भक्ति का अधिकार – कमलेश राणा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : क्या हुआ कुसुम तुम इस तरह फूट- फूट कर क्यों रो रही हो ? 

कुछ नहीं दीदी बस ऐसे ही। 

फिर भी बताओ न कोई तो बात है जब तक दिल पर चोट न लगे तब तक आँसू इस तरह नहीं बहते। तुम्हारा इस तरह रोना मुझे विचलित कर रहा है बताओ न प्यारी कुसुम। 

दीदी आप दिल की बहुत भोली हैं तभी मेरा रुदन आपके कलेजे को चीर रहा है वरना इस दुनियाँ में ऐसे लोग भी हैं जिन्हें मेरा खुश होना कष्ट देता है और रोना उनके दिल को सुकून पहुँचाता है। 

ऐसा निर्दयी कौन हो सकता है भला अब पहेलियाँ ही बुझाती रहोगी या कुछ बताओगी भी। 

क्या बोलूँ दीदी बचपन से ही यह दर्द मेरा साथी है दलित के घर में जन्म लेना क्या मेरी पसंद थी? यह तो ऊपर वाला ही तय करता है न कि कौन किसकी कोख से जन्म लेगा इसमें मेरा क्या दोष है। हमेशा ही लोग मुझे अछूत मानकर दुर्व्यवहार करना अपना अधिकार समझते आये हैं।

जब पढ़ना चाहा तो सबसे पहले माँ ने ही विरोध किया क्योंकि वह जमाने की नज़र पहचानती थी वह नहीं चाहती थी कि उसकी जान से प्यारी बिटिया के साथ कोई अछूत जैसा व्यवहार करे जिससे उसका मासूम मन आहत हो जाये पर मेरी जिद के आगे माँ ने हार मान ली और मेरा एडमिशन करवा दिया। 

अब हर कदम एक नई जंग था मेरे लिए कोई मुझे अपने साथ नहीं खिलाता बस कोने में बैठकर बच्चों को खेलता देखकर खुश होती रहती। किसी की जीत पर अकेली ही ताली बजा लेती और खुद ही शांत भी हो जाती। जब सब लंच में टिफिन खाने बैठते तो एक दूसरे के साथ शेयर करते और खाने की तारीफ भी करते।

मेरी माँ ढोकला बहुत अच्छा बनाती है मेरा भी मन करता उनसे कहूँ कि मेरी माँ के हाथ का ढोकला अगर एक बार खा लोगे तो उँगली चाटते रह जाओगे पर उनकी बेरुखी मेरी जुबान पर ताला लगा देती। अपनी बर्थडे पर जब टॉफी बांटती तो कोई लेता ही नहीं और मेरी खुशियाँ अफसोस में बदल जातीं जब छोटी थी तो समझ नहीं पाती थी कि मैं तो खुश होकर सबसे सब ले लेती हूँ किसी से मना ही नहीं करती फिर मुझसे सब क्यों मना कर देते हैं पर धीरे- धीरे सब समझ में आने लगा। 

जब मन बहुत परेशान होता तो कान्हा को अपने दिल की व्यथा सुनाने का मन करता कहते हैं कि वो सबकी सुनता है इसीलिए एक बार उनसे पूछना चाहती हूँ कि मेरे साथ उन्होंने ऐसा क्यों किया? क्यों ये जात – पांत के बंधन बनाने से मनीषियों को नहीं रोका उन्होंने? लेकिन जब भी अपने कान्हा से मिलना चाहती मन्दिर का पुजारी बाहर से ही भगा देता। क्या मुझे तुम्हारे पास आने का, भक्ति करने का, अपने मन की बात कहने का भी अधिकार नहीं है??

अगर ऐसा है तो फिर तुम अपनी मोहिनी मुस्कान से मेरे दिल में हलचल क्यों मचाते हो? क्यों तुम्हारी मुस्कान मुझे बार- बार तुम्हारे पास खींच लाती है? क्यों इतना प्यारा अरमान भरा दिल दिया तुमने?

तुम सबके मन की बात जानते हो तो फिर अपनी ही तरह मेरे दिल को भी पत्थर क्यों नहीं बना दिया। जब- जब अपने सवालों के जवाब अपने प्यारे कान्हा से पूछने जाती हूँ वह पुजारी मुझे दुत्कार कर भगा देता है क्या मुझे भक्ति का अधिकार नहीं आंटी आप बताओ न आप तो मैडम हैं बहुत पढ़ी लिखी हैं बताओ न आंटी हमारे साथ ऐसा क्यों है? 

माफ करना आंटी अब इस सबकी आदत सी हो गई है पर कभी- कभी मन की पीड़ा आँखों के रास्ते बह निकलती है आज आपने जोर देकर पूछा तो अपने आप पर काबू नहीं रख पाई अगर आपको मेरी कोई बात बुरी लगी हो और अनजाने में आपका दिल दुखाया हो मैंने तो मुझे माफ कर देना आंटी अब चलती हूँ माँ इंतज़ार कर रही होगी।

उसके सामने अपने दर्द को छुपा लेती हूँ वरना बहुत दुःखी हो जाती है वह मुझे बहुत प्यार करती है न इसीलिए अकेले में आँसू बहा लेती हूँ। 

कुसुम चली गई पर मेरे सामने अनगिनत सवाल छोड़ गई आखिर यह भेदभाव कब खत्म होगा और कानून के समानाधिकार का पालन समाज में भी मान्य हो पायेगा। काश वह दिन शीघ्र ही आये जब भगवान की भक्ति के लिए कोई न तरसे उसके मन्दिर के कपाट सबके लिए समान रूप से खुले रहें और फिर कोई कुसुम इन सवालों के जवाब जानने के लिए कान्हा की चौखट से निराश होकर न लौटे। 

#अधिकार

स्वरचित एवं अप्रकाशित

कमलेश राणा

ग्वालियर

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