मानसिक क्लेश – भगवती सक्सेना गौड़

एक दिन रवीना अपनी सहेली शमा के घर गयी, वहां शमा ने मोबाइल में एक फोटो दिखायी, फ़ोटो देखते ही, रवीना कुछ सोच में पड़ गयी। कंही देखा है, पर याद नही आ रहा। दिमाग पर जोर दिया तो ध्यान आया, ये तो दादी की फ़ोटो लग रही, जो मुझे मेरे चार वर्ष की उम्र तक खिलाती रहीं, उसके बाद एक दिन मम्मी ने कहा, वो कहीं गुम हो गयी।

जल्दी से शमा की मम्मी से पूछा, “आंटी, ये कहाँ की फ़ोटो है।”

“बेटी, आज हम सखियाँ कुछ सामान देने वृद्धाश्रम गए थे, वहीं की है।”

दूसरे ही दिन रवीना स्कूल से ही जाकर वृद्धाश्रम के गेट पर अपनी सहेली के साथ खड़ी थी, दोनों के बैग में सबको देने के लिए बहुत कुछ था। 

दूर से ही उन्हें दादी दिख गयी, उन्हें देखते ही रवीना को यू आभास होता था कि रोम रोम में कुछ हो रहा है, और वो भावुक हो गयी, कई बचपन के पल उसके नैनो के आगे अठखेलिया करने लगे। दादी भी बिलखकर रो पड़ी, तुम यहाँ कैसे?

रवीना पूछ बैठी, “आप यहां कैसे पहुँची ?

बड़ी मिन्नत करने पर उन्होंने बताया, “मैं शिक्षिका रह चुकी हूं, पर मैं बहुत अभिमानी हूँ किसी की बात मुझे अंदर तक चुभने लगे इससे पहले मैं वहां से भागना चाहती थी मेरी एक सहेली ने मुझे यहाँ का रास्ता दिखाया,  संगीता बहू के रोज के ताने और जले कटे वचन सुनने की शक्ति नही थी। एक दिन किसी को बिना बताए मैं यहां आ गयी……सब हम उम्र लोगो के साथ अच्छा समय निकल जाता है। तुमको मैं कभी नही भूल पायी। याद तो बहुत आती है।

हर दूसरे दिन रवीना उनसे मिलने लगी।

समय तेज़ी से भाग रहा था वो स्कूल घर एग्जाम में बहुत व्यस्त हो गयी थी, अचानक एक दिन मां घर मे बाथरूम में गिर गयी पैर में प्लास्टर बंध गया , कामवाली भी काम छोड़ चुकी थी, अब सब काम का भार रवीना पर था। अब कई दिन वृद्धाश्रम नही जा पाई तो दादी ने मजबूर होकर फ़ोन पर हाल लेना चाहा, और रवीना ने अपना हाल बताया और उन्हें मिलने के लिए अपने घर बुलाया और कसम दिलाई, मेरी खातिर आओ दादी, मैं आपको आपका स्थान दिलाऊंगी।

दादी घर आई, आते ही रवीना की हालत देखकर काम मे लग गयी। घर मे और कोई नही था, मां दवा ले के चादर ओढ़े सो रही थी।

अचानक दादी फिर खड़ी हो गयी, तुम्हारे कहने पर आ तो गयी, पर बेटी मन बहुत विचलित है। यहां आकर घर के हर कोने में पुरानी यादे अपना सिर उठा रही है। मुझे जाने दो।

घर के गेट पर ही उन्हें उनका बेटा आते दिख गया , नजर चुरा कर निकलना ही चाहती थी, कि आवाज़ आई “माँ कहाँ चली गयी थी, बहुत