रिश्तो की डोर टूटे ना

मै और माधव एक ही स्कूल में शिक्षक थे. और साथ ही हम दोनों अच्छे मित्र भी थे.  माधव 1 सप्ताह से स्कूल से छुट्टी लिया हुआ था। क्योंकि उसके पिता जी बहुत ही बीमार थे उनके इलाज के लिए पटना ले गया था.  पटना से कल ही वापस लौटा था. आज संडे का दिन था और स्कूल में छुट्टी भी थी तो मैंने सोचा माधव के पिता जी से मिलकर आते हैं. 

दिन में धूप ज्यादा  था तो मैंने सोचा शाम को ही जाता हूं।  शाम के 5:00 बजे मैं, माधव के घर पर पहुंचा, बाहर माधव का लड़का सोनू खेल रहा था।  मैंने पूछा, “तुम्हारे पापा कहाँ हैं तो उसने कहा पापा दादा जी के पास बैठे हैं. 

 मैंने सोनू से ही पूछा कि दादाजी का कमरा कौन सा है,  सोनू ने इशारे से ही माधव के बाबूजी का कमरा मुझे बता दिया।  मैं कमरे के अंदर पहुंचा। माधव से गले मिला और माधव के बाबूजी को पैर छूकर प्रणाम किया।  माधव के बाबूजी का हालचाल पूछा तो उन्होंने बताया पहले से अब ठीक है. माधव के बाबूजी ने यह भी बताया कि माधव मेरी बहुत सेवा करता है, अगर यह ना होता तो आज मैं जिंदा नहीं होता, माधव की मां तो कब के मुझे छोड़ कर चली गई, लेकिन माधव ने  मेरी पत्नी और बेटा दोनों का प्यार दिया है और माधव के बच्चे और माधव की पत्नी ने भी मेरी खूब सेवा करते हैं एक आवाज पर दौड़े चले आते हैं. 

 इतना कहने की देर था तो माधव ने पलटकर कहा बाबूजी आप कैसी बात करते हैं, मेरी वजह से आप नहीं है बल्कि आपकी वजह से मैं हूं, आपने इस समाज में इतना नाम कमाया है, मेरा हर काम आपके नाम से ही हो जाता है, आपके नाम से भी बड़े दुकानदार मुझे उधार सामान दे देता है, जो मैं बेच कर उसे वापस कर देता हूं, यह सब आपके अच्छे कर्मों का ही फल है. इतनी महंगाई में एक शिक्षक की नौकरी से घर चलाना बहुत  मुश्किल हो गया है इसलिए घर में ही एक किराने की दुकान खोल लिया है, मेरी पत्नी, मेरे नहीं रहने पर चलाती है. 

 थोड़ी देर बाद माधव बोला, “अजय आ जाओ बाहर बैठते हैं”.  मैं माधव के साथ बाहर दरवाजे के पास कुर्सी लगाकर बैठ गया।  माधव की पत्नी ने दो कप चाय ला कर दिया। मैंने माधव की पत्नी को भी नमस्ते किया। 

हमलोग बाहर बैठे ही थे तभी माधव के तीनों बड़े भाई अपने पिताजी के हाल चाल पूछने आए। आकर  माधव से ही पूछने लगे, माधव, बाबू जी कैसे हैं। माधव ने बोला, पहले से तो बेहतर है, माधव ने अपनी पत्नी से तीनों कुर्सियां लाने को कहा, माधव की पत्नी तीन  और कुर्सी बाहर भिजवा दी। तीनों भाई ने वही पर बैठकर माधव से अपने बाबूजी का हाल-चाल पूछा , उसके बाद माधव की पत्नी ने तीनों भाइयों के लिए भी चाय ला कर दिया। 



चाय पीने के बाद तीनों भाइयों ने माधव से कहा, “देखो माधव पिताजी तो अब बूढ़े हो गए हैं, पता नहीं कब स्वर्ग को सिधार जाएं, इससे पहले हम सब लोगों को जो भी हमारे खानदानी संपत्ति है बाबूजी के रहते  ही बटवारा कर लेना चाहिए। बाद में आपस में लड़ाई झगड़ा ना हो उससे यही बेहतर है। माधव ने कहा, ” देखो भैया आप तीनो लोग मुझसे बड़े हो आप लोगों की निर्णय मेरे सर आंखों पर आप खुद बंटवारा कर लीजिए और आप लोग जो मुझे दे देंगे वह मंजूर है.”

