बस एक बार – Short Hindi Inspirational Story

बचपन से ही समर्थ  का  एक  सपना था कि उसका नाम  और फोटो कभी पेपर या किसी पत्रिका अथवा किसी भी मंच या प्लेटफार्म  पर पुरस्कार  लेते हुए ,सार्टिफिकेट लेते हुए या किसी भी कारण से सम्मानित करते हुए या  किसी माननीय लोकप्रिय  नेता अभिनेता के साथ   प्रकाशित  हो जिसे वह बहुत  शान से अपने फेसबुक, इंस्टाग्राम और स्टेटस पर डाल सके और अपने माता पिता के गर्व का और सभी मित्रोँ , रिश्तेदारों  के ईर्ष्या  कारण बन सके — जो हमेशा यही कहते हैं  कि वह औसत बुद्धि है पढ़ाई- खेलकूद हर क्षेत्र  में,  कोई  विशेष प्रतिभा नहीं  इसमें  स्पेशलिटी नहीं, उनको दिखाना चाहता था ।
बस एक बार —
और इसके लिए उसने क्या क्या यत्न नहीं  किए –पढ़ाई में  भी पूरे साल लगन से तैय्यारी कर अपना बैस्ट दिया,  परीक्षा में  लेकिन प्रथम नहीं  आ पाया  हाँ  पहले से बेहतर जरूर हो गया रिजल्ट ।
फिर उसने खेलकूद  में  भी हाथ आजमाने की भरसक कोशिश की किन्तु उसका कमजोर, नाजुक  शरीर खेलकूद  के लिए अतिरिक्त  शारीरिक शक्ति और ऊर्जा  का संचयन न कर सकने के कारण वहाँ  भी असफल रहा।
उसने  वाद विवाद और अन्य एक्स्ट्रा  एक्टीविटीज में  भी भाग लिया लेकिन  किसी भी क्षेत्र  में   सर्वश्रेष्ठ  उपलब्धि प्राप्त न हो सकी ।
तब  उसने भी सोचा कि या तो मुझमें  सच में  कोई  काबिलियत  नहीं  या फिर ये लोग मेरी प्रतिभा का सटीक मूल्याकंन  करने में असमर्थ  हैं  ।
तब उसने अपने सपनों  को सार्थक  करने के लिए  अन्य उपाय सोचे ।
कहीं  भी सभा रैली होने पर वह कैसे भी भीड़ को चीरता हुआ आगे आगे जाकर खड़ा हो जाता और जोर जोर से नारेबाजी करता कि शायद किसी पत्रकार मीडिया के आकर्षण  का केन्द्र  बन सके और वे उसे अपने कैमरे में  कैद कर लें । अगले दिन वो बहुत  उत्साह से न्यूजपेपर  और टी वी खोलता कि शायद वो कहीं  दिखे लेकिन सब आशाएँ  धूमिल हो जाती उसकी ।
एक आध बार तो उसने जानबूझ  कर चौराहे पर किसी से वाद विवाद कर सीन क्रियेट भी कर दिया कि शायद ब्रेकिंग न्यूज  के शोधकर्ताओं  के सूक्ष्म  अवलोकन के  कैमरे के परिप्रेक्ष्य  में  नामांकन हो सके उसका लेकिन मीडिया तो नहीं  हाँ  पुलिस की कठोर अवमानना, धमकियों और अपमान  का  शिकार  अवश्य बन गया ।
अब आखिर उसने अपनी कलात्मकता को सकारात्मकता में  बदलने का निश्चय किया।उसने  अपने सपनों  को शब्दों  में उतारने के लिए  कुछ  कविताएँ और लघुकथाएं पत्र , पत्रिकाओं  और राइटिंग  एप्स पर  भेंजी लेकिन लेखन में  कोई नवीनता व विशिष्टता  न होने के कारण रिजेक्ट कर दी गई।
