ओढ़ ली चुनरिया तेरे नाम की- मुकेश पटेल

बबीता तैयार हो जाओ बाजार  जाना है अब शादी में दिन ही कितने बच्चे हैं मात्र एक महीना और अभी कुछ भी खरीदारी नहीं हो पाई है।  बबीता बोली मां अभी टाइम कितना हुआ है अभी देखो बाहर कितना धूप है चलते हैं ना 6:00 बजे से। बबीता की मां बोली नहीं तुम अभी जल्दी से तैयार हो जाओ बाजार में तुम्हें पता नहीं कितना टाइम लग जाता है।

एक महीना कब बीत गया पता ही नहीं चला और बबीता और रोशन की शादी का दिन आ गया बारात आई और बबीता और रोशन की धूम धाम से शादी हुई सुबह होते ही बबीता विदा हो गई।  सुबह विदाई के वक्त हर माँ की तरह बबीता की माँ ने भी बबीता से इतना ही गुजारिश की बेटी अब ससुराल ही तुम्हारा घर है और ऐसा कुछ मत करना जिसकी वजह से तुम्हारे बाबूजी और तुम्हारे मायके का नाम खराब हो बस तुमसे यही  विनती है।

बबीता का मायका दिल्ली से मात्र 50 किलोमीटर की दूरी पर ही पलवल में था इस वजह से वह एक डेढ़ घंटे में ही दिल्ली  अपने ससुराल पहुंच गई थी। ससुराल पहुंचते ही उसे उस दिन तो पूरा दिन अपने ससुराल के रस्म निभाने में ही बीत गया।



रोशन का परिवार बहुत बड़ा था और सभी सगे संबंधी आए हुए थे चाचा, ताऊ, मामा-मौसी यानी कि घर रिश्तेदारों से भरा पड़ा था दो-तीन दिन तो बबीता का कैसे बीता उसे खुद ही पता नहीं चला क्योंकि हमेशा कोई न कोई उसके पास रहता ही था फिर धीरे-धीरे सारे मेहमान चले गए अब घर में सिर्फ रोशन की बड़ी भाभी यानि की बबीता की जेठानी माला जी  एवं उनके बच्चे और उसकी  सासू मां, रोशन के बड़े भाई और पापा बच गए थे। घर के सभी पुरुष अपने अपने काम के लिए चले जाते थे अब घर में सिर्फ औरतें बच जाती थी।

धीरे धीरे बबीता ने घर को पूरी तरह से संभाल लिया था उसकी बड़ी जेठानी ने भी घर का सारा काम मैनेज करना अपनी छोटी देवरानी को बता दिया था।  एक दिन तो हंसते हुए बबीता की जेठानी ने बबीता से बोला कि बबीता जब से तुम आई हो मेरी शादी से लेकर अब तक पहली बार चैन की नींद सो पाई हूं नहीं तो सुबह 5:00 बजे जल्दी उठो बच्चों को स्कूल भेजो और उनका टिफिन  तैयार करो  घर के  लिए नाश्ता तैयार करो। और घर का पूरा काम करो कब सुबह से शाम हो जाती थी पता ही नहीं चलता था लेकिन जब से तुम आई हो थोड़ा सा आराम हो गया है।

बबीता और उसकी जेठानी माला जी दोनों मिलकर रहती थी ऐसा  लगता ही नहीं था कि वह दोनों देवरानी-जेठानी है बल्कि ऐसा लगता था कि छोटी बहन और बड़ी बहन है।  इनकी सास भी काफी अच्छी थी कभी किसी भी बात के लिए मना नहीं करती थी जो मन में आता करते थे।

रोशन के बड़े भैया कुछ ज्यादा पैसा नहीं कमाते थे वही कोई 12-14 हजार उनकी सैलरी थी क्योंकि वह एक प्राइवेट कंपनी में मामूली क्लर्क थे। घर का पूरा खर्च रोशन ही चलाता था क्योंकि रोशन  6 लाख के सालाना पैकेज पर जॉब करता था। सैलेरी मिलते ही रोशन कुछ पैसे निकालकर घर खर्च के लिए अपनी भाभी को दे देता था उसी से उसकी भाभी पूरा घर के खर्चे चलाती थी। अगर एक शब्दों में कहा जाए तो रोशन ही उस घर का बैकबोन था।



