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नानी का गांव –   कविता भड़ाना

बहुत सालों बाद यूपी के ग्रामीण क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले प्यारे से “नानी के घर” जानें का मौका मिला

गर्मियों की छुट्टी चल रही है तो मैं भी कुछ दिनों के लिए पीहर आई हुई हूं और एक दिन बातों ही बातों में मम्मी

 मुझ से बोली …

“चल तुझे तेरे नानी के घर घुमा लाऊ” मेरे मन में भी हिलोरे सी उठने लगी…. दो बेटियों की मां बन चुकी हूं, घर परिवार की जिम्मेवारियों के बीच पिसते हुए, जब भी गर्मियों की छुट्टी होती है तो मेरा मन बच्चों की तरह पीहर जानें को मचलने लगता है, बचपन की खट्टी मीठी यादें दिमाग में अपना बसेरा कर लेती है और फिर कई सालों बाद नानी के घर जानें का मौका मिल रहा था तो मैंने खुशी से हां कर दी

अगले दिन मैं और मेरी मम्मी ड्राइवर के साथ दो घंटे के सफर के बाद नानी के गांव पहुंचे

बहुत कुछ बदल गया था पर कुछ चीजें वैसी की वैसी ही थी…. गांव में घुसने से पहले एक बड़ा सा प्रवेश द्वार, फिर बड़ा सा प्राचीन शिव मंदिर, आम का बाग , दोनो तरफ लहराते खेत खलियान… कच्चे पक्के मकान फिर चौपाल, एक बड़ा सा सरकारी स्कूल और फिर आया मेरी नानी का घर… बहुत बदल गया था नानी का घर भी .. बिलकुल आधुनिक…पर मेरे बचपन के पसंदीदा फलों के पेड़ आम, जामुन, शहतूत अभी भी वैसे ही थे और मानो खुश होकर अपने बचपन के साथी का स्वागत कर रहे हों…. पूरी पूरी दोपहरिया बचपन में अपने मामा के बच्चो के साथ इन्ही पेड़ो पर उछलते कूदते बिता देती थी…अब तो बिजली की 24 घंटे वाली सेवा के साथ घरों में एसी कूलर लगे हुए है पर मुझे याद है, पहले कभी पूरा दिन तो कभी पूरी रात बिजली नहीं आती थी, तो भी हमें कोई शिकायत नहीं होती थी बल्कि हम और भी मजे करते … मामा के साथ खेतो पर टयूबवेल पर ठंडे ठंडे पानी से नहाना, बाग से ताजे तोड़े आमों को चूसना… वाह!!!! क्या दिन तो वो भी….

तभी एक जानी पहचानी सी आवाज आई…

 “चुस्की ले लो” … ओह चुस्की की बात कैसे याद नहीं रहीं..बचपन में चुस्की वाला आता था साइकिल पर और उसके आवाज लगाते ही हम सब बच्चे उसे घेर लेते थे..




 ऑरेंज वाली और दूध की नारियल वाली ये दो ही तरह की चुस्की होती थी उस समय, पर जो स्वाद उनमें आता था ना वो आजकल की इन ब्रांडेड आइस्क्रीमो में रती भर भी नही है  

 एक बात और चुस्की वाले काका पैसे के अलावा कटोरे भर के गेहूं या दूसरे अनाज के बदले भी चुस्की देते थे…

 मैने मम्मी को बोला मुझे चुस्की खानी है और बाहर गली में आ गई .. “अरे आप तो हमारे ही चुस्की वाले मामा है”

  मैं खुशी से बोली तो उन्होंने चौंकते हुए मेरी तरफ देखा और बोले अच्छा तो हमारी भांजी रानी आई है…

  बूढ़ा हो गया हूं पर अपनी सभी बहनों के बच्चो को पहचानता ही हूं… उन्होंने मम्मी को देखकर कहा..

  फिर मैने अपनी पसंद की सभी चुस्कियां खाई 

  जाते जाते 10रुपए का नोट “चुस्की वाले मामा” मेरे हाथ में ये कहकर थमा गए की “ये तो बहन बेटियों का मान होता है” और खूब सारा आशीर्वाद देकर चले गए…

  शाम तक मैंने भी जैसे अपना पूरा बचपन एक बार फिर से जी लिया था और ढेर सारे आम, जामुन, अचार, घी और यादों के साथ अपनी नानी और नानी के गांव से विदा ली…

  मौलिक रचना

  कविता भड़ाना

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