एकाकी जीवन – कमलेश राणा

विनीत छः बहनों का इकलौता भाई है,, पिता गिरीश बाबू रेंजर हैं,, हमेशा जंगल में ही जीवन बीता उनका,, बच्चों की पढाई लिखाई में किसी तरह की बाधा न आये,, इसीलिये उन्होंने परिवार को हमेशा शहर में रखा,,

सबके होते हुए भी एकाकी जीवन जीने को मजबूर थे वो,, वैसे हर काम के लिए चपरासी थे उनके पास ,, जो काम तो कर सकते थे पर जो मानसिक सुकून पत्नी, बच्चों के साथ मिलता है वो सिर्फ छुट्टियों में जब घर जाते तब ही नसीब होता,,

वो दिन कब हवा हो जाते,, पता ही नहीं चलता,, पत्नी और बच्चे आगे पीछे घूमते,, कभी कहीं पिकनिक तो कभी बाहर डिनर,, वापस ड्यूटी पर जाने का मन ही नहीं करता,, बस यही सोचते कब रिटायर हो कर घर का सुख ले पाऊँगा,,

एक दिन किसी काम से बाज़ार गये तो उनकी नज़र विनीत पर पड़ी जो अपने कुछ दोस्तों के साथ सिगरेट के धुएं के छल्ले बना कर उड़ा रहा था,, विश्वास नहीं हुआ उन्हें अपनी आँखों पर,,

उन्होंने उसके दोस्तों के बारे में जानकारी इकट्ठी की तो पता चला कि उसकी सोहबत बहुत ही खराब है,, वो ट्यूशन के नाम पर हर महीने माँ से पैसे ले जाता और दोस्तों के साथ सिगरेट शराब में उड़ा देता,, कोचिंग का तो मुँह तक नहीं देखा था उसने,,

दिल भारी हो गया उनका,, जिन बच्चों का जीवन बनाने के लिए उन्होंने अपने दाम्पत्य सुख का एक तरह से त्याग ही कर दिया था,, अपने सुख चैन उनके भविष्य निर्माण के लिए तिरोहित कर दिये थे वो आज यह प्रतिफल दे रहे हैं,, सोच सोच कर कलेजा मुँह को आ रहा था,,

फिर उन्होंने एक कठोर निर्णय लिया, उसे हॉस्टल में डालने का,, वो जानते थे कि इसके लिये उन्हें सबका विरोध झेलना पड़ेगा लेकिन उसे गलत संगत से निकालने का यही एकमात्र उपाय सूझ रहा था उन्हें,,

उन्होंने उसका एडमिशन एग्रीकल्चर कॉलेज सीहोर में करा दिया,, बड़े भारी मन से माँ और बहनों ने उसे विदा किया पर इस घटना ने उसके मन में बजाय शर्मिंदगी के ,,,पिता के लिये बैर के भावों को जन्म दिया,, वह उन्हें अपना शुभचिंतक न मानकर,, दुश्मन मानने लगा,,

उसे लगता था कि उसके पिता ने उसे माँ, बहनों, मित्रों के साथ ही साथ सारी सुख सुविधाओं से भी वंचित कर दिया है,, अब वह कॉलेज का सबसे उद्दंड छात्र था,, मित्र वहाँ भी उसने वैसे ही ढूंढ़ लिये थे,, सारे नशे करने लगा था, बार बार वार्निग देने पर भी जब कोई सुधार नहीं हुआ तो उसे कॉलेज से रेस्टिकेट कर दिया गया,,

अब वह और भी शातिर हो चुका था,, जब भी पिता आते वह घर ही नहीं आता,, पढ़ाई छोड़ दी थी उसने,, खर्च के लिए पैसे माँ से ले लेता,, कभी मनुहार से और कभी लड़ झगड़ कर,,



एक न एक दिन तो गिरीश बाबू घर आना ही था,, वह दिन भी आ गया,, बड़े सम्मान के साथ विभाग से रिटायर हो कर घर आये तो कुछ दिन बाद ही समझ में आने लगा कि सबको उनके बिना जीने की आदत पड़ चुकी है,, और अब वो उनकी स्वतंत्रता में बाधक बन रहे हैं,,

हर कोई,, यहाँ तक कि पत्नी भी कटी कटी सी ही रहती,,कहीं भी आने जाने का पूछना बंधन लगने लगा था उन्हें,, खर्च भी खुले हाथों से करने की आदत हो गई थी पर अब गिनकर ही पैसे मिलते थे, जो नागवार गुजरता उन्हें,,

बड़ी बेटी सविता भी पति को छोड़कर यहीं रहने लगी थी, उसे भी आज़ादी चाहिये थी,,ससुराल के बंधन पसंद नहीं थे उसे,,इस सबमें अब गिरीश बाबू रोड़ा बन गये थे,, वो उसे अपने घर जाने के लिए समझाते रहते,,

इसके लिये माँ बेटी ने प्लान बनाया कि यदि कोई गिरीश बाबू को घायल कर जाये और उसका दोष सविता के पति और नंदोई पर लगा दिया जाये तो उसे ससुराल से छुटकारा मिल जायेगा,,

अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए इंसान कितना नीचे गिर जाता है,, उनकी सोच इस बात का प्रमाण थी पर इसके लिए किसी मजबूत इंसान की जरूरत थी,,

इस बारे में जब उन्होंने विनीत से बात की तो वह इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं हुआ आखिर पिता थे वो उसके,, पर लगातार वो दोनों उसका ब्रेनवाश कर रही थी आखिर वह भी संपत्ति के लालच में आकर इस घिनौने काम को अंजाम देने के लिए तैयार हो गया,,

गिरीश बाबू जीवन भर जंगल में रहे थे,, उन्हें घर के अंदर नींद नहीं आती थी, वो बाहर गार्डन में ही सोते थे,,

एक सुबह उनके घर से रोने चिल्लाने की आवाजें सुनकर पड़ोसी बाहर आये तो पता चला कि सविता का पति और नंदोई उसे लेने आये थे परंतु गिरीश बाबू ने उसे भेजने से मना कर दिया,, जिस पर क्रोधित हो कर उसने उनपर वार कर दिया जिससे उनकी मृत्यु हो गयी,,

पुलिस ने घरवालों और पड़ोसियों से पूछताछ की,,, सविता की ससुराल से भी जानकारी ली गई पर उनके बयान भ्रमित करने वाले थे,, जब कड़ाई से पूछताछ की गई तो विनीत ने सारा सच उगल दिया,,

हर जगह यही चर्चा थी कि क्या आदमी अपने घर में भी सुरक्षित नहीं है,, हर जगह धोखा देने वाले बैठे हुए हैं,, धोखा दिया भी तो किसे,,, जो उन सबका भाग्यविधाता था या धोखा उनकी सोच का था कि उनके बाद सब ऐश करेंगे,,

पर बेकसूर के खून की आह बुरी होती है,, आज सब जेल में बैठकर उस पल को कोस रहे हैं जब यह घृणित विचार उनके मन में आया,,

परिवार में बड़ों का अंकुश सर पर छत की तरह होता है जो हमें बहुत सारी परेशानियों से बचाता है बिना उनके जीवन दिशाहीन हो जाता है,, जिनके घर में सही राह दिखाने वाले होते हैं वे लोग भाग्यशाली हैं,,

#धोखा

कमलेश राणा

ग्वालियर

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