पवित्र दामन-  साधना वैष्णव : Moral stories in hindi

    श्यामू और उसकी पत्नी जानकी आज बहुत खुश नजर आ रहे थे। उनका बेटा रवि दुल्हन ब्याहने जो जा रहा था । रवि एक बड़ी सी कंपनी में इंजीनियर था । उसकी होने वाली पत्नी भी उसी कंपनी में इंजीनियर थी ।

             घर में चारो तरफ ऐसी सजावट की गई थी कि लोग तारीफ करते नहीं थक रहे थे। मेहमानों की आवभगत का भरपूर इंतजाम किया गया था । इन सब कामों की जिम्मेदारी स्वयं निशा ने ले रखी थी।

       वह बहुत लगन से हर काम करवा रही थी। पैसे खर्च करने में भी उन्होंने कोई कंजूसी नहीं की थी। बारात निकलते समय घर की महिलाओं ने दूल्हे की आरती उतारने के लिए रवि की माँ जानकी से कहा- तो वे निशा के हाथ में आरती की थाली देकर बोली- निशा जी , यह आपका हक है क्योंकि रवि आज जो कुछ भी है आपकी बदौलत है।

        निशा ने रवि की आरती उतारी और उसकी बलाएँ ली, ऐसा करते समय उसकी आँखें भर आईं। बारात विदा कर घर की महिलाएँ झुंड बनाकर बैठ गईं और रवि की माँ जानकी के साथ हंसी-ठिठोली करने लगीं। इन सबसे बेखबर आंगन के एक कोने में कुर्सी पर बैठी निशा ने उन आँसुओं को बांध तोड़कर बह जाने दिया , जिन्हें उसने रवि की आरती उतारते समय आँखों में बाँध रखा था। वह पुरानी यादों में डूबने उतराने लगी।

     निशा मुम्बई में एक बड़ी प्राइवेट कंपनी में स्टेनोग्राफर के पद पर कार्यरत थी। कंपनी द्वारा उसे पूरी सुविधा प्रदान की गई थी। उसे यहाँ नौकरी करते एक वर्ष हो चुका था। वह पास के एक छोटे से शहर से आई थी। वह बहुत मेहनत से यहाँ तक पहुँची थी।उसने अपने माता-पिता से बहुत मिन्नतें की थी,तब कहीं जाकर उसे यह नौकरी करने की अनुमित मिली थी । अन्यथा उन्होंने तो मुम्बई जैसी महानगरी में  जाने के लिए साफ मना कर दिया था ।

              मुम्बई महानगरी के खुलेपन से निशा के माता-पिता को डर लगता था । सुंदर आकर्षक युवती ऊपर से अकेली रहना खतरे से खाली नही था। माता-पिता   को जिस बात का डर था एक दिन वह बात सच साबित हो गई। 

          आज से चौबीस साल पहले एक दिन वह ऑफिस मेें अपने टेबल पर बैठी कुछ पेपर तैयार कर रही थी। तभी प्यून वहाँ आया और बोला- मैडम आपको साहब बुला रहे हैं। 

            उसने सोचा कल के पेपर के संबंध में पूछने बुला रहे होंगे, वह तैयार किए हुए पेपर को लेकर साहब के केबिन में पहुँची , साहब बेसब्री से उसी का इंतजार कर रहे थे । उसने पेपर आगे बढ़ाया तो बोले- हर वक्त काम में लगी रहती हो ,कभी अपने ऊपर भी ध्यान दिया करो।

देखो, चेहरा कैसे मुरझा गया है, लो ठण्डा पियो ऐसा कह कर उन्होंने पेप्सी की एक बोतल उसकी ओर बढ़ा दी और एक बोतल से स्वयं पीने लगे। निशा ने बहुत मना किया लेकिन उन्होंने उसकी एक न सुनी । उसने मजबूरी में पेप्सी पी लिया।

     साहब ने पेपर पढ़कर सुनाने कहा। निशा ने जैसे ही पेपर पढ़ना शुरू किया उसे ऐसा लगा मानो किसी ने उसमें लिखे अक्षरों पर पानी गिरा दिया हो सब कुछ धुंधला दिखाई दे रहा था।

उसने सिर उठा  कर सामने देखा तो साहब के चेहरे पर एक अजीब सी कुटिल मुस्कान दिखाई दी। उसने सिर पकड़ लिया उसे ऐसा लगा मानो उसकी कुर्सी को कोई जोर-जोर से गोल-गोल घुमा रहा हो। इसके बाद वह बेहोश हो गई। 

