दुख का रिश्ता – सुभद्रा प्रसाद : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : रोहित आज बहुत खुश था |वह जल्द से जल्द अपनी माँ के पास पहुंच जाना चाह रहा था |जितनी तेजी से वह घर की ओर

जा रहा था, उसका मन उतनी तेजी से पीछे की ओर भाग रहा था |

         वह अपने माता- पिता की इकलौती संतान था |पिता एक फैक्ट्री में काम करते थे |घर में किसी चीज की कमी न थी |माता-पिता उसे बहुत प्यार करते थे और वह अपने घर में बहुत खुश था |उसके पापा का सपना था उसे इंजीनियर  बनाना , पर वे अपने सपने को पूरा करने के लिए रह ही नहीं पाये |

रोहित मात्र दस वर्ष का था, तभी एक एक्सीडेंट में पापा का निधन हो गया और उसे अपनी माँ के साथ अपने मामा के पास आ जाना पड़ा |मामा ने उसकी माँ को  एक छोटे से प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका के पद पर नौकरी लगवा दिया और अपने घर में रहने को जगह दे दी |

मामा ने अपने घर में रखा तो जरूर,पर हरदम मामा- मामी उसे जली कटी सुनाते रहते | ऐसे तो वे अपने दोनों बच्चों को भी सुनाते,पर उसे लगता उसे ज्यादा सुनाते हैं | माँ की आमदनी ज्यादा तो न थी, पर उन दोनों का गुजारा हो सकता था, इतना मिलता था |

वह चाहता था कि माँ अलग कमरा किराए पर लेकर रहे, पर माँ इसके लिए राजी न होती |उसका कहना था कि साथ रहने से उनका सहयोग और सुरक्षा बना रहेगा |जब वह ज्यादा गुस्सा करता या उदास होता तो माँ समझाती कि वह इन सब बातों पर ध्यान न दे |

अपना सारा ध्यान अपनी शिक्षा और कैरियर बनाने में लगाये |जब वह  कुछ बन जायेगा, तब माँ उसके साथ रहने लगेगी | उसने माँ की इस बात को मन में बैठा लिया| मामा- मामी जितना जली कटी सुनाते, उसके मन में कुछ बनने और माँ को यहाँ से ले जाने का निश्चय उतना ही दृढ़ होता गया |

आज उसकी यह इच्छा पूरी होने वाली थी | वह इंजीनियर बनकर एक कंपनी में नौकरी पा गया था और उसे कंपनी की तरफ से क्वार्टर भी मिला था |वह माँ को अपने साथ ले जाने आया था |

            “साहब रिक्शा रोक दूं? ” रिक्शे वाले की आवाज से उसकी तन्द्रा भंग हुई |वह घर पहुँच चुका था | उसने रिक्शे वाले को किराया दिया और घर में चुपचाप आ गया |वह अचानक माँ के सामने आना चाहता था |

        उसे सुनाई दिया | माँ मामा से पूछ रही थी -“भैया, रोहित कबतक आयेगा? “

            “आता ही होगा ” मामा ने कहा “

“तुमने अपने जाने की तैयारी कर ली है ना? “

  मामी ने पूछा |                           “आपलोगो को छोड़कर जाने का मन नहीं कर रहा |” माँ ने कहा |

          “ऐसा मत कहो |इसी दिन के लिए तो मैं अपने मन को कड़ा कर उसे जली कटी सुनाता रहा, ताकि वह अपनी राह से भटके नहीं ,लापरवाह न बने |उसके मन में एक अच्छा कैरियर बनाने और तुम्हें अपने साथ सम्मान पूर्वक जिंदगी भर रखने की प्रबल इच्छा बनी रहे |ईश्वर की कृपा से आज यह दिन आया है, तुम मना मत करो |”मामा ने समझाया |

          “भैया, यह सब आप दोनों के सहयोग से ही हो सका | आपने ही  हमें सब तरह से सुरक्षित रखा और उसकी पढाई का सारा खर्च उठाया |तभी यह संभव हुआ |” माँ ने भरे गले से कहा 

          रोहित ने सब सुना और उसका मन ग्लानि से भर उठा |वह कितना गलत समझता था अपने मामा मामी को |वे लोग उसका कितना भला चाहते और करते रहे | सच अगर वे लोग उसे जली कटी न सुनाते रहते तो वह कभी अपने लक्ष्य पर इतनी गंभीरता से ध्यान न दे पाता |

        “मेरे अच्छे मामा” वह दौडकर मामा के गले लग गया |

#जली कटी सुनाना

 स्वलिखित और अप्रकाशित

 सुभद्रा प्रसाद

 पलामू, झारखंड |

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