  उसके थोड़ी देर बाद ही तीनो भाई वहां से उठ खड़े हुए और बोले माधव हम लोग चलते हैं घर के लिए सामान भी ले जाना है अगले संडे आते हैं और संपत्ति का बंटवारा कर लेंगे। 

 मैंने यही देखा माधव के तीनों बड़े भाई माधव से ही हाल-चाल पूछ कर वापस अपने-अपने घर चले गए लेकिन उन तीनों में से कोई भी बाबू जी से मिलने को  नहीं सोचा कि उनसे जाकर एक बार कम से कम मिल तो ले, हाल ही पूछ लेते, बाबूजी कैसे हैं. 

 तीनो भाई के जाते ही मैंने भी कहा ठीक है माधव मैं भी चलता हूं माधव ने कहा अरे यार तुम कहां जाओगे इतने दिनों बाद तो आए हो, तुम्हारी पसंद की लौकी की कोफ्ता मेरी पत्नी बना रही है, आज खा कर जाना है तभी माधव की पत्नी आई और बोली हां भाई साहब घंटे भर और रुक जाइए।  खाना खाकर ही जाइएगा आप अपने घर पर फोन कर दीजिए या कि अपने दोस्त के यहां से ही खाकर आएंगे। 

 दरवाजे पर बैठे शाम हो गया था तो मच्छर भी काटने लगे थे।  माधव ने कहा चलो आओ घर मे बैठते हैं. घर में बैठते के साथ ही मैंने अपने दोस्त से पूछा, “माधव मेरे दोस्त आज तुम्हारे पिताजी 1 साल से बिस्तर पर हैं और तेरे पास रहते हैं, क्या तेरे मन में कभी यह ख्याल नहीं आता कि आखिर तेरे बाबूजी के चार पुत्र हैं तुम ही अपने बाबूजी को अपने पास क्यों रखें हो? चारों भाई को  3-3 महीने अपने पास बाबूजी को रखान चाहिए, अकेले का तुम्हारे बाबूजी थोड़े हैं. 



मैं अपने दोस्त माधव का उत्तर सुनकर तो दंग ही रह गया, बोला मेरे भाई अजय, मेरे पिताजी के चार भाई और तीन बहने हैं पिताजी ने तीनों बहनों की शादी बहुत अच्छे घर में किया है और हम चारों भाइयों को भी पढ़ा लिखा कर काबिल इंसान बनाया है, उन्होंने हम सब को पालने में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी है उन्होंने अपने सुख की भी परवाह नहीं की मेरे बाबूजी आज तक शहर तक नहीं गए कि शहर कैसा होता है हम लोगों के पालन पोषण में ही अपनी पूरी जिंदगी लगा दी। 

 तुम्हें तो पता ही है कि मेरी मां की मृत्यु बहुत पहले ही हो गई है, लेकिन मेरे पिताजी ने कभी भी हम सबको यह महसूस नहीं होने दिया कि मेरी मां नहीं है, यहां तक की कई बार तो वह हमारे पसंदीदा खाना भी बनाते थे, दादी ने कई बार दूसरी शादी करने के लिए कहा लेकिन पिताजी ने दादी की बातों को अनसुना कर दिया।  उन्होंने हमारी खुशी के लिए दूसरी शादी नहीं तक नहीं किया। पता नहीं सौतेली मां हमारे साथ कैसा व्यवहार करेगी। 

 मेरे दोस्त आज तुम यह सब जो देख रहे हो ना यह सब मेरे बाबूजी के कर्मों का फल है.  मुझे शिक्षक बनने के लिए B.Ed करना था बाबूजी ने एक लाख का कर्जा लेकर मुझे दिया।  तब जाकर मैंने B.Ed किया और आज शिक्षक के पद पर नियुक्त हो. 

