नींव – विनय कुमार मिश्रा

बड़े ताऊ एक अटैची लिए बड़ी उदास होकर अपने बड़े से मकान से निकल गाँव के ही एक चबूतरे पर बैठ गए। जहां से कुछ ही दूर पर आने जाने के लिए बसें भी रुकती हैं। सामने सड़क सुनसान थी।परेशान हो वो चारो तरफ नज़रें घुमा कर जैसे पूरे गाँव को देख रहे हों। अब इस चबूतरे पर उनकी पुरानी मंडलियां नहीं बैठती। उन मंडलियों के कुछ लोग हैं ही नहीं अब।

बड़े ताऊ ने ही बरसों पहले बटवारे की नींव रखी थी। हमें इस पोखरे के दूसरी तरफ की जमीन दे खुद के लिए वो मकान भी रख लिया था जहाँ से ये अभी निकल कर आ रहे हैं। पापा ने तब ये छोटा सा घर बनाया था जहाँ से मैं उन्हें देख रहा हूँ। और कुछ याद भी कर रहा हूँ

“बहुत छोटा घर बनाया है तुमने, और घर बनते भी देखा है मैंने, तेरे घर की नींव बहुत कमजोर है..” उन्होंने अपने बड़े से मजबूत घर की तरफ देखते हुए कहा था

पापा बड़ी इज़्जत करते थे बड़े ताऊ की। वो उनके खिलाफ कुछ नहीं कहते थे

“भैया जमीन का बटवारा तो हो गया है, पर रिश्ते आज भी नहीं बटे हैं, गृहप्रवेश है आज, अगर पूजा पर आप और भाभी बैठेंगे तो मुझे बहुत खुशी होगी”

” पूजा पर तुमलोग ही बैठ जाना.. हम आशीर्वाद देने पहुँच जाएंगे” 

ताऊ आखिरी बार उस दिन हमारे घर आये थे। पापा आज भी उनकी उतनी ही इज़्जत करते हैं। जहाँ भी देख लेते हैं वहीं पैर छुए बिना नहीं रहते भले ही बड़े ताऊ उन्हें आशीर्वाद दे या ना दे। बड़े ताऊ के राइस मिल उनके बेटे देख रहे हैं अब। पापा पहले भी खेतों में काम करते थे अब भी उनका मन खेतों में ही लगता है। मैं यहीं के स्कूल में बच्चों को पढ़ाता हूँ।

“सुनिये! बाबूजी को आवाज दीजिये, खाना बन गया है”

पत्नी की आवाज सुन मैं पापा को आवाज देने ही वाला था कि देखा पापा खेतों से बड़े ताऊ की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं

“भैया! इतनी धूप है,ये अटैची लिए यहां क्यूँ बैठे हैं?”  ताऊ ने गर्दन सीधी कर पापा को देखा और अपने गमछे से अपनी आँखें पोंछने लगे

“गिरधर तू!”

“हाँ पर आप रो क्यूँ रहे हैं? क्या बात है?”

“बेटों ने बटवारा कर लिया गिरधर, कुछ दिनों से घर में कलह बना हुआ है, मेरी अब कोई नहीं सुनता। मैं अब उस घर में नहीं रहना चाहता इसलिए घर छोड़ कर जाना चाहता हूँ”  तबतक एक बस आकर रुक गई थी। ताऊ उठकर जाने को हुए। पापा ने इशारे से बस को जाने को कहा

“गाँव छोड़कर! इस उम्र में कहां जाएंगे आप भैया? क्या करेंगे आप? चलिए ये अटैची मुझे दीजिये। आपका एक घर और भी तो है”

पापा बड़े ताऊ को लेकर घर आ गए। ताऊ गृहप्रवेश के बाद आज पहली बार आये हैं। मैंने और पत्नी ने भी पैर छूकर आशीर्वाद लिया

“सुनो बहु! भैया अब यहीं रहेंगे।खाना बन गया हो तो हम दोनों का खाना निकाल दो, आज बहुत दिनों बाद हम एकसाथ खाएंगे” पापा की आँखों में आँसू आ गये थे और इन दो भाइयों को एक साथ देख हमारे भी। बड़े ताऊ ने पापा को गले लगा लिया और हमारी तरफ देखने लगें

“गिरधर..तेरे इस घर.. की नींव बहुत मजबूत है..!

विनय कुमार मिश्रा

 

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