उपेक्षा – उमा वर्मा : Moral stories in hindi

 Moral stories in hindi : मै निधि जीवन भर उपेक्षा का दंश झेलते झेलते आखिर अंतिम सफर पर आ गई ।कहते हैं कि जिसे मायके में प्यार नहीं मिला उसे ससुराल में भी उपेक्षा ही मिलती है ।दीदी के जन्म के नौ बरस के बाद मेरा जन्म हुआ ।माँ को बेटे की लालसा थी ।

लेकिन मै लड़की आ गयी ।तो पुत्र न होने की कुंठा ही माँ को कठोर बना गई ।वह जब तब मेरी गलती न होते हुए भी मुझे ही दोषी ठहरा देती और उनका कोप भाजन मुझे बनना पड़ा ।लेकिन इसमें मेरी कोई गलती नहीं थी।यह तो ईश्वर का देन है जिसमें मनुष्य कुछ नहीं कर सकता।

लेकिन पापा और दीदी की मै दुलारी थी ।पापा और दीदी मेरे सुख सुविधा का पूरा ध्यान रखते ।माँ प्यार तो करती ही होगी, आखिर माँ थी वह।लेकिन उनका तरीका अलग था ।माँ के नजर में मै मंद बुद्धि की थी ।पर ऐसी बात नहीं थी ।मै सब कुछ समझ सकती थी ।

बस मुझे प्रकट करना नहीं आता था ।हाँ दीदी हर क्षेत्र में होशियार हो गई और मुझे कुछ भी सीखने में कोई दिलचस्पी नहीं थी ।और तो और जब नाना जी आते और मै उनके पास जाना चाहती तो वे मुझे दूर भगा देते ।फिर एक दिन माँ की मुराद पूरी हो गई ।

मेरे पाँच साल बीतने के बाद मेरे भाई का जन्म हुआ ।घर में बहुत खुशियाँ मनाई गई ।बहुत रिश्ते दार आए।नाना जी फिर आये ।मेरे भाई को गोद में बिठा लिया और बहुत दुलार किया ।मै भी तो दौड़ कर गयी थी पर नहीं, उनहोंने कहा, तुम दूर जाकर बैठो।मै उस दिन बहुत रोई।मेरे लड़की होने पर इतना दुख क्यो हुआ ।

मेरी क्या गलती थी ।माँ को तो लगता मै अवगुण की खान हूँ ।पापा चाहते थे मेरी पढ़ाई अच्छी तरह हो।लेकिन माँ के दबाव में उन्नीस बरस की उम्र में मेरी शादी रचा दी गई ।औकात भर पापा ने ठीक ही दिया था ।लेकिन माँ और सामान के बीच में मेरे कपड़े रखना ही भूल गयी थी, या शायद— पता नहीं ।

फिर शुरू हुआ ससुराल की उपेक्षा ।चार दिन बिना नहाए ही रहना पड़ा ।बड़ी जेठानी ने कहा कि ” माँ ने कपड़े दिया ही नहीं, तो क्या पहनोगी ” मुझे लगा ठीक है माँ ने गलत किया लेकिन ऐसा भी क्या था आप मुझे एक कपड़े तो दे ही सकती थी ।

माँ ने पलंग भी नहीं दिया था तो मुझे जमीन पर सुलाया गया ।फिर हिदायत मिला कि खिड़की पर खड़ा न रहूँ आते जाते लोग की नजर पड़ेगी।ससुराल और मायका नजदीक ही था ।और सभी से हमारे पुराने जान पहचान भी थे।

तो आखिर पर्दा किससे करना चाहिए यह बात मेरी समझ में नहीं आई कभी ।समय आगे बढ़ने लगा ।बड़ी जेठानी नहीं रही ।छोटे देवर की शादी हो गई ।थोड़े दिन सब ठीक ठाक रहा ।मेरी शादी के पाँच साल बीत गए ।मेरी गोद सूनी ही रही।

