क्या दामाद बेटा नहीं बन सकता?-मुकेश कुमार

सुमन की आज सगाई होने वाली थी घर में खुशियों का माहौल था घर के सारे लोग लड़के वालों के  स्वागत के इंतजार में थे.थोड़ी देर में बाहर दरवाजे पर हॉर्न की आवाज सुनाई दी। सुमन के बाबूजी महेंद्र प्रताप जल्दी से बाहर की ओर दौड़े और लड़के वालों का आदर सत्कार के साथ घर में लेकर आए।

जितनी खूबसूरत सुमन थी उतना ही खूबसूरत सुमन का होने वाला पति नीरज भी था जब दोनों एक साथ बैठे तो बिल्कुल ही राम-सीता की जोड़ी लग रहे थे।  कुछ देर बाद दोनों ने एक दूसरे को अंगूठी पहनाई और सगाई की रस्म समाप्त हुई और उसी दिन छह महीने के बाद दिसंबर में शादी का दिन फिक्स हो गया।

नीरज ने जाते हुए सुमन को एक मोबाइल गिफ्ट दे गया और उसमें अपना नंबर भी सेव कर दिया था अब क्या था सगाई के बाद से सुमन और नीरज में खूब बातें होने लगी।  कई बार तो पूरी रात एक दूसरे से बात करते रह जाते थे। इन 2 महीनों में ही नीरज और सुमन ऐसे घुल मिल गए थे जैसे लगता था कि बरसों से एक दूसरे को जानते हों।



एक दिन अचानक सुमन के बाबूजी महेंद्र प्रताप को हार्ट अटैक आया और उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती किया गया डॉक्टर ने बहुत जल्द ही ऑपरेशन करने के लिए कहा।  महेंद्र प्रताप जी का उसी शहर के एक नामी हॉस्पिटल में ऑपरेशन कराया गया।

महेंद्र प्रताप जी जब घर आए तो उन्होंने नीरज के मां से फोन लगा कर शादी के दिन को और कम करने को कहा पता नहीं उनको क्यों डर लग रहा था उन्हें ऐसा लगता था क्या पता  मैं कब मर जाऊं वह अपने जीते जी अपनी बेटी के हाथ पीले कर देना चाहते थे। लड़के वाले इस बात के लिए राजी हो गए और सुमन और नीरज की शादी अक्टूबर में ही हो गई।

सुमन अपने मां बाबूजी की इकलौती बेटी थी और उसकी शादी उसी शहर में हुई थी जिस शहर में उसका मायका था इसलिए हर एक दिन बीच करके वह अपने मायके अपने बाबूजी को देखने आ जाती थी। सुमन के बाबूजी का स्टेशनरी का दुकान था उसी दुकान से महेंद्र प्रताप जी का घर परिवार चलता था जब से उनको हार्ट अटैक हुआ है डॉक्टर ने उन्हें बेड रेस्ट करने के लिए बोल दिया है सुमन की मां ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी इस वजह से वह दुकान नहीं चला सकती थी।

जो भी अभी तक कमा कर जमा पूंजी रखे थे महेंद्र प्रताप ने अपनी बेटी को दहेज में दे दिया और बाकी के बच्चे अपनी बेटी के शादी में खर्च कर दिया।  अब तो घर चलाने के पैसों के भी कमी होने लगी। शुरू में कुछ दिन तो सुमन ने अपने पास कुछ पैसे जमा करके रखे थे वह अपनी मां को दे दिया।

लेकिन सुमन भी कितने दिन तक ऐसे मदद करती।  सुमन जब भी अपने मायके जाती तो अपने पापा की रहती स्टेशनरी वाली दुकान भी खोल देती थी और उससे जो भी बिक्री होता था वह पैसे अपनी मां को देकर आ जाती थी इससे उसका मम्मी पापा का बोझ भी हल्का हो जाता था।



नई नवेली दुल्हन को रोज मायके जाना सुमन की सास को पसंद नहीं था। अब सुमन की सास मायके  जाने पर रोकने लगी बोली बहू यह क्या तुम लगा रखी हो जब देखो मायके चली जाती हो एक शहर में मायका है इसका मतलब यह तो नहीं कि रोज मायके  ही पहुंचे रहो फिर तुम्हारे बाबूजी ने शादी ही क्यों किया जब बेटी को अपने पास ही रखना था तो अपने मम्मी पापा से कह दो कि वह एक काम वाली घर में रख ले अगर ज्यादा दिक्कत हो रहा हो तो।

सुमन अपनी सास से यह बात कैसे बताएं कि वह अपने मायके अपने मम्मी पापा की सेवा करने नहीं बल्कि उनकी स्टेशनरी शॉप को खोलने जाती है अगर उसके मम्मी पापा के पास इतने ही पैसे होते तो फिर बात ही क्या थी और फिर शादी इसीलिए तो एक ही शहर में उसके मम्मी पापा ने किया कि जब जरूरत पड़ी तो बेटी उनकी मदद कर देगी।

