उम्मीदों का दिया बुझने मत देना (भाग 3) – मुकेश पटेल

सुनीता 6 महीने अपने मायके में ही रही और उसके बाद अब अपनी ससुराल चली गई थी।  लेकिन अभी भी सुनीता की ननंद यही पर थी। कुछ दिन के बाद ही सुनीता की सास की बहन यानी महेश की मौसी बच्चों को देखने आई हुई थी।  वो भी सुनीता की ननंद के लड़के को खूब प्यार करती थी और सुनीता के लड़की को तो एक बार भी छुआ तक नहीं।

एक दिन  घर के बाहर धूप में सुनीता की ननंद नैना, सुनीता की सास और सुनीता की सास की बहन बैठे हुए थे और आपस में बात कर रहे थे सुनीता की सास की बहन नैना को कह रही थी कि एक तुम्हारा बेटा है जो देखने में बिल्कुल ही राजकुमार जैसा लगता है और एक महेश की बेटी है पता नहीं उसे कौन शादी करेगा।

 एक तो विकलांग भी है और ऊपर से सांवली भी। तभी नैना बोल उठी मौसी जी जैसी मां रहेगी वैसे ही तो बेटी पैदा होगी हमें तो शुरू से ही सुनीता भाभी पसंद नहीं थी लेकिन भैया को ना जाने भाभी मैं क्या दिख गया जो भाभी को पसंद कर लिए। आपको बताते चलें कि हां सुनीता बिल्कुल गोरी तो नहीं थी सांवली जरूर थी लेकिन नैन नक्श इतने कटीले थे कि कोई भी एक बार देखे तो सुनीता से प्यार हो जाए।  और फिर सुनीता एम कॉम की पढ़ाई की हुई थी। महेश भी साधारण लड़का था इस वजह से सुनीता को एक ही नजर में पसंद कर लिया उसे ज्यादा हाई-फाई लड़कियां पसंद नहीं थी।

समय के साथ ही सुनीता की लड़की भी बड़ी होने लगी और उसकी ननद नैना का लड़का भी बड़ा होने लगा नैना की ननंद का लड़का जब भी गर्मी की छुट्टियों में आता सुनीता के सास ऐसा करने लगती जैसे उससे खूबसूरत इस दुनिया में कोई लड़का ही ना हो। अब सुनीता की लड़की मैट्रिक में पढ़ रही थी उसे अब सब कुछ एहसास होने लगा था कि उसकी दादी उससे प्यार नहीं करती है और ना ही उसकी बुआ यहां तक कि सुनीता की सास ने अपने सारे रिश्तेदारों में भी सुनीता के बारे में बुराई कर कर के सबसे अलग कर दी थी।  सबको यह दिखा दी थी कि सुनीता बहुत बुरी बहू है। सुनीता कितना भी करती थी लेकिन कभी भी सुनीता की सास उसकी अच्छाई किसी को नहीं बताती थी।

सुनीता लेकिन अपनी बेटी से बहुत प्यार करती थी और महेश भी अपनी बेटी से बहुत प्यार करता था।  कई बार तो नैना का लड़का जानबूझकर सुनीता की लड़की का मजाक बनाता था क्योंकि एक पैर से सुनीता की लड़की विकलांग थी इस वजह से नैना का लड़का विकलांग होने की एक्टिंग करता और सुनीता की लड़की को चिढ़ाता रहता था।  आखिर कोई कब तक बर्दाश्त कर सकता है सुनीता की लड़की के अंदर भी नकारात्मक भाव घर कर चुके थे अकेले में घुटती रहती थी।

महेश यह महसूस कर रहा था कि उसकी बेटी आजकल पहले की तरह खुश नहीं रहती है जरूर कुछ बात है महेश ने अकेले में अपनी बेटी से पूछा कि बेटी क्या बात है पहले तो तुम बहुत खुश रहती थी।  महेश की बेटी ने अपने पापा से सब कुछ बता दिया पापा मुझे कोई प्यार नहीं करता है मुझे नहीं रहना है यहां पर दादी भी मुझे हमेशा डांटते रहती हैं जैसे मैं इस घर की लड़की नहीं हूं।

महेश समझ गया था कि अब अगर अपनी बेटी का कैरियर बनाना है तो इस घर से दूर रखना पड़ेगा अपनी मां से दूर रहना पड़ेगा नहीं तो उसकी बेटी की जिंदगी खराब हो जाएगी एक तो पहले से ही वह विकलांग है।  महेश सोचा अपनी बेटी को इतना पढ़ाएगा कि उसकी विकलांगता अब कमी ना रहे लोग उसके हुनर से उसको पहचाने। इसके लिए महेश ने जानबूझकर अपना तबादला दिल्ली करवा दिया कि मां को भी यह एहसास ना हो कि वह घर छोड़कर जा रहा है और अपनी बेटी और अपनी पत्नी के साथ दिल्ली रहने लगा।

कहा जाता है कि भगवान इंसान के सभी दरवाजे बंद नहीं करता है अगर एक दरवाजा बंद करता है तो दूसरा दरवाजा खोल भी देता है कहने का मतलब यह है कि महेश की बेटी पढ़ने में शुरू से ही बहुत ही इंटेलिजेंट थी और यहां दिल्ली में महेश ने उसे एक अच्छे प्राइवेट स्कूल में एडमिशन करवा दिया था।  महेश की बेटी को डॉक्टर बनने का बहुत शौक था इस वजह से महेश ने अपनी बेटी को मेडिकल की कोचिंग करवाना शुरू कर दी और कुछ दिनों के बाद मेडिकल का एग्जाम क्वालीफाई किया और एक मेडिकल कॉलेज में एडमिशन हो गया।

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Writer: Mukesh Patel (Founder of Betiyan)

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