बहुत दौड़ धूप हुआ ।बहुत ईलाज हुआ ।डाक्टर ने साफ कह दिया कि मैं माँ नहीं बन सकती।दोष मुझमें नहीं, मेरे पति में निकला ।तभी ससुराल वाले चुप हो गये ।फिर छोटी देवरानी को लगातार पाँच बच्चे हुए ।अब घर का सारा काम मेरे जिम्मे आ गया और देवरानी मालकिन बन गई ।पति तो अच्छे ही थे।लेकिन परिवार के बीच पिसते रहे।कभी दीदी सलाह देती ” आपलोग कहीं बाहर घूमने जाते, तो अच्छा लगता ” चट से पति का उत्तर होता ” और इतनी बड़ी गृहस्थी कौन संभालेगा ” चार चार बेटी का ब्याह करना है मुझे ।

बात आई-गई हो जाती ।घर में खाने पीने की कोई कमी नहीं होती थी ।लेकिन देवरानी का ताना सुनना मेरी रोज की दिन चर्या हो गई थी ।कमाई मेरे पति की।लेकिन खर्च परिवार पर ।कभी अपने कोई शौक पूरा नहीं कर पाती ।सबकुछ मेरा ही था लेकिन धमकी मिलती कि अलग चूल्हा कर लेंगे ।

फिर बाँझ कहलाने की आदत सी हो गई ।मन बेचैन हो जाता तो मायके का रास्ता पकड़ती ।एक सप्ताह रह लेंगे तो मन बहल जाएगा ।तबतक माँ पापा भी नहीं रहे थे ।भाई भाभी का घर था सो पहले वाली बात नहीं रही थी ।वहां भी भाभी खयाल तो रखती थी लेकिन माँ बहुत याद आती ।चाहे कितना भी डांट देती थी लेकिन समय से खाना का ध्यान देती थी ।शादी के बाद जब भी गयी ” खाना खाया ” चाय मिला,?

 पूछते रहती ।माँ तो आखिर माँ ही होती हैं ।वह तो बेटा न होने की कुंठा ही उन्हें मेरे प्रति कठोर बना गई थी ।अब मैं समझने लगी थी ।फिर धीरे धीरे मेरी उम्र बढ़ती गई ।मेरा चलना फिरना कम हो गया ।कारण मेरे पैरों में तकलीफ होने लगी थी ।

फिर भी कभी कभी दीदी से मिलकर आती ।उनसे मिलकर मुझे बहुत शान्ति मिलती ।उनहोंने मुझे बहुत प्यार दिया ।अभी एक साल पहले ही दीदी से मिलकर आई थी ।आज न जाने मन क्यो उचाट हो गया है ।मेरी तबियत भी ठीक नहीं है ।

बहुत चक्कर आता है ।सिर में दर्द होने लगा था ।घर में लोगों ने दवा खिलाया ।मै सोना चाहती हूँ ।नींद आ रही है ।आह! शायद मेरा अन्त होने वाला है ।एक हिचकी आ रही ।घर में सभी लोग सोये हुए हैं ।तभी मुझे लगा मै अनन्त आकाश की ओर– उपर जा रही हूँ ।लेकिन मेरा शरीर तो नीचे पड़ा है ।

तो क्या मै अब नहीं रही? चार बजे पति जगाने आये ” उठो जी, खाना खा लो” कबतक सोती रहोगी? पर मै कहाँ थी ? फिर घर में हलचल होने लगी थी ।थोड़े बहुत रोने धोने का क्रम चलने लगा ।और मुझे ठिकाना लगाने की तैयारी होने लगी ।

मेरे मायके में भी खबर दी गई ।वह लोग भी आते ही होंगे तभी मेरा उठावना होगा ।बस यही मेरी कहानी है ।और मेरा अंत भी ।दूसरे दिन मेरे भाई भाभी पहुंच गए ।मेरे लिए लाल चुनरी, लाल चूड़ी, बिन्दी सब कुछ आ गया ।मुझे सजाया जायेगा ।

और आग के हवाले कर दिया जायेगा ।दुनिया के लिए मंदबुद्धि दुनिया से जल्दी विदा हो गई ।” 

उमा वर्मा, नोएडा ।

स्वरचित, मौलिक और अप्रसारित ।

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