सुमन ने अपनी सासू मां से कहा मम्मी जी आपको याद है जब हमारी सगाई हो रही थी तो पापा ने आपसे कहा था कि जब हमारी बेटी की जरूरत होगी तो आप इसे मायके तो आने देंगे ना तो आप ने हां में जवाब दिया था क्या भूल गई आप।  सुमन के सासु मां ने कहा मैंने कभी कभार के लिए हां कहा था यह नहीं कहा था कि शादी होने के बाद अपने मायके में ही डेरा डाल लो।

कुछ दिन के बाद सुमन के बाबूजी को दोबारा अटैक आया और हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया।  सुमन को जैसे ही पता चला जल्दी से वह हॉस्पिटल पहुंची। हॉस्पिटल पहुंची तो हॉस्पिटल वालों ने इलाज का एक लाख खर्च बताया।  सुमन के पास इतने रुपए कहां थे जो अपने पापा का इलाज करा पाती उसने अपने पति नीरज से इस संबंध में बात किया। नीरज सुमन को बहुत ही प्यार करता था उसने बोला तुम चिंता मत करो पैसे का इंतजाम हो जाएगा आखिर तुम्हारे पापा मेरे पापा भी तो हैं।  सुमन का को अपने पति नीरज का इस तरह से सपोर्ट करना बहुत ही अच्छा लगा।



हॉस्पिटल से छुट्टी हो कर सुमन के पापा घर आ गए थे।  

एक दिन सुमन अपने सास से अनुमति मांगी की मम्मी जी मैं अभी अपने मायके में कुछ दिन रहूंगी।  सुमन के सास ने कहा देखो बहू अब तुम्हारे सुख दुख हमारे इस घर से जुड़े हुए हैं ना कि उस घर से अपने मम्मी पापा को कह दो कि वह किसी और रिश्तेदार को बुला ले या कोई काम वाली रख ले।

सुमन ने अपने सासू मां को कहा नहीं माँ जी  मैं अपने पापा को अकेले नहीं छोड़ सकती मैं उनकी इकलौती संतान हूं उन्होंने बहुत प्यार से मुझे पाला है।  मैं बेटी हूं फिर भी मुझे बेटे जैसा सुख दिया किसी भी चीज में आज तक मेरे पापा ने रोक नहीं लगाया जो मैं चाहती थी वह किया।  आज पापा को मेरी जरूरत है तो मैं पीछे नहीं हट सकती हूं। मैंने इस संबंध में नीरज से भी बात कर लिया है उसने भी बोला है कि जाकर कुछ दिन रह लो मैं यहां मैनेज कर लूंगा।

माँ जी  शादी होने का मतलब यह नहीं है कि बेटी ससुराल की होकर रह जाती है मायका से उसका नाता ही टूट जाता है।  मैं तो हमेशा अपने मां बाप के सुख दुख में साथ दूंगी आपको तो पता ही है कि उनका मेरे सिवा कोई नहीं है और फिर कुछ दिनों की ही तो बात है।

बेटी होने के कारण मेरा भी तो कुछ फर्ज है अब मेरा कोई भाई नहीं है तो भाई वाला फर्ज भी तो मुझे ही निभाना होगा।  मम्मी जी यह घर भी मेरा है और वह घर भी मेरा है।



तभी नीरज ऑफिस से घर आ गए थे उन्होंने मम्मी जी को समझाया मां तुम्हें तो पता ही है कि सुमन का कोई भाई नहीं है अब ऐसे बुरे वक्त में हम लोग साथ नहीं देंगे तो कौन देगा।  आपकी तबीयत खराब होती है तो सुमन कितना आपकी सेवा करती है तो क्या सुमन के मां बाबूजी की तबीयत खराब होती है तो मेरा कुछ भी फर्ज नहीं बनता है।

मां तुम ही बताओ बहुत लोग बहू से तो बेटी बनने की उम्मीद लगाए रहते हैं लेकिन क्या कभी सोचते हैं कि दामाद बेटा नहीं बन सकता।  जब बहू का यह फर्ज होता है कि जीवन भर अपने सास ससुर की सेवा करें तो क्या एक दामाद का यह फर्ज नहीं बनता है कि वह भी अपने सास-ससुर की दुख तकलीफों में उनका सहारा बने।

 जाओ अपनी मम्मी पापा का हेल्प करो मैं भी ऑफिस से आते जाते वक्त तुमसे मिल लिया करूंगा।  सुमन की सास देखती रह गई और सुमन अपने मायके अपने मां बाबूजी के पास बेटी होने का फर्ज निभाने  चल दी थी।

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