कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा

कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा | Kartik Purnima Vrat Katha Hindi PDF Summary

नमस्कार दोस्तों, इस लेख के माध्यम से हम आपको कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा PDF / Kartik Purnima Vrat Katha PDF in Hindi के लिए डाउनलोड लिंक दे रहे हैं। हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का खास महत्व होता है। कार्तिक माह सभी महीनो में सबसे श्रेष्ठ महीना माना जाता है। इस माह में लोग ज्यादा दान करते हैं चाहे बो खाना हो या पहनने के लिए कपडे।  इस दिन में किये गए दान – पुण्य का अनेक गुना फल प्राप्त होता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन किए जाने वाले दान-पुण्य समेत कई धार्मिक कार्य विशेष फलदायी होते हैं। पूर्णिमा व्रत का हिंदू सनातन धर्म में बहुत अधिक महत्व माना गया है। कार्तिक पूर्णिमा व्रत को करने से कुंडली में लगा हुआ दोष हट जाता है। यदि आपकी कुंडली में चन्द्रमा की महादशा व अन्तर्दशा चल रही है, तो पूर्णिमा व्रत अवश्य करना चाहिए।

कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा PDF | Kartik Purnima Vrat Katha PDF in Hindi

पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस था. उसके तीन पुत्र थे- तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली. भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिक ने तारकासुर का वध किया। अपने पिता की हत्या की खबर सुन तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए. तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की ब्रह्माजी तीनों की तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो. तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा।

इसके बाद तीनों ने किसी दूसरे वरदान के बारे में सोचा और इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा- जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके। एक हजार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।


तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुए. ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया. तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया। तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया. इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हुए और भगवान शंकर की शरण में गए. इंद्र की बात सुन भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।

इस दिव्य रथ की हर एक चीज देवताओं से बनीं. चंद्रमा और सूर्य से पहिए बने. इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चार घोड़े बनें. हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा बनें। भगवान शिव खुद बाण बनें और बाण की नोंक बने अग्निदेव. इस दिव्य रथ पर सवार हुए खुद भगवान शिव. भगवानों से बनें इस रथ और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जैसे ही ये तीनों रथ एक सीध में आए, भगवान शिव ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया. इसी वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा। यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ, इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा नाम से भी जाना जाने लगा।

कार्तिक पूर्णिमा पूजा विधि PDF | Kartik Purnima Pooja Vidhi PDF in Hindi

  • सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान करने के बाद सूर्य को जल अर्पित करें। संभव हो तो स्नान गंगा, यमुना या किसी भी पवित्र नदियों में करें। सूर्य को जल देने के लिए तांबे के लोटे में जल ले कर उसमें लाल फूल, गुड़ और चावल मिला लें।
  • इस दिन घर के मुख्य द्वार को आम के पत्तों से सजाएं और शाम को सरसों का तेल, काले तिल और काले वस्त्र किसी गरीब या जरुरतमंद को अवश्य दान करें।
  • इस दिन तुलसी पूजा और दीपक जला कर तुलसी के स्तोत्र का पाठ करें।
  • इसके बाद 1, 3, 5, 7 या 11 बार परिक्रमा जरूर करें। इसके बाद भगवान शिव के साथ ही भगवान विष्णु के पूजा करें और व्रत पालन कर रहे हो तो नमक का त्याग करें। कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूजन होने के बाद अंत में चन्द्रमा की छः कृतिकाओं का पूजन करना भी लाभदायी होता हैं।

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