“सबसे बड़ा रिश्ता” – उषा भारद्वाज 

 काफी समय से उसके पैर में दर्द हो रहा था कई डॉक्टर को दिखाया। लेकिन पूरी तरह ठीक नहीं हो रहा था फिर उसके आफिस में किसी ने बताया कि सरकारी अस्पताल में डॉक्टर अच्छे हैं, वहां एक बार दिखा लो ।         

          एक दिन उसने छुट्टी ली और  शहर के सरकारी अस्पताल में अपने पैर को दिखाने गई । अस्पताल में बहुत भीड़ थी। उसने पर्चा बनवाया और हड्डी वाले डॉक्टर को पूछ कर उनके सेक्शन पर पहुंच गई। वहां एक लंबी लाइन लगी थी । वह भी उसी लाइन में खड़ी हो गई। डॉक्टर साहब रूम के दरवाजे के पास टेबल लगाकर चेयर पर बैठे थे जिससे उनकी आवाज बाहर सबको सुनाई पड़ रही थी। एक-एक मरीज पर काफी समय दे रहे थे।  परेशानी के अनुसार कुछ एक्सरसाइज बताते  दवा लिखते। लेकिन एक बात उनकी हर मरीज के साथ कॉमन थी, जो अंकिता को सुनाई पड़ रही थी कि दवा लेने के बाद हमको जरूर दिखा लेना । पहले तो उसको लगा कि शायद मरीज दवा समझ नहीं पाएंगे इसलिए डॉक्टर ऐसा कह रहे हैं ,यह तो बहुत अच्छी बात है, जो इतनी केयर कर रहे हैं ,लेकिन फिर भी  अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए वहीं खड़े एक व्यक्ति से उसने पूछ लिया। “क्या  दवा लेकर दोबारा फिर डॉक्टर के पास आना जरूरी है?”

 वो सज्जन व्यंग भरी मुस्कान के साथ बोले -“हां , क्योंकि यह दवा डॉक्टर साहब अस्पताल के बाहर  मेडिकल स्टोर से लेने के लिए लिख रहे हैं, और तभी मरीज वापस आकर दवा दिखाता है, तब वह बताते हैं कैसे खानी है ।”

उसको बड़ा आश्चर्य हुआ । यह तो सरकारी अस्पताल है फिर यहां बाहर से दवा क्यों ? सरकार तो सारी दवाएं अस्पताल में मुहैया करवा रही है । फिर बाहर मेडिकल स्टोर से क्यों लेना ? यह प्रश्न उसके दिमाग में घूमने लगा उसके आगे चार मरीज थे उनके आगे एक कमजोर बूढ़ा व्यक्ति खड़ा था।  उस बूढ़े व्यक्ति ने डॉक्टर को बताया  -“हम रिक्शा चला रहे थे तभी रिक्शे को एक ट्राली वाले ने टक्कर मार दी जिससे हम गिर गए । हमारे हाथ में डॉक्टर साहब चोट आ गई है । बहुत दर्द हो रहा है।”           

            डॉक्टर ने देखा फिर उससे कहा -” इमरजेंसी वार्ड में जाओ और वहां उनसे कहना कि तुम्हारे हाथ पर एक मोटे कागज का सहारा देकर कसकर पट्टी बांध दें।”

 डॉक्टर ने पर्चा रिक्शे वाले को पकड़ा दिया । वह वहां से निकलकर इमरजेंसी वार्ड में गया । अंकिता से आगे तीन मरीज थे। 10-12 मिनट में अंकिता का नंबर आया तभी वह बूढ़ा रिक्शावाला बिना पट्टी बंधवाए वापस आ गया । 

   “क्या हुआ ? पट्टी क्यों नही बंधवाई ? डॉक्टर ने उसके हाथ को देखते हुए पूछा ।

वह  व्यथित आवाज में बोला – “डॉक्टर साहब उन्होंने कहा है कि डाक्टर से ही बंधवा लो मेरे पास समय नहीं है।”

 डॉक्टर ने रिक्शे वाले की तरफ देखते हुए दबाव डालने वाले अंदाज में कहा – वही वापस जाओ, वह बांध देंगे ।”

वह बेचारा वहीं अपने हाथ को पकड़े  दुविधा में फंसा खड़ा हो गया । शायद वह यही सोच रहा था “कि क्या करूँ?  




