और अहम पिघल गया – लतिका श्रीवास्तव 

..”मैं इस हॉस्पिटल का चीफ सर्जन भी हूं और बेस्ट सर्जन भी हूं…..मेरे कारण ही इसकी साख है लोकप्रियता है…..मेरा नाम सुनकर ही लोग यहां आते हैं…..मेरे बिना इसका कोई अस्तित्व नहीं है और आप सभी का भी …. लोग सिर्फ और सिर्फ मुझसे ही सर्जरी करवाने आते हैं….”डॉक्टर विक्रम बोलते बोलते सांस लेने के लिए थोड़ा रुके…और सामने उपस्थित समस्त स्टाफ   विशेष रूप से डॉक्टर प्रशांत को संबोधित करते हुए पुन:बोले..” आज सुबह एक मरीज की मौत आपके गलत इलाज के कारण हुई है …हॉस्पिटल की साख प्रभावित हुई है मुझे अफसोस है और इसीलिए आप जैसे लापरवाह सर्जन को आज से मैं अपनी टीम से बाहर करता हूं …आज से इस हॉस्पिटल की किसी भी सर्जरी से आपको प्रतिबंधित किया जाता है….”सबको अवाक करके वो अपने चैंबर में चले गए..!

डॉक्टर प्रशांत बहुत ही धीर गंभीर संयत स्वभाव से डॉक्टर विक्रम को सुन भी रहे थे और समझ भी रहे थे…उनके लिए इस तरह की आलोचनाएं सुनना कोई नई बात नहीं थी…

पूरा हॉस्पिटल इस तथ्य की असलियत से बखूबी वाकिफ था कि डॉक्टर विक्रम भले ही यहां के चीफ हैं सर्वेसर्वा हैं परंतु डॉक्टर प्रशांत के बिना उनकी कोई भी सर्जरी सफल नहीं हो सकती…!पिछले कई वर्षों से जब से डॉक्टर प्रशांत इस हॉस्पिटल में पदस्थ हुए हैं और डॉक्टर विक्रम जब से यहां के चीफ सर्जन प्रमोट हुए है ..हर मरीज के केस की स्टडी करना,समझना फिर उसके अनुसार सर्जरी की तैयारी करवाना …सब डॉक्टर प्रशांत ही करते हैं ..!डॉक्टर विक्रम टीम हेड है सर्जरी दोनों डॉक्टर मिलकर ही करते आए हैं…

…पर सफलता और लोकप्रियता का सारा श्रेय हमेशा डॉक्टर विक्रम को मिलता आया है… क्योंकि डॉक्टर प्रशांत ने कभी भी ये श्रेय लेने की उत्सुकता नहीं दिखाई और डॉक्टर विक्रम ने आज तक प्रशांत को इस श्रेय का हिस्सेदार बनाने काबिल नहीं समझा.. हां पर किसी भी सर्जरी की असफलता या किसी भी चूक के लिए वो हमेशा डॉक्टर प्रशांत को ही कुसुरवार ठहराते थे….!आज भी वही हुआ था…!

नवागंतुक डॉक्टर सावंत बहुत आक्रोश में थे ….कितना अहंकार है इनमे !!मैं …मैं…की रट लगाते रहते हैं… मैंने ये किया …मैने वो किया…मेरे जैसा कोई नहीं कर सकता…..!!गलती खुद करते हैं कसूरवार आपको ठहराते है हमेशा …. हद है ..!अपने दोष को आपके ऊपर मढ कर स्वयं के अपराध बोध को छुपाने का कुत्सित प्रयास है ये..!डॉक्टर प्रशांत आप कुछ कहते क्यों नहीं..!!




डॉक्टर प्रशांत सोच रहे थे एक डॉक्टर के पेशे में विनम्रता और सहृदयता के साथ साथ सहयोगियों के प्रति आदर और कृतज्ञता की भावना होनी नितांत आवश्यक है…बिना मेहनती और समर्पित स्टाफ के अकेला डॉक्टर कुछ नही कर सकता…!..

.. हमें अपने प्रोफेशन पर गर्व होना चाहिए ईश्वर की आराधना की तरह …..ये भावना हमें उसके प्रति समर्पण भाव से बेहतर करने की प्रेरणा देती रहती है…..परंतु अपने प्रोफेशन या पद का अहंकार तो हमेशा हमारे अध:पतन का कारक बनता है…किसी के लिए कुछ अच्छा कर के,अपना ही धर्म अच्छे से निभाकर  अहंकार क्यों करना !! ईश्वर के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए कि हमें किसी अच्छे कार्य को करने का माध्यम तो बनाया…।

