बेटी का अधिकार- पूनम अरोड़ा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : अमित और पीहू के पिता आपस में  घनिष्ट मित्र थे। अमित इंजीनियरिंग  के आखिरी वर्ष में था तभी पीहू के पिता ने अमित के पिता से उसके लिए पीहू का रिश्ता माँग लिया था।यह तो विदित ही था कि कोर्स के बाद जाॅब मिल ही जाएगी और तब तक इंतजार इसलिए नहीं  किया कि जाॅब के बाद उस रिश्ते की अहमियत  उसके पैकेज के आधार पर तय की जाती  जिसे परिपूरित करना   निश्चय ही उनके लिए संभव न हो पाता । मित्र होने के नाते अमित के पिता जी ने भी रिश्ता सहर्ष  स्वीकार कर लिया ।लड़की ,परिवार सब देखे भाले थे ,पीहू  एक स्कूल में टीचिंग  भी कर रही थी ,खूबसूरत भी ठीक ही थी। दोनों  पक्षों  की तरफ से शादी करने का निर्णय  अमित की जाॅब के बाद ही लिया गया।

अमित का कोर्स अभी कम्पलीट भी नहीं  हुआ था कि कैम्पस सैलेक्शन  में  उसे मुम्बई की एक बहुत  ही प्रतिष्ठित कंपनी की तरफ से उम्मीद से कई गुना पैकेज और हाई पोस्ट ऑफर की गई ।अमित और घरवाले तो फूले नहीं  समा रहे थे ,पैर जमीं  पर नहीं  पड़ रहे थे उनके।

खुश  तो पीहू के घरवाले भी बहुत थे लेकिन अमित के घरवालों  के बदले हाव भाव को देखकर अचानक आशंकित भी हो उठे थे।

अब वे बात बात पर अमित के पैकेज और उसके लिए आने वाले रईस घरों  के रिश्ते की बात सुना सुना कर उन्हें  अप्रत्यक्ष रूप से

रह एहसास  दिलाते रहते थे कि उन्होंने  मित्रता के मोह में  रिश्ता करने में  जल्दबाजी  कर दी।

और वही हुआ  जिस शंका का फन  बहुत  दिनों  से पीहू और उसके घरवालों  के मन में सिर उठा रहा था।

अमित के पिता एक दिन आकर अपने मित्र को आगाह कर गए कि  तुम तो जानते हो कि “अमित तो अब मुम्बई  में  रहेगा  और महानगर  में  रहने और  गृहस्थी  के  ही इतने खर्च  हैं  कितनी भी सैलरी हो कम ही लगती है ।वहाँ  के घरों  का किराया ही इतना है कि भविष्य  के लिए सेंविग्स तो हो ही नहीं  सकती इसलिए  हम लोगों  ने यह तय किया है कि  वह वहाँ  खुद का मकान ले ले।

मकान  पीहू के ही नाम से लेंगे  बैंक वालों  से लोन की बात भी कर ली है जितनी भी मासिक किश्त बनेगी बस वो ही आपको हर महीने चुकानी होगी ।आप पर भी एकमुश्त  दहेज का दबाव नहीं  होगा और घर भी बन जाएगा  बच्चों  का। इसके अलावा बारात की अच्छे  से खातिरदारी ,लेन देन तो है ही और उस नए घर के लिए  गृहस्थी का  जरूरी  सामान भी देख लीजिएगा