     अंकिता यह सब सुन और देख रही थी उससे रहा नहीं गया । उसने कहा- “चलो मैं आपकी पट्टी बंधवाती हूं ।”

अंकिता की यह बात सुनकर उस रिक्शे वाले के चेहरे पर एक खुशी की  चमक आ गई ऐसा लगा कि पल भर के लिए उसकी पीड़ा समाप्त हो गई । उसने कहा -“चलिए साहब, आपका बड़ा उपकार होगा ।नहीं तो हम रिक्शा नहीं चला पाएंगे साहब । हमारे घर में कोई और कमाने वाला भी नहीं है ।”

अंकिता ने कहा – चलो।

 अंकिता सीधे इमरजेंसी वार्ड पहुंची जहां पट्टी बांधी जाती थी उसने जाकर वहां नर्स और कंपाउंडर से निवेदन करते हुए कहा – “डॉक्टर ने कहा है इनके हाथ में किसी मोटे कागज का सहारा देकर पट्टी बांध दीजिए।”

 नर्स तल्खी भरे शब्दों में बोली-” बाहर का पैसा वो रखें और पट्टी हमसे बंधवाए।”

 अंकिता को उसकी यह बात समझ में आ गई थी , लेकिन उसने कुछ बोला नहीं उसका मकसद सिर्फ  रिक्शे वाले के हाथ में पट्टी बंधवाना था। उसको पट्टी बंधनी चाहिए। 

 उसने  रिक्शे वाले से कहा-” दादा आप पट्टी बंधवा लो और फिर  डॉक्टर के पास आ जाना ।” अंकिता तब तक वहाँ खड़ी रही जब तक नर्स ने रिक्शे वाले के हाथ में पट्टी बांधना शुरू नहीं कर दिया । 

दादाजी के चेहरे पर अंकिता के लिए कृतज्ञता झलक थी। अंकिता फिर से अपनी लाइन में आकर खड़ी हो गई। थोड़ी देर बाद अंकिता का नंबर आने पर जब वह डॉक्टर को अपने पैर की तकलीफ बताने जा ही रही थी कि तभी वो रिक्शेवाला  वहीं आ गया । डॉक्टर ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा- “बंध गई पट्टी। चलो अब जो दवाइयां लिख रहा हूँ उसको ले लेना।”

 रिक्शे वाले ने कहा – डॉक्टर साहब यह सब अस्पताल में मिल जाएंगी?

 डॉक्टर  बोले – नहीं ,ऊपर लिखी दवाइयां अस्पताल में मिलेंगी। बाकी सब बाहर से लेना है और मुझे दिखा देना। यह पट्टी वाली जो लिखी है वो मैं काट दे रहा हूं यही पट्टी तुम दोबारा बांध लेना।”

यह सुनकर अंकिता बोली – डॉक्टर  पट्टी कितने की आती होगी? आप लिख दीजिए, मैं दिलवा दूंगी ।”

डॉक्टर साहब इसके पहले भी समझ चुके थे कि रिक्शे वाले  को पट्टी अंकिता ने ही जाकर बंधवाई थी । उन्होंने बड़े ध्यान से अंकिता की तरफ देखा और पूछा- आप इनकी कौन हैं? कोई रिश्ता?

अंकिता  ने मुस्कुराते हुए कहा – “डॉक्टर साहब रिश्ता तो कोई नहीं है, पर अगर माने तो मानवता का रिश्ता सबसे बड़ा रिश्ता है। और वही रिश्ता है ।”

वहां खड़े मरीज उसकी तरफ आश्चर्य भरी नजरों से देखने लगे शायद वह भी इसी सोच में थे कि अंकिता का उस बूढ़े रिक्शेवाले से कोई रिश्ता यानी कि जान पहचान है।

ये सुनकर डॉक्टर के चेहरे पर शर्मिंदगी का भाव आ गया। उन्होंने तुरंत नीचे लिखी सारी दवाइयां काटी और वही दवाइयां उन्होंने ऊपर लिखते हुए कहा- “दादा कल फिर आ जाना हम पट्टी बंधवा देंगे और दवा समय से लेना।”

 मगर रिक्शे वाला डॉक्टर की बात शायद कम सुन रहा था वह अंकिता की तरफ कृतज्ञतापूर्ण नजरों से ऐसे देख रहा था जैसे अंकिता के किए उपकार के बदले खामोशी से अपने दिल से ढेरों दुआएं उसको देने में लगा हो।

 

उषा भारद्वाज 

 

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