         अगले दिन जब उसकी आँखें खुली तो वह कंपनी द्वारा प्राप्त अपने क्वार्टर के बिस्तर पर कराहती हुई पड़ी थी। उसका सारा बदन दर्द से टूटा जा रहा था। उसे पूरा अहसास हो चुका था कि साहब ने पूरी योजना के साथ उसे अपनी हवस का  शिकार बनाया है। उसके पवित्र दामन में दाग लगा दिया।

           वह फूट-फूटकर रोए जा रही थी, उसे सांत्वना देने वाला भी कोई नहीं था। एक बारगी उसके मन में विचार आया कि वह अपनी जान दे-दे, लेकिन दूसरे ही पल दिमाग ने सवाल उठाया कि इस मौत  पर लोगों द्वारा की जाने वाली बातों से माता-पिता के दिल पर क्या गुजरेगी ?

          फिर उसने साहब के खिलाफ पुलिस में शिकायत करने की सोची , वह उठकर जाने को तैयार हुई किन्तु अपनी ही बदनामी के डर ने उसके पैरों पर बेड़ियाँ डाल दी । वह फिर धड़ाम से बिस्तर पर गिरकर फूट-फूटकर रोने लगी।एक सप्ताह तक वह ऑफिस नहीं गई। 

               उसने मुम्बई में रहने वाली अपनी सहेली रितु से संपर्क किया और उसे पूरी बात बताई। उसकी मदद से उसने उसी की कंपनी में नौकरी प्राप्त कर ली ।

    अगले ही दिन उसने कंपनी में जाकर कार्यभार ग्रहण कर लिया और कंपनी से प्राप्त क्वार्टर में रहने लगी रितु का क्वार्टर भी यहीं था। एक महीने बाद अचानक निशा का स्वास्थ्य खराब हो गया। जब रितु को पता लगा तो वह उसे डाॅक्टर के पास लेकर गयी।

डाॅक्टर ने जांचने के बाद बधाई देते हुए कहा-बधाई हो, आपके घर नन्हा-सा मेहमान आने वाला है। निशा की सांप-छछूंदर वाली स्थिति हो गयी, न खाते बने न उगलते। उसने चेहरे पर बनावटी मुस्कान लाकर डाॅक्टर को धन्यवाद दिया और बाहर आ गई। इस मुस्कान को लाने के लिए उसने कितने दर्द सहे यह वही जान सकती है।

           रितु निशा को लेकर गार्डन में गयी और बोली- देखो, निशा तुम्हें मेरी बात बुरी जरूर लगेगी लेकिन इसमें तुम्हारी भलाई है। तुम मांग में सिंदूर लगा लो और गले में मंगलसूत्र डाल लो।इस बच्चे को इस दुनिया में आने दो।

कोई तुम्हारे पति के विषय में पूछे तो विदेश में कार्यरत हैं कह देना। यदि बाद में तुम चाहो तो इस बच्चे को अनाथ आश्रम में छोड़ देना।और कह देना बच्चा नहीं बच सका वर्ना यह दुनिया तुम्हें जीने नहीं देगी।अब आगे तुम्हारी मर्जी। 

            निशा बहुत देर तक गुमसुम-सी बैठी रही फिर अचानक उठी और जैसे उसने फैसला कर लिया बोली- तुम ठीक कह रही हो रितु। ऐसा ही होगा। दोनों वापस घर लौट गयीं। 

             निश्चित समय में निशा ने एक हृष्ट-पुष्ट बालक को जन्म दिया। उस बच्चे के लिए उसके मन में नफरत पैदा हो गयी थी, क्योंकि इसमें उस इंसान का अंश था जिसने उसके चरित्र पर दाग लगाया था और जीते जी तिल-तिलकर मरने के लिए मजबूर कर दिया था।

अस्पताल से छुट्टी हो जाने पर वह बच्चे को लेकर घर आ गई किन्तु उसे वह अपना नहीं पाई। अगले दिन सुबह होने से कुछ पहले उसने बच्चे को गोद में उठा कर ऊपर से शाल ओढ़ लिया ताकि किसी को शक न हो पाये ।

टहलते हुए गार्डन में पहुंच गई। चारों ओर चोर नजरों से देखा कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है और चुपचाप कपड़े में लिपटे हुए बच्चे को एक पेड़ के नीचे लिटाकर गार्डन से बाहर कुछ दूर पर बैठ गई।

थोड़ी देर बाद माली आया और पेड़-पौधों की देखभाल करने लगा। अचानक उसको किसी बच्चे की रोने की आवाज सुनाई दी वह उस दिशा में गया तो उसकी नजर शाल में लिपटे बच्चे पर पड़ी उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा।

उसने दोनों हाथ ऊपर उठा कर कहा-हे देवा। इतनी मन्नतों के बाद भी तूने मुझे औलाद नहीं दी और आज खुद ही मेरे गार्डन में रख कर चला गया। तू बड़ा कारसाज है रे, देवा।

          बच्चे को सीने से लगा कर वह घर की ओर भागा और पत्नी को आवाज देने लगा- जानकी , अरी-ओ जानकी देख तो ईश्वर ने आज हमारी बरसों की इच्छा पूरी कर दी। जानकी दौड़कर बाहर आई और बोली- आज सुबह-सुबह नशा कर लिए हो क्या ?

