उम्मीदों का दिया बुझने मत देना (भाग 2) – मुकेश पटेल

समय बितता रहा महेश को भी इस बात का बिल्कुल भी भनक नहीं रहा कि घर में क्या हो रहा है नहीं हो रहा है उसे तो लगता था कि सब कुछ ठीक ही है।  माँ जो बोलती खरीद के ला देता था लेकिन महेश की मां अपनी बेटी को खिलाती रहती थी बहू को कुछ भी नहीं देती थी बस मिलता था बहू को तो बदले में ताना।

सुनीता भगवान से अक्सर यही प्रार्थना करती थी कि भगवान उस तांत्रिक की बात झूठ कर देना अगर सच में मुझे लड़की पैदा हो गई तो मेरे सास मुझे जीने नहीं देगी।

आखिर वह दिन आ ही गया सुनीता और उसकी ननद दोनों को एक साथ ही शहर के एक मशहूर  हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया गया था। जो ईश्वर को मंजूर होता है वही होता है और सच में ऐसा ही हुआ सुनीता की ननंद को बेटा पैदा हुआ और सुनीता को बेटी पैदा हुई।  बेटी पैदा हुई, यहां तक तो ठीक था लेकिन बेटी भी विकलांग पैदा हुई क्योंकि सुनीता ने सही तरीके से पोषक भोजन नहीं किया था इस वजह से उसकी बेटी विकलांग पैदा हुई।

जब सुनीता को यह बात पता चला तो सुनीता खूब रोने लगी और भगवान आपने बेटी भी दी तो विकलांग दे दी अब तो मेरी सास मुझे जीने नहीं देंगी।  लेकिन महेश सुनीता को बहुत प्यार करता था महेश ने सुनीता को हिम्मत दिया कोई बात नहीं सुनीता हम अपनी बेटी को बहुत पढ़ाएंगे और इतना आगे ले जाएंगे कि उसे अपनी विकलांगता को कभी कमजोरी होने का एहसास ही नहीं होगा।  अपने पति महेश की बातों से सुनीता को बहुत हिम्मत मिला और कुछ दिनों बाद सुनीता और उसकी ननंद हॉस्पिटल से घर आ गए।

अब तो सुनीता की’ सास पूरे दिन अपनी बेटी के बेटे में ही लगी रहती थी उसे थोड़ा सा भी ख्याल नहीं होता था उसी  घर में उसके खुद के बेटे की बेटी भी जन्म ली है और उसका भी सेवा करना है। जैसे-तैसे करके सुनीता अपनी बेटी का ख्याल रखती थी।  1 दिन सुनीता ने अपने पति महेश से कहा कि मुझे कुछ दिनों के लिए मेरे मायके में पहुंचा दो।

महेश भी अब  सब कुछ समझ चुका था लेकिन वह करे तो क्या करें अपनी मां से लड़ाई भी तो नहीं कर सकता था नहीं तो उसकी बहन बुरा मान जाएगी आखिर उसके ससुराल में भी तो कोई नहीं है करने वाला।  

महेश अपनी पत्नी सुनीता को उसके मायके पहुंचा दीया।  सुनीता अपने मायके जाकर अपनी मां से हर बात बता दी सुनीता की मां ने कहा जब इतना तकलीफ था तो पहले क्यों नहीं यहां पर आ गई जब फोन पर मेरी तुम्हारी बात होती थी तो तुम मुझे  कुछ नहीं बताती थी। बोलती थी सब कुछ ठीक है। बताओ पहले अगर तुम यहां आ जाती तो आज तुम्हारी बेटी कम-से-कम विकलांग तो नहीं पैदा होती। चलो लड़की हो गई उससे कुछ नहीं होता है लड़का लड़की तो सब भगवान की मर्जी है।  

सुनीता रो-रो के अपनी मां से कहने लगी मां मैं तुमसे क्या क्या बताती। कहने को तो मेरा ससुराल है लेकिन कभी भी मुझे अपने ससुराल जैसा महसूस नहीं होता है कई बार तो मन किया कि महेश से सब कुछ बता दूं लेकिन फिर सोचती थी कि मां बेटे में लड़ाई हो जाएगी इस वजह से चुप हो जाती थी।

 सुनीता की मां बोली तुमने यह गलत किया हर चीज की एक सीमा होती है जब पानी सर से ऊपर बहने लगे तो कुछ ना कुछ उपाय करना ही होता है और तुम ने जानबूझकर अपनी जिंदगी को खराब किया और इस बच्ची की जिंदगी भी। मैं तो दमाद जी आएंगे तो सब कुछ बताऊंगी।

नहीं मां उनको कुछ मत बताना वह बहुत सीधे हैं और मुझे लगता है उनको सब पता भी है लेकिन वह करे भी तो क्या करें।

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उम्मीदों का दिया बुझने मत देना (भाग 3) – मुकेश पटेल

Writer: Mukesh Patel (Founder of Betiyan)

 

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