हार कर उसने कूची,  पेंटिग कलर्स और  कैनवास लाकर अपने सपनों  में  रंग भरने का आखिरी प्रयास किया ।पेंटिंग  बनाते बनाते यह  सोचते हुए वह मन ही मन कल्पनाओ  के सागर में  गोते खा रहा था कि उसकी पेंटिग  की एक्जीबिशन शहर की लोकप्रिय आर्ट गैलरी में  लगेगी और लोग दूर दूर हे उसे आके उसकी कला को परख कर  प्रोत्साहित  करेंगे । तत्पश्चात  उसे सम्मानित  कर पुरस्कृत  किया जाएगा लेकिन जब तस्वीर पूरी तैय्यार हुई तो वो ऐसी भी नहीं थी कि अपने घर की गैलरी में  ही लगाई जा सके ।
अपनी असफलता से  हतोत्साहित  होकर सब रंग कूची फेंककर उसने अब अंततः अपने सपनों  के समक्ष आत्मसमर्पण  कर दिया यह सोचकर कि —
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कभी जमीन  तो कभी आसमां नहीं मिलता ।
जो  सामर्थ्य  और क्षमता उसमें  है उसी में  संतोष रख कर जिन्दगी  से ज्यादा उम्मीदें  नहीं  करेगा ।अपने सपनों  को उसने तोड़ मरोड़ के  मन के किसी उपेक्षित  कोने में  फेंक  दिया और अब  बहुत  दिनों  बाद हल्के मन से दोस्तों के साथ  पहले मूवी और फिर बाहर डिनर का प्रोग्राम  बना कर चल पड़ा। दोस्त रूपेश का घर नजदीक ही था उसी के साथ बाइक पर  जाना था इसलिए उसके घर तक वो पैदल ही जा रहा था अचानक  बस वाले की तेज  लगातार बजते हार्न से चौंक कर देखा तो एक स्कूल का बच्चा कान में  ईयरफोन लगाए मोबाइल  में  बातों  में  मशगूल था और एकदम से बस के सामने आ गया, हार्न सुनाई नहीं दे रहा था  उसे और बस वाला भी जब तक ब्रेक लगाता तब तक  उसी क्षण सब  सब अनचाहा घटित हो जाता लेकिन ठीक उसी क्षण न जाने किस आवेशित आवेग की  ऊर्जा के फलस्वरूप समर्थ  ने छलाँग मारकर बच्चे  को अपनी ओर घसीट लिया लेकिन इस आकस्मिक  प्रतिक्रिया  के दौरान  वह स्वयं पता नहीं  कैसे बस के टायरों  के बीच फँस गया और फिरररर एक सेकेन्ड भी नहीं  लगा इस ह्दयविदारक  घटना की परिणति  में 😓😓
ओहो !!!!कितना दुखांत, रोंगटे  खडे  कर देने वाला,  स्पंदित कर देने वाला दृश्य !!!
अगले दिन हर न्यूज पेपर में  ,पत्रों  में  ,टीवी चैनलों  पर समर्थ की ही फोटो दिखाई जा रही। हर चैनल की ब्रेकिंग  न्यूज  था वो ।उसके परिवार के इंटरव्यू  लिए जा रहे थे ,घर की फोटो खींची जा रही थी, उसकी बचपन से अब तक की यात्रा का ब्यौरा पूछा जा रहा था ।
बचपन से अब तक की उसकी तस्वीरों  के डिमांड  लिए होड़ लगी हुई थी ।
लोग  संभावनाएं जता रहे  थे कि इस  बार 26 जनवरी को  मरणोपरांत   वीरता का पुरस्कार  भी मिले शायद उसे ।
जीते जी  जो अपनी एक फोटो  की एक झलक कहीं भी उद्धरित होते देखने के लिए तरस गया और आज जब सब जगह वो ही वो छाया  हुआ था तो देखने के लिए वह ही नहीं ।
क्या यह नियति नहीं?

#नियति 

 स्वरचित—  पूनम अरोड़ा

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