रोशन के सहारे ही उसके बड़े भाई के बच्चे अच्छे प्राइवेट स्कूल में पढ़ते थे क्योंकि इनका सारा फीस भी रोशन ही भरता था

बबीता को इस बात से कोई भी एतराज नहीं था कि रोशन अपना सारा पैसे से पूरे घर को चलाता था क्योंकि  रोशन ने उसे शादी से पहले ही बता दिया था कि आज वह इंजीनियर है तो अपने भैया के दम पर ही हैं भैया ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजते थे और मुझे इंजीनियरिंग करने के लिए पैसे भेज देते थे इसलिए आज मेरा फर्ज बनता है कि मैं उनके बच्चों के लिए कुछ कर सकूं उम्मीद है कि तुम्हें इस बात के लिए कोई एतराज नहीं होगा।

लेकिन लाइफ में हमेशा ही हैप्पी वाले दिन नहीं होते हैं कभी-कभी जीवन चक्र उल्टा भी चलने लगता है इसलिए ही होता है कि हमें पता चल सके कि सच में हमारे लिए अपने कौन है और पराए कौन हैं।  हुआ यूं की रोशन की कंपनी घाटे में चलने लगी और वह अपने एंप्लोई को निकालने के बारे में सोचने लगी कुछ दिन के बाद रोशन का भी नंबर आ गया और कंपनी ने 1 महीने की नोटिस पर नौकरी छोड़ने को कह दिया।

इस समय बाजार में भी मंदी छाई हुई थी कहीं पर भी नौकरी नहीं थी।  रोशन आकर घर में बैठ गया दुबारा से नौकरी सर्च करना शुरू कर दिया है लेकिन कई जगह इंटरव्यू देने तो गया लेकिन वहां से जॉइनिंग के लिए कॉल नहीं आया अब रोशन परेशान होने लगा था क्योंकि सारे घर का खर्चा रोशन के ही सैलरी से चलती थी अगले महीने तक घर का किराया भी देना था बच्चों की  स्कूल की फीस भरनी थी।



दो-तीन महीने तो जैसे तैसे करके रोशन ने काट दिया जो भी पैसा उसने कुछ सेविंग कर रखा था उसने घर पर खर्च कर दिए लेकिन अब उसके पास भी कोई जमापूंजी नहीं था जिससे घर चला सके और अभी तक नौकरी भी उसकी नहीं लगी थी।  नतीजा यह हुआ कि   बच्चों का प्राइवेट स्कूल से नाम कटवा कर सरकारी स्कूल में नाम लिखवाना पड़ा क्योंकि रोशन के भैया की तनख्वाह इतनी नहीं थी कि वह अपने बच्चों के स्कूल की फीस भर सकें।

अब तो घर चलाने का सिर्फ एक ही जरिया बच गया था रोशन के बड़े भैया की तनख्वाह।

रोशन की भाभी माला जी भी अब काफी चिड़चिड़ि हो गई थी।  कई बार तो वह बबीता को भी सुना देती थी। सब यहां  हाथ पर हाथ रखकर बैठे हुए हैं बस एक कमाने वाला है और इतने सारे खाने वाले यह नहीं कि जाकर कुछ काम ही कर ले।

बबीता भी भाभी की बात रोज सुन-सुन कर  तंग हो गई थी अब उसने सोच लिया था कि अब  जिस दिन कुछ बोलेंगी तो वह जवाब जरूर देगी।

1 दिन माला अमित को चाय दे रही थी लेकिन चाय देकर जैसे ही वापस आई  बोलना शुरू कर दिया, घर से कभी बाहर निकलना ही नहीं है बस दिन भर पेपर लेकर बैठे रहते हैं ऐसा कब तक चलेगा।  इस बार बबीता से रहा नहीं गया और वो  अपने भाभी के पास गई और बोली भाभी रोशन की नौकरी क्या छूट गई है आप लोग तो बिल्कुल  ऐसा करने लगे जैसे रोशन कुछ करता ही नहीं था।  आज तक इतने सालों से पूरे घर का खर्च कौन चलाता था रोशन ही तो चलाता था। भाभी जब रोशन के अच्छे दिन थे सब लोग इसके साथ थे मैं भी अच्छी थी आज रोशन की नौकरी चली गई है बेरोजगार हो गया है तो सब उसके खिलाफ हो गए हैं।  माला बोली की बबीता कोई जरूरी थोड़ी है कि इंजीनियर की ही नौकरी करेगा जब तक इंजीनियर की नौकरी नहीं मिलती तब तक वो कोई दूसरी नौकरी भी तो कर सकता है लेकिन नहीं दिनभर पेपर निकाल कर पढ़ता रहता है।