     माली श्यामू चहकता हुआ बोला- अरे नहीं रे पगली, बात ही ऐसी है कि मैं खुशी से बहकने लगा हूँ।  बच्चे को जानकी के हाथों में देकर उसने पूरी बात बताई। जानकी ने भी ईश्वर को धन्यवाद किया और बच्चे को सीने से लगा लिया।श्यामू और जानकी ने उनके जीवन के अंधकार को मिटा कर रोशनी से भर देने वाले उस बच्चे का नाम रवि रख दिया ।

          माली जब बच्चे को लेकर अपने घर जाने लगा तब गार्डन के पास से उठकर निशा भी माली से कुछ दूरी बनाकर चलने लगी। उसने उसके पीछे -पीछे जाकर उसकी झोपड़ी देख ली और संतुष्ट होकर वापस लौट आयी। उसे इस बात का सुकून हो गया कि वे लोग बच्चे का अपने बच्चे की तरह ही पालन पोषण करेंगे। 

         ऑफिस से लौटकर निशा प्रतिदिन शाम को टहलते हुए श्यामू की झोपड़ी तक जाती और माली की पत्नी से मेलजोल बढ़ाने का प्रयास करती ताकि वह अपने बच्चे को देख सके लेकिन जानकी रवि को किसी की नजर न लगे इसलिए किसी के सामने उसे ले जाने से डरती थी। निशा कभी बच्चे के लिए  कपड़े, कभी खिलौने लेकर जाती और उसे जानकी को दे आती। 

                 निशा पर धीरे-धीरे जानकी का विश्वास बढ़ने लगा फिर वह रवि को निशा के सामने लाने लगी। अब रवि भी निशा को पहचानने लगा था। उसे देखकर खुश होता और गले से आवाज निकालता। श्यामू और जानकी की झोपड़ी को तुड़वाकर निशा ने एक छोटा सा मकान बनवा दिया ताकि उसका बेटा आराम से रह सके।

        निशा के माता-पिता उस पर विवाह के लिए दबाव बनाने लगे ताकि उसकी छोटी बहन का भी विवाह कर सकें। निशा ने घर जाकर अपने माता-पिता को अपने विवाह न करने की इच्छा से अवगत करा दिया। छोटी बहन का विवाह करने के लिए कहकर लौट आई। 

         रवि स्कूल जाने लगा उसका दाखिला भी निशा ने एक अच्छे स्कूल में करा दिया था। उसे पढ़ाने के बहाने अब वह अधिक से अधिक समय रवि के साथ बिताने लगी। रवि भी उससे बहुत घुल- मिल गया था। उसे किसी भी चीज की जरूरत होती निशा से कहता। 

एक दिन रवि ने निशा को आन्टी कह कर पुकारा तो जानकी बोली- आन्टी नहीं बेटा , बड़ी माँ बोला करो। मैं तो सिर्फ तुम्हारी माँ हूँ लेकिन यह तो मुझसे भी बढ़कर तुम्हारी हर जरूरत पूरा करती हैं इसलिए तुम्हारी बड़ी माँ हैं। 

        निशा को अब अपने बेटे से नफरत नहीं थी। वह समझ चुकी थी, इसमें इस बच्चे का क्या दोष है ? अब वह रवि को अपने से भी ज्यादा प्यार करने लगी थी।

उसकी पढ़ाई और अन्य जरूरतें पूरी करने में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी। इसी कारण आज रवि ने इन ऊंचाइयों को  छुआ है। निशा के मन से भी पश्चाताप का बोझ हट चुका था। अपने विचारों मेें खोई निशा को कब रात बीत गई इसका अहसास ही नहीं हुआ। 

           सुबह की लालिमा आकाश पर फैलने लगी । वह दृढ़ विश्वास के साथ अपनी जगह से उठी और फिर से नये सूरज के साथ अपने बेटे रवि की दुल्हन का स्वागत करने को आतुर थी।

  स्वरचित। 

सुश्री साधना वैष्णव

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