प्यारा सा फरेब – बालेश्वर गुप्ता

 इतना बड़ा छ्ल, मुन्ना तुमने हमारे विश्वास को ठगा है।कितने अरमान से तुम्हे शहर भेजा पढ़ने, और तुम अरे कुछ तो सोचा होता?

    पापा-पापा, मैंने ऐसा कुछ भी नही किया है जिससे आप का सर झुके।मुझे अपनी बात कहने का अवसर तो दो।

      नही नही, मुझे कुछ भी नही सुनना।अरे मुन्ना क्या ये दिन देखने को तुम्हे जन्म दिया था?हमारा भाग्य ही खराब है।

       एक साधारण से कस्बे से मध्यम वर्गीय रमेश ने अपने एकमात्र पुत्र को उच्च शिक्षा ग्रहण करने शहर भेजा था।रमेश को अपने मुन्ना के रूप में अपना भविष्य दिखायी पड़ता था।मुन्ना था भी होनहार और संस्कार युक्त।उसे देख रमेश गर्व से भर जाता।मनुष्य को बुढ़ापे में क्या चाहिये?संस्कार युक्त सन्तान जो अपने  बूढ़े माँ बाप को सम्मान दे।रमेश मुन्ना के रूप में अपने सपने को साकार देख रहा था।

    अचानक ही रमेश को समाचार मिला कि मुन्ना ने शहर में ही शादी कर ली है।जिस मुन्ना की शादी करने के बड़े अरमान रमेश ने पाले थे उस मुन्ना ने तो उन्हें अपनी शादी की भनक भी न लगने दी।इतना बड़ा छल।वो संस्कार,वो सम्मान सब क्या छलावा थे?कम से कम एक बार हम बूढो से कह तो देता,एक बार अपने बाप से अपनी पसंद की शादी की जिद ही कर लेता,क्या पता हम खुद ही उसकी पसंद को बहु बना लाते।मुन्ना ने तो कोई हक दिया ही नहीं।बेगाना कर दिया हमें।

     सोच सोच कर रमेश कभी रोने लगता तो कभी अपने को ही कोसने लगता।भगवान से भी तो शिकवा था उसने जीते जी उसके एकलौते बेटे को उससे दूर कर दिया।

   अपने मन का दर्द किससे कहे?बार बार मुन्ना का चेहरा रमेश के सामने आ जाता,मानो आज भी वो उसकी पीठ पर चढ़ उसे घोड़ा बनने को कह रहा है।ऐसा दर्द जिसका कोई इलाज नही,मुन्ना ने तमाम जिन्दगी के लिये दे दिया है। मुन्ना तूने ऐसा क्यों किया रे,एकाएक रमेश जोर से चिल्लाकर एक ओर लुड़क गया।आवाज सुन रमेश की पत्नी दौड़ कर आयी बेसुध रमेश को पड़ोसी की सहायता से अस्पताल पहुँचाया।

      मुन्ना द्वारा शहर में बिन बताये अचानक शादी करने से रमेश को मानसिक आघात लगा था और वो डिप्रैशन में चला गया था।डॉक्टर ने उन्हें अकेले न छोड़ने और मानसिक झटका न लगे ऐसी हिदायत दे ,दवाइयों का पर्चा बना दो दिन में डिसचार्ज कर दिया।



     गुमसुम सा रमेश बस शून्य में ताकता या फिर अपने से बात करता रहता।कभी कभी मुन्ना मुन्ना चिल्ला पड़ता।

     और अचानक एक दिन मुन्ना आ गया और पिता का हाल देख वो पिता से लिपट कर रमेश के पैरों को पकड़ फफक फफक रोते रोते बोला पापा क्या हाल बना लिया है आपने ,मैं ही कारण हूँ ना पापा।एक बार तो मुझे कुछ कहने का मौका देते पापा।

     रमेश पर तो कोई फर्क पड़ ही नही रहा था,वो तो बस एक टक आसमान की ओर देख रहे थे।मुन्ना बोला पापा अब आप मेरे साथ रहेंगे, मुझे नौकरी भी मिल गयी है।मुझे बस अपनी बात कह लेने दो फिर आप जो सजा देंगे वो हम मैं और पिंकी सहर्ष स्वीकार करेंगे।

      पापा, शहर में पढ़ते पढ़ते मेरा एक जिगरी दोस्त बन गया संजीव।उसके माता पिता भी मुझे भी अपना बेटा ही मानते थे।संजीव के परिवार में उसकी छोटी बहन ,उसके पिता और माँ ही थे।एक दिन उन्होंने हरिद्वार का कार्यक्रम बनाया और सब हरिद्वार गंगा स्नान को चले गये।मुझसे भी उन्होंने साथ चलने को कहा था पर मुझे उस दिन हल्का सा बुखार था सो मैं नही गया।शाम को ही मनहूस समाचार आया कि उनकी गाडी का एक्सीडेंट हो गया जिसमें संजीव की बहन पिंकी को छोड़ कोई नही बचा।संजीव,उसके पिता, उसकी माँ ,तीनो ही पिंकी को अनाथ कर स्वर्ग प्रस्थान कर चुके थे।

      उनके रिश्तेदारों की न तो मुझे जानकारी थी और न ही कोई आया।किसी प्रकार सबका अन्तिम संस्कार किया।अब समस्या थी पिंकी की,जिसका रो रो कर बुरा हाल था।मेरे सामने समस्या थी, पिंकी को अकेला छोड़ नही सकता था।पिंकी के साथ रहने का मतलब था दुनिया की नजरों में पिंकी को गिराना और उसे असहाय स्थिति में छोड़ने को मेरी आत्मा स्वीकार नही कर रही थी तभी मैंने, हाँ पापा मैंने, आपके मुन्ना ने पिंकी से शादी करने का निर्णय ले लिया।आर्य समाज में शादी कर उसे पत्नी का दर्जा दे मैंने क्या कुछ गलत किया है पापा?आपके दिये संस्कारो से क्या मैंने कोई समझौता किया है पापा?

       आपके द्वारा दिये संस्कारो ने ही तो इतनी हिम्मत दी मुझे,पापा।आपने हमें स्वीकार नहीं किया तो हम तो जीते जी मर  जायेंगे पापा।मुझे इस धोखे के लिए माफ़ कर दो पापा।

        शून्य में निहारते रमेश का एक हाथ हठात मुन्ना के सिर पर आ जाता है, शायद आशीर्वाद देने के लिये—–!

         बालेश्वर गुप्ता

                  पुणे(महाराष्ट्र)

मौलिक एवं अप्रकाशित

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