 मेरे दोस्त सबसे अच्छी बात यह है कि बाबूजी की सेवा करने में मेरी पत्नी और मेरे बच्चों का भी सहयोग बहुत मिलता है।  मेरी तो पत्नी तो यह सोचती है कि बाबूजी को क्या-क्या खिला पिला दूँ। मेरे बेटा-बेटी भी अपने दादाजी को सुबह शाम पास ही बैठते हैं।  मेरे पिताजी मेरे बच्चों को देखकर बहुत खुश होते हैं। उनके सिर सहलाते हैं और उनको ढेर सारा आशीर्वाद देते हैं, और क्या चाहिए मेरे दोस्त बड़ों की दुआएं और आशीर्वाद जिसके साथ हो उस दुनिया में उसको और क्या चाहिए। 



 मेरे दोस्त जब मैं सुबह पिताजी को बाथरूम कराता हूं और उनको नहलाता  हूं तो मुझे अपना बचपन याद आ जाता है, याद आ जाता है जब पिताजी मुझे नहाते थे.  पिताजी की सेवा करते वक्त मुझे कहीं से भी नहीं लगता है कि वह मेरे पिताजी हैं मुझे तो ऐसा लगता है कि मेरे दोनों बच्चों के साथ मेरे घर में एक और बच्चा है जो मेरे पिताजी हैं यह कह कर मेरा दोस्त माधव मेरे गले लग कर रोने लगा. 

 मैंने अपने दोस्त को पीठ पर हाथ रखा और समझाया मेरे दोस्त तू इस दुनिया का खुशकिस्मत आदमी है जो पिताजी तेरे साथ है, मेरे पिताजी तो बचपन में ही गुजर गए, मुझे तो यह सेवा करने का मौका ही नहीं मिला।  तेरे भाई बहुत बदनसीब हैं. क्योंकि जो जैसा करता है इस दुनिया में सब कुछ उसके आगे ही आता है उसके बच्चे भी उसके साथ वैसे ही करते हैं.  

तुम देखना मेरे दोस्त तुमने जो अपने बच्चों को संस्कार दिया है तुम्हारे बच्चे बड़े होंगे तो अपने आप में एक मुकाम हासिल करेंगे और दूसरे बच्चों के लिए मिसाल कायम करेंगे। 

 जाते-जाते  मैंने अपने दोस्त को दोबारा से गले लगाया और उसके अपने पिता के प्रति सेवा भाव को सराहना की।   दोस्तों आज के जमाने में कुछ स्वार्थी और लालची बच्चे अपने मां बाप की सेवा करने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाते हैं।  उन्हें अपने मां-बाप से आजादी चाहिए ऐशों आराम की जिंदगी चाहिए, थोड़ी सुख के लिए अपने माता पिता के प्यार एवं ममता को ठुकरा देते हैं.  दोस्तों इस दुनिया में माता-पिता से बढ़कर कुछ भी नहीं है होता है। उनसे पूछो जिनके पिता नहीं है. दोस्तों और जब हमारे मां-बाप बूढ़े हो जाते हैं तो हम उनकी कितनी गलतियां निकालते हैं। लेकिन यह भी तो सोचो जब आप छोटे थे तो आपने कितनी गलतियां की थी और वह सारी गलतियां आपके पिता ने और आपके माता ने माफ कर दिया था।  

दोस्तों उम्मीद है आपको यह कहानी आपके दिल को छूया होगा।  देर मत कीजिए और कर दीजिए इसको शेयर ज्यादा से ज्यादा लोग इस को पढ़े और अपने मां बाप को इग्नोर ना करें बल्कि जैसी परिस्थिति में रहे उनको अपने पास रखने की कोशिश करें। 

 

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