मायका – नया जीवनदान – पूजा मनोज अग्रवाल

  “मम्मा …क्या पापा हमें हमेशा के लिए छोड़ कर चले गए हैं ? रिद्धि दीदी कह रही थी….. कि वो अब कभी वापस नहीं आएंगे , कहते – कहते रेणू की छोटी बेटी सिद्दि की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बह निकली ।

   मूकबद्ध  रेणू ने अपनी दोनो बेटियों  सिद्दि और रिद्धि  के आसूं पोछे , उन्हें अपने हृदय से लगा कर वह अपने पिछले दिनों की अविस्मरणीय यादों में खो गई  ।

   अभी कल तक तो रेणू की जिंदगी बहुत खुशहाल थी , हंसता खेलता एक प्यारा  सा परिवार था , पर अचानक समय ने करवट ली और उसकी खुशहाल जिंदगी बेरंग और सूनी हो गई ।

   रेणू का विवाह एक संयुक्त परिवार में हुआ था  । पति सोमेश से असीम प्रेम मिला , सो उनसे एक पल की दूरी भी उसे गवारा न थी । इसी कारण  मायके भी वह कभी- कभार ही आया करती थी । विवाह को केवल आठ बरस ही बीते थे , कि एक भयानक कार दुर्घटना  में  सोमेश की मृत्यु हो गई । पुत्र की आकस्मिक मृत्यु का दुख ससुर जी सहन ना कर सके और हृदयाघात  से वे भी चल बसे ।

     घर के बड़ो ने  सलाह मशवरा करके पारिवारिक व्यवसाय  , और उन सभी के पालन पोषण का उत्तरदायित्व रेणू के जेठ जेठानी को सौंप दिया । परंतु जेठ -जेठानी ने उसकी और बच्चियों की जिम्मेदारी उठाने वाली बात को एक सिरे से नकार दिया था । उनके इस कठोर निर्णय से रेणु हतप्रभ रह गई …, संयुक्त परिवार का प्रेम सोमेश के जाते ही  पल भर मे खत्म हो गया था । एकाएक वह बेसहारा व बच्चियाँ अनाथ हो गई थी , क्या पति के जाने से उनके घर पर उसका कोई वर्चस्व न था ….????  यह सब सोचते विचरते रात आँखों-आँखो में ही व्यतीत हो  गई …..अब सिर्फ मायका ही उसका एकमात्र  सहारा था । अगले दिन सोमेश की तेरहवीं थी , जेठ जेठानी का रवैया देखते हुए उसके पिता दीनानाथ जी दोनों बच्चियों और रेणू को अपने साथ  लिवा लाने का फैसला किया   ।


         रेणू के मायके में उसके माता पिता और भाई – भाभी और एक छोटी बहन थी सब रेणू के दुख से बहुत विचलित थे , परंतु भगवान की नियति के आगे किसी की नही चलती , अब वो रेणू के जीवन को दोबारा पटरी पर लाने का प्रयास करने लगे । उसके भाई -भाभी दिनेश और विभा ने बच्चियों का एडमिशन अपने ही बच्चों के  स्कूल में करवा दिया । मां सभी बच्चो को भरपूर प्यार देती , रेणु भी घर के कामों में माँ और विभा का पूरा साथ देती ।

     रेणू पढी लिखी थी तो उसके माता- पिता ने उसका मनोबल बढ़ाया और उसे अपने पैरो पर खड़ा होने के लिये प्रेरित किया । अनु रेणू और रिद्धि सिद्धि की जरूरतों का ध्यान रखती । धीरे- धीरे वह गमगीन जिन्दगी से निकल कर अपनी बच्चियों के भविष्य के  लिए सचेत होने लगी थी। इसी बीच छोटी बहन अनु का  विवाह भी  हो गया । पर विभा ने उसे अनु की कमी खलने नही दी ।

    आज कई  दिन बाद रेणू के चेहरे  पर मनमोहक मुस्कान थी ,एक प्राइवेट स्कूल में उसे बतौर अध्यपिका जो नियुक्त कर लिया गया था । पूरा परिवार उसकी उपलब्धि से बहुत प्रसन्न था । मां और विभा दोनों ने मिलकर आज रेणू का मनपसंद खाना बनाया ।

     रेणू ने स्कूल जाना शुरू किया तो उसकी भाभी विभा ने दोनो बच्चियों की पूरी  जिम्मेदारी अपने कन्धों पर उठा ली , विभा रिद्धि सिद्धि को अपने बच्चों के साथ ही समय पर स्कूल भेजती , उन्हें पढ़ाती लिखाती व उनकी गृह कार्य  में मदद करती ।

     विभा ने रेणू का भरपूर साथ दिया , मायके में सभी  के साथ,  सबके प्यार और विश्वास ने बेजान रेणू को फ़िर से जीवन  जीना सिखाया । मायके में भाई भाभी के  सहयोग से रेणू दोनों बच्चियों को अपने पैरो पर खड़ा करने में कामयाब हुई ।


      आज रेणू की बड़ी बेटी रिद्धि  का विवाह  है , दिनेश और विभा  ने विवाह की तैयारियों मे कोई कोर- कसर न रखी थी  , बारातियों का स्वागत और शादी के समारोह मे कोई कमी नही की । इतने सब पर भी रेणू के मन में एक अजीब सी हलचल मची हुई थी ।

     रेणू सोमेश की फोटो को टकटकी लगाए देख रही है…”आज आप होते तो, हमारी रिद्धि का…..” हृदय से एक हूक सी उठी और आँसूओं के रूप मे बह निकली .. उसकी रुलाई फूट पड़ी  ।

   “रेणू जीजी ! कहां खो गई आप….? , देखो ना वर वधु फेरों पर बैठे है ,और आप यहाँ  आँसू बहा रही हैं, ” विभा के प्यारे से स्वर  ने रेणू की तंद्रा भंग की , भावुक रेणू ने अपने आँसू छिपाने के लिए मुंह फेर लिया । परंतु उसकी सजल आँखें विभा से छिप ना सकीं थी ,,,,  विभा ने रेणू के आँसू पोंछते हुए उन्हें अपने गले से लगा लिया ,,,।

”  जल्दी करो भई  विभा ” दिनेश ने कमरे मे दाखिल होते हुए कहा …., “हमारी बड़ी बिटिया का कन्यादान नही करना है क्या,,,”?

    दिनेश के शब्द सुनकर  रेणू के बहते हुए गम के आँसू खुशी के आंसुओ में परिवर्तित हो चुके थे,,, । विभा और दिनेश का धन्यवाद करने के लिए उसके पास शब्द नहीं थे । भाई-भाभी को मन ही मन आशीष देती  हुई रेणू खुशी – खुशी विवाह वेदी की और बढ़ चली …. ।

रेणू के मायके वालों ने उसका और उसकी दोनों बच्चियों का जीवन संवारा , उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होना सिखा दिया था । उसके मायके वालों ने पूर्ण रूप से अपना उत्तरदायित्व निभाया । अगर रेणू को ऐसा मायका ना मिला होता तो शायद वह रिद्धि और  सिद्धि के खुशहाल जीवन और उज्जवल भविष्य की कल्पना भी नहीं कर सकती थी…. ।

स्वरचित मौलिक

पूजा मनोज अग्रवाल

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