बबीता जानती थी रोशन घर में बैठने वाला इंसान नहीं है वह अपनी तरफ से प्रयास कर रहा है अब नहीं लग रही है तो वह क्या करें लेकिन फिर भी वह जाकर रोशन से पूछने लगी तुम कोई और नौकरी क्यों नहीं कर लेते हो दिन भर पेपर पढ़ते रहते हो।  रोशन बोला मैं पेपर नहीं पढ़ता हूं बल्कि मैं इसमें जो भी विज्ञापन निकले होते हैं । नौकरी कि वह देखते रहता हूं और उनको कॉल भी करता हूं मुझे भी पता है कि घर का खर्च भैया की तरफ से नहीं चलने वाला लेकिन मैं क्या करूं तुम ही बताओ।

बबीता भी रोशन की मजबूरी समझ रही थी लेकिन अब कैसे भी करके कुछ तो करना ही था। छोटे शहरों की अधिकांश लड़कियां शादी से पहले सिलाई कढ़ाई जरूर  सीखती हैं। बबीता ने भी अपने शहर के ही एक एनजीओ से सिलाई कढ़ाई की ट्रेनिंग ली हुई थी और अच्छा खासा कढ़ाई कर लेती थी। बबीता हाथों से बनी हुई बच्चों के सुंदर सुंदर से डिजाइन के स्वेटर भी बुनती थी।

एक दिन बबीता ने अपने पति रोशन से पूछा कि अच्छा मुझे यह बताओ यह जो ऑनलाइन की वेबसाइट होते हैं उस पर जो लोग सामान बेचते हैं उसके लिए क्या करना होता है।  रोशन ने बोला कि बस उस पर एक अपना अकाउंट बनाओ और अपने प्रोडक्ट के फोटो डालो तुम्हारी ऑनलाइन दुकान शुरू हो गई। बबीता ने बोला क्या इतना आसान है ऑनलाइन सामान बेचना।  रोशन ने बोला हां हां क्यों नहीं। बबीता बोली क्या तुम मेरा एक ऑनलाइन अकाउंट बना दोगे, रोशन बोला कि तुम अकाउंट बना कर क्या करोगी तुम्हें क्या सामान बेचना है।

बबीता बोली कि बस तुम मेरा अकाउंट बना तो दो और मुझे सिर्फ इतना बता दो कि उस पर प्रोडक्ट के फोटो कैसे डालते हैं और कैसे उसको इस्तेमाल करते हैं बाकी मैं तुम्हें बाद में बताऊंगी।

रोशन ने बबीता का ऑनलाइन वेबसाइट पर एक  अकाउंट और उसे इस्तेमाल करना भी सिखा दिया।  अब क्या था बबीता अपने कमरे में आई और उसके पास जो भी शादी में उसकी मां ने कई सारे कढ़ाई किए हुए बेडशीट दिया था और उसने खुद भी कई सारे बनाई थी अपने ससुराल लाने के लिए और अपने जेठानी के बच्चों के लिए स्वेटर भी बुन  कर लाई थी। बस क्या था बबीता ने उन स्वेटर का और बेडशीट का फोटो खींचा और वेबसाइट पर लगा दिया।



अगले 10 दिनों बाद ही एक स्वेटर और बेड  शीट का ऑर्डर बबीता के मोबाइल एप में आ गया था।  अब बबीता का हिम्मत बढ़ने लगा था उसने जो पैसे मिले थे बाजार में जाकर कई सारे कलर का उन खरीद कर लाई और स्वेटर बुनने में लग गई।  उसके इस काम में उसकी भाभी माला भी मदद करने लगी।

कुछ दिनों के बाद ऐसा हुआ कि इनके पास जो भी डिजाइन का स्वेटर यह डालते थे उसके अगले दिन तक ही या उसी दिन ऑर्डर आ जाते थे।  क्योंकि एक स्वेटर बुनने में कम से कम 1 दिन तो लग ही जाता है। इसलिए यह लोग आर्डर पूरा नहीं कर पा रहे थे। बबीता की जेठानी माला ने बबीता को सलाह दिया कि हम ऐसा क्यों नहीं करते हैं हमारे पास में ही जो गरीबों की बस्ती है वहां की औरतों को इकट्ठा करते हैं और उन्हें हम स्वेटर बुनने का आर्डर दे देते हैं उन्हें भी कुछ कमाई हो जाएगा और हमारा भी काम हो जाएगा।  बबीता बोली कि हां भाभी आपने यह बात सही कहा चलिए कल ही सुबह मिलकर बात करते हैं।

अगले सुबह देवरानी-जेठानी मिलकर बस्ती में चली गई थी बात करने के लिए।  वहां पर उन्होंने औरतों से इन बारे में बात किया तो कई सारी औरतों को अच्छा खासा स्वेटर बुनने और कढ़ाई सिलाई का काम आता था उन्होंने उन सब से आग्रह किया कि आप हमारे लिए काम करें और हम आपको इसके बदले पैसा देंगे।   बस्ती की औरतें इस काम के लिए तैयार हो गई थी।

रोशन इधर इंटरव्यू देकर घर आया तो देखा कि घर बिल्कुल ही सुना पड़ा हुआ है तो उसने अपने भैया के बच्चों से पूछा कि तुम्हारी मम्मी और चाची कहां गई हुई हैं।  तो बच्चों ने बताया कि वह पड़ोस के ही बस्ती में गई हुई है अभी आती होंगी।

जैसे ही माला और बबीता घर आई रोशन ने उनसे पूछा कि आप लोग बस्ती में क्या करने गई थी।   बबीता अभी तक तो रोशन से कुछ भी नहीं बताया था कि उसके ऑनलाइन दुकान से ऑर्डर आने भी लगे थे लेकिन अब  बात छुपाना नहीं चाहती  थी वो रोशन से बोली  कि आपने जो हमारी ऑनलाइन वेबसाइट पर सामान बेचने के लिए अकाउंट बनाई थी।  उससे हमें ऑर्डर भी आने लगे हैं और आर्डर भी इतना आने लगे हैं कि हम उसकी डिलीवरी नहीं दे पा रहे हैं इस वजह से हमने सोचा कि क्यों ना बस्ती की औरतों से बनवाया जाए और उन्हें ऑनलाइन सेल करा जाए।



आज रोशन को अपनी पत्नी पर गर्व हो रहा था कि वह एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है लेकिन उसकी पत्नी उससे भी ज्यादा तेज और बुद्धिमान निकली मैं यह काम क्यों नहीं कर पा रहा था मैं भी तो शुरू कर सकता था लेकिन मेरे दिमाग में यह बात नहीं आया।  उसके बाद रोशन के दिमाग में यह आया कि वह अपना खुद का ही ऑनलाइन वेबसाइट खोलें क्योंकि उसे किसी से बनवाना तो है नहीं वह खुद ही बना सकता है। फिर इसने अपनी ऑनलाइन वैबसाइट “खरीदो इंडिया डॉट कॉम” के नाम से खोल लिया।

शुरुआत में तो उन्होंने अपने घर का सामान बेचना शुरू किया था।  लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने और भी लोगों को इसके साथ आने के लिए जोड़ लिया था आज रोशन की वेबसाइट इंडिया में हिट हो गई थी।

बबीता के परिवार का फिर से नॉर्मल लाइफ जीने लगा था सब कुछ ठीक हो गया था बच्चों का एडमिशन फिर से प्राइवेट स्कूल में करवा दिया गया था अब उसके जेठ जी भी अपना नौकरी छोड़कर अपने घर के व्यापार मे ही लग गए थे।

दोस्तों कहने का मतलब यह है कि आप अपने आप को सिर्फ रसोई तक सीमित मत कीजिए जो भी आपके अंदर हुनर है जो कलाकारी आपको आती है उसका को बाहर निकालिए आज आपके पास बहुत सारे माध्यम है बाहर निकालने का सोशल मीडिया का जमाना है उस हुनर को लोगों के बीच लेकर तो आइए फिर देखिए क्या होता है।

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