डॉक्टर विक्रम निस्सदेह बेहतरीन सर्जन थे हॉस्पिटल की शान थे सारा शहर उनकी तारीफ करता था आए दिन उनके लिए सम्मान समारोह आयोजित होते रहते थे उनके इलाज सभी समाचार पत्र की सुर्खियां बने रहते थे उनके घर का एक कक्ष सिर्फ इन्हीं ट्रॉफियों और उपहारों से भरा था…!शायद इन्हीं सबने आहिस्ता से ही सही उनमें अहम भाव ला दिया था…और इसी हॉस्पिटल में चीफ सर्जन का प्रमोशन मिलने के बाद से तो उनका गुरुर आसमान छूने लगा था…….किसी की कोई भी सलाह उन्हें अपना अपमान प्रतीत होती थी…आज भी उन्हे पूरा यकीन था कि डॉक्टर प्रशांत की वजह से ही उस मरीज की जान चली गई थी….।या फिर अपनी गलती से वाकिफ होने के बावजूद स्वीकार करने का जोखिम नहीं उठा रहे थे…!

बहुत व्यथित थे डॉक्टर प्रशांत!!वो भली भांति जानते थे मरीज की मौत डॉक्टर विक्रम के गलत इंजेक्शन के कारण ही हुई थी ..ये बात डॉक्टर विक्रम को भी समझनी चाहिए अन्यथा इसकी पुनरावृत्ति होने की पूरी आशंका है….डॉक्टर विक्रम का वो बहुत सम्मान करते रहें हैं उनकी बेजोड़ सर्जरी के वो कायल है परंतु उनके अंदर ये अहंकार का झूठे अहम का विषधर नाग जो फन फैला रहा था उसका जहर शीघ्र ही उन्हें भी और हॉस्पिटल को भी सर्वनाश की तरफ ले जाएगा …अभी तक वो सफलता असफलता से परे एक डॉक्टर की तरह अपना धर्म निभाते हुए डॉक्टर विक्रम के साथ सतत प्रयत्नशील रहते थे….




…पर आज ये प्रतिबंध…..!! काम करने का सारा उत्साह अचानक मर गया था…. ऐसे माहौल में मैं कोई काम नहीं कर सकता …उन्होंने हॉस्पिटल छोड़ने का मन बना लिया….डॉक्टर विक्रम के नाम एक लेटर लिफाफे में रख कर डॉक्टर सावंत को दे दिया और जाने ही वाले थे कि स्टाफ नर्स दौड़ते हांफते आई …डॉक्टर प्रशांत जल्दी चलिए प्लीज!!डॉक्टर विक्रम की पत्नी की हालत सीरियस हो गई है डॉक्टर विक्रम उनकी सर्जरी कर रहे थे तभी काफी ब्लीडिंग होने लगी है जो बंद ही नहीं हो रही है ….अब सिर्फ आप ही कुछ कर सकते हैं प्लीज डॉक्टर आप जल्दी

चलिए…!

…..सुनकर ही डॉक्टर प्रशांत की आत्मा कांप गई……लेकिन उनके उठते हुए कदमों को आज ही डॉक्टर विक्रम द्वारा घोषित प्रतिबंध ने जकड़ लिया वो थम से गए…..अरे सर प्लीज आप डॉक्टर पहले हैं किसी मरीज की जान बचाना ही हमारा  सबसे पहला धर्म है …ये आपने ही सिखाया है सर सब भूल कर आप जल्दी चलिए ..नर्स गिड़गिड़ा रही थी….वो सर्जरी टीम से अपना प्रतिबंध भूल कर तत्काल सर्जरी कक्ष में पहुंच गए….डॉक्टर विक्रम को पीछे हटाकर तुरंत स्थिति समझते हुए इलाज बदला ….करीब एक घंटे की कठिन मेहनत के बाद हालत नियंत्रित हो गई अब वो  खतरे के बाहर थीं…..!

…डॉक्टर विक्रम को काटो तो खून नहीं था….जब सर्जरी के बाद हमेशा की तरह ही डॉक्टर प्रशांत ने बहुत विनम्रता और आदर से उन्हें हिम्मत भी बंधाई और सफल सर्जरी का श्रेय देते हुए बधाई भी दे डाली….!

कहते हैं ना अहंकार तो गांडीव धारी अर्जुन तक का उनके परम मित्र कृष्ण से नहीं सहा गया था…अर्जुन के सर्वोत्तम धनुर्धर होने का अहंकार भी कृष्ण ने चूर चूर कर दिया था…..!

….आज अपनी पत्नी के जीवित बचने का सारा श्रेय डॉक्टर प्रशांत को देते हुए डॉक्टर विक्रम का सारा अहम सारा अहंकार भी पानी पानी हो गया था….”डॉक्टर प्रशांत ये हॉस्पिटल आप जैसे समर्पित सेवा भाव वाले डॉक्टरों की बदौलत इस मुकाम तक पहुंचा है इसकी साख आपसे है …मुझसे नहीं…!”डॉक्टर विक्रम के इतना कहते ही डॉक्टर प्रशांत ने उन्हें विनम्रता से टोक कर कहा ..”ना आपसे है ना मुझसे है बल्कि हम सबसे है सर…..।”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!