उम्मीदों का दिया बुझने मत देना (भाग 1) – मुकेश पटेल

सुनीता और उसकी ननद नैना की शादी एक साथ ही हुई थी और किस्मत से दोनों एक साथ ही मां बनने वाली थी।  नैना के ससुराल में उसकी सास नहीं थी बस उसके ससुर और उसके हस्बैंड थे इसलिए नैना को नैना की मां यानी कि सुनीता की सास ने अपने पास ही बुला लिया।

सुनीता की सास ने शहर के कई  डॉक्टरों से लिंग जांच करवाने के लिए अपनी बहू और बेटी को लेकर गई लेकिन सब ने लिंग बताने से मना कर दिया और बोले माँ जी यह कानूनन अपराध है लेकिन सुनीता की सास पुरानी ख्यालों की थी  वह ऐसे मानने वाली तो थीं नहीं। अब उसके पास एक ही रास्ता था कि अपनी बहू और बेटी को किसी तांत्रिक के पास ले जाए और उन्होंने ऐसा ही किया। किसी ने बताया कि इसी शहर में एक बंगाली बाबा रहता है और वह औरत के  पेट देखकर यह बता देता है कि औरत के गर्भ में पलने वाला बच्चा लड़का है या लड़की।

फिर क्या था  सुनीता की सास ने  दोनों को लेकर उस तांत्रिक के पास पहुंच गए तांत्रिक ने अपनी भविष्यवाणी में यह बताया सुनीता की ननंद को बेटा होगा और सुनीता को बेटी पैदा होगी ।

उसके बाद तो सुनीता की जिंदगी में जैसे भूचाल ही आ गया उस दिन के बाद से सुनीता के सास ने सुनीता की देखभाल करना छोड़ दी।  वह पूरे दिन अपनी बेटी में लगी रहती थी और दिन भर सुनीता को ताने देते रहती थी पहली बार इतने सालों बाद माँ भी बनने जा रही है तो बेटी को जन्म देने जा रही है।   सुनीता अपने सास से कह दी मां जी इसमें मेरा क्या दोष है बच्चे तो भगवान के देन होते हैं। तो सुनीता के सास ने पलट कर जवाब दे दिया “भगवान कि नहीं सब तुम्हारी देन है।”

 अभी भी समय है जाकर अबॉर्शन करवा लो। सुनीता बोली कुछ भी हो मैं अपने बच्चे को जन्म जरूर दूँगी। सुनीता की सास एक दिन तो सुनीता के पति महेश यानी अपने बेटे से से भी कह दिया कि बेटा अभी भी समय है जाकर बहू का अबॉर्शन करवा दो बेटी जन्म देने से तो अच्छा है मां न ही बने।  महेश बोला मां तुम यह कैसी बात कर रही हो बेटा और बेटी में क्या अंतर है आजकल दोनों बराबर होते हैं जो काम बेटे करते हैं वह सारे काम आजकल बेटियां भी करती है।

सुनीता की सास सुनीता को अक्सर ताना मारती रहती थी तुमने मेरे बेटे को भी फंसा लिया है पहले तो मेरी हर बात सुनता था अब तो हर बात में तुम्हारा पक्ष लिया करता है पता नहीं क्या पट्टी पढ़ाती रहती है।

महेश शाम को घर आता तो बहुत सारे फल खरीद कर लाता और अपनी पत्नी सुनीता से अपना ख्याल रखने के लिए कहता  था। लेकिन शाम को जैसे ही महेश फल ला कर रखता महेश की मां सारा फल उठाकर अपने बेटी के कमरे में रख देती।  सुनीता को तो मन करता था कि कई दिन अपने पति से इस बारे में बताएं कि उसे कुछ भी खाने को नहीं मिलता है सारा फल माँ जी आपके बहन के कमरे में रख देती हैं।

 फिर सोचती थी सुनीता की ननंद का क्या कितना दिन रहना है थोड़े दिन बाद बेटा का जन्म होते ही वह चली जाएगी। लेकिन एक बार पति के बोल दूंगी तो जीवन भर के लिए आपस में मनमुटाव हो जाएगा लेकिन वह यह नहीं सोच रही थी कि इस समय गर्भ में पलने वाले बच्चे के लिए पोषक तत्व भरा खाना,  खाना बहुत जरूरी है सिर्फ दाल-चावल और रोटी खाने से कुछ नहीं होता।

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उम्मीदों का दिया बुझने मत देना (भाग 2) – मुकेश पटेल

Writer: Mukesh Patel (Founder of Betiyan)

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