैसे ? मेरा भाई कहे और मैं ना बनाऊं ? कल ही मैं अपने भाई के लिए छोले भटूरे बनाऊंगी।” शैफाली ने कहा।



अगले दिन खाने पर अनिरुद्ध फिर बोला ,

” वैशाली दीदी , शैफाली दीदी क्या आपको मां के हाथ की पूरी और आलू की सब्जी खाने का मन नहीं करता ?”

” हां ! हां ! करता है ना।” दोनों एक साथ बोलीं।

” कल मां के हाथ की पूरी आलू की सब्जी पक्की रही। क्यों मां ? ” अनिरुद्ध ने पूछा।

बच्चों की फरमाइश के आगे मां चुप थीं और अगले दिन उन्होंने फरमाइश पूरी कर दी।

इस तरह से एक समय का खाना तो रुचि बना लेती और शाम को कोई ना कोई फरमाइश करके अनिरुद्ध दीदी या मां को रसोई में लगा देता और रुचि उनकी मदद करती। या फिर कुछ ऑर्डर से मंगवा लेता। इस तरह से पांच – छ: दिन निकल गए और रुचि को जून की गर्मी से थोड़ी राहत मिल गई।

वीकेंड आने वाला था और मौसम विभाग ने भी शनिवार और रविवार को बारिश की घोषणा कर रखी थी। बस अनिरुद्ध ने अपनी बहनों के साथ मिल कर दो दिन की आउटिंग का प्रोग्राम बना लिया। साथ ही ये भी कह दिया कि आउटिंग पर घर की बनी कोई भी खाने की चीज नहीं जायेगी। सब बाजार का होगा और फुल मस्ती होगी।

इन दो दिनों में सबने खूब मस्ती की। अंताक्षरी , ताश, क्रिकेट, पकड़म – पकड़ाई और ना जाने कितने ही गेम खेले। इस बीच  रुचि भी सबसे अच्छे से घुल – मिल गई। अब वैशाली और शैफाली भी उसको अपनी ही बहनें लगने लगी।

दो दिन की आउटिंग के यादगार लम्हे साथ में लेकर सब घर लौट आए। लेकिन अब घर पर भी सब मिलकर कोई ना कोई गेम जरूर खेलते और रसोई के काम में दीदी और मां दोनों मदद करते, जिससे काम जल्दी खत्म हो जाए और रुचि भी उनके साथ खेल सके। क्योंकि मां और दीदी को भी रुचि का साथ बहुत अच्छा लगता।

बीस दिन कब निकल गए पता ही नहीं चला और वैशाली और शैफाली के जाने का दिन आ गया। रुचि ने दोनों को विदा करते हुए कहा,

” दीदी ! इस बार आप दोनों ने जून का महीना यादगार बना दिया। अगली बार  आप और भी ज्यादा समय ले कर आइएगा।”

रुचि की बात सुन अनिरुद्ध मंद – मंद मुस्कराने लगा।

#परिवार 

अनिता गुप्ता

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