नयनसुख – नीरजा कृष्णा

आज सीमा अपना मोबाइल उनके कमरे में भूल आई थी और सब्जी खरीदने बाहर निकल गई थी। पहले तो उन्होंने बहू को पुकारा पर जब कोई उत्तर नहीं मिला… उत्सुकतावश वो मोबाइल खोल कर गैलरी की फोटो देखने लगी।

मयंक और सीमा दोनों बच्चों के साथ एक सप्ताह के लिए भूटान गए थे। कल ही तो लौट कर आए थे। वो वहाँ का हालचाल जानने और सब फोटोग्राफ्स देखने के लिए बहुत उत्सुक थी। कल तो उनकी थकावट का ख्याल करके वो कुछ नहीं बोलीं पर आज सुबह से तो वो व्याकुल होकर दो तीन बार अपनी पोती के आगे गिड़गिड़ा चुकी थीं,

“अरे सवि! तुमलोग भूटान में कहाँ कहाँ घूमेफिरे…सब बताओ ना। और तुमलोगों ने फोटो वगैरह भी तो क्लिक की होंगीं…वो भी दिखाओ ना।”

सवि झल्ला गई और चिल्ला पड़ी थी,

“दादी, आप बहुत परेशान करती हो। किसी भी बात के लिए हाथ धोकर पीछे पड़ जाती हो। अभी मूड नहीं है और वैसे आप वो फोटोज़ देख कर क्या ही करोगी?”

सवि के तेवर देख वो बेचारी सहम गई थीं और चुप हो गई। अभी मोबाइल हाथ लग गया तो मोह का संवरण नहीं कर पाई और बहुत खुश होकर तस्वीरें देखने लगी थी। एक चट्टान पर बेटे बहू की फोटो देख कर निहाल होकर उनके मुँह से बरबस ही निकल गया,”आहा, कैसी रामसीता जैसी जोड़ी है। भगवान बुरी नज़र से बचाए।”

अभी वो देख ही रहीं थी …तभी तमतमाती हुई सीमा आ गई और उनके हाथ में मोबाइल देख कर चिढ़ कर बोली,

” ये ठाठ है। आप यहाँ मजे से फोटो देख रही हैं और वहाँ मैं मोबाइल के लिए कितनी परेशान थी।”

वो डर कर बोली भी,”बेटा, तुम शायद यहीं मोबाइल छोड़ गई थीं।”

“हाँजी, मैं तो एक नंबर की भुलक्कड़ हूँ। आप तो मेरी जासूसी करने में लगी रहती हैं। ऐसे चोरी चोरी देख रही हैं…हम दिखाते ना।”

“बहू, तुम तो बात का बतंगड़ बना रही हो…।”

तभी मयंक भी वहाँ पहुँच गया और उनको समझाने लगा,”इस तरह चोरी छिपे किसी का मोबाइल देखना गलत बात है मम्मी।”

वो आँखों में आँसू भर कर बोलीं,

“सॉरी बेटा! वैसे मैं किसी गैर का नहींं,अपनी बहू का मोबाइल देख रही थी। हमलोग अपनी सीमित आय में कभी घूमने नहीं जा सके थे। अब मेरे बच्चे कहीं जाते हैं…तो मैं तुमलोगों की फोटो देख कर नयनसुख पा लेती हूँ…बस।”

वो तेजी से दूसरे कमरे में चली गईं। सभी लोग लज्जित से खड़े रह गए।

नीरजा कृष्णा

पटना

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