अब खाली मकान में  जाकर थोड़ी रहेंगे  बच्चे ।” ऐसा कहकर वो चले गए।

पीहू के पिता जी एक साधारण ईमानदार क्लर्क  बस इतना ही कर पाए थे कि बच्चों  को अच्छे  से पढ़ा कर अपने पैरों  पर खड़ा कर दें और इज्जत से बिना किसी शोशापंती आडम्बर  के उनका विवाह कर सकें ।अमित के पिता जी कि इतनी उम्मीदों , शर्तों   से तो उनके भविष्य  में  मानो अंधकार ही छा गया ।अचानक बी पी हाई हो गया और छाती में भी कुछ दर्द महसूस हुआ ।तुरंत पास के हाॅस्पिटल ले जाया गया ।समय पर इलाज मिलने से कोई बडी दुर्घटना होने से तो बच गई  लेकिन पीहू को बहुत  धक्का  लगा इस घटना से ।उसकी और अमित की अक्सर  फोन और चैट पर बात होती रहती थी ,उसने जब उसके पिता के प्रस्ताव  और उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप अपने पिता की तबियत के बारे में  बताया और पूछा कि तुम अपने पिता को समझाते क्यों  नहीं  ,क्या  उन्हें  मेरे पिता की हैसियत का अंदाजा नहीं  ।फिर ऐसी शर्तो  का क्या मतलब ?

उसके जवाब में  अमित ने कहा कि “मैं  बड़ों की बातों  में  दखलंदाजी  नहीं  करता । जो मेरे लिए  उचित होगा वो ही निर्णय  लेंगे  वे।”

पीहू उसका ऐसा जवाब सुनकर हैरानी के साथ साथ शाॅक्ड भी हो गई   कि क्या ये आजकल  के पढ़े लिखे नौजवान की सोच है ? क्या यह होगा मेरे सपनों का ,मेरे जीवन का कर्ता धर्ता  जो अपने लिए ही उचित- अनुचित का निश्चय करने में  समर्थ नहीं ।

बहुत  कश्मकश – असमंजस  के बाद उसने एक निर्णय  लिया और  पिता के सामने जाकर बोली ।”आपने मुझे इसलिए पढ़ा लिखा कर अपने पैरों  पर खडा किया ना ताकि मैं अपने जीवन का सही -गलत ,बुरा भला सोचकर अपने समझदारी, अपने विवेक से स्वयं निर्णय  ले सकूँ ।अपने स्वाभिमान  का, गरिमा का मान रख सकूँ तो उसी के आधार पर बहुत  कुछ सोचकर  आज मैंने फैसला किया है कि मैं  अमित से शादी नहीं  करूंगी ।एक तो दहेज का लोलुप उसका परिवार मेरे गुणों  का नहीं  हमारे धन का अभिलाषी है , तो वो मुझे कभी मान देंगे नहीं और देंगे भी तो मेरे व्यक्तित्व  नहीं  दहेज के कारण ।मैं  क्यों  अपने माता पिता, भाई बहिनों  को अपने सुख के लिए कर्ज की आग में  धकेल दूँ और किसके  लिए उस जीवनसाथी के  लिए  जो मेरे लिए कोई स्टैंड  नहीं  ले सका ।जो खुद इतना कमजोर है उसके कंधो के सहारे  मैं  कैसे अपना जीवन सौंप दूँ? क्यों मैं अपने जीवन के मूल्यांकन का “अधिकार” उसे सौंप  दूँ जो अपने और मेरे लिए उचित और अनुचित का निर्णय  स्वयं लेने में  समर्थ नहीं  है?

इससे पहले कि उनकी तरफ से मना हो आप मना कर दीजिए शादी के लिए । आखिर  यह  एक बेटी के सम्मान और “अधिकार” का प्रश्न है।”

पूनम अरोड़ा

#अधिकार

6 thoughts on “बेटी का अधिकार- पूनम अरोड़ा : Moral stories in hindi”

  1. बहुत सही निर्णय लेकिन कहानी को अगर हम थोड़ा और जैसे लड़की को कोई अच्छी गवर्नमेंट जॉब या कोई अच्छे पद पर नियुक्ति कर देते तो इस कहानी का मजा बहुत ही अलग हो जाता क्योंकि वह भी पढ़ी लिखी थी

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    • अगर आप लड़की को भी बड़े पद का सरकारी अधिकारी बना देंगी तो दोनों परिवारों में जो अमीरी-गरीबी की खटास जो पैदा हुई है वह कभी नहीं हो पाती।

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  2. पीहू ने बिलकुल सही किया क्योंकि जो व्यक्ति चाहे पुरुष हो या महिला स्वाभिमानी होता है वो अपने आत्मसम्मान के लिए किसी से भी समझौता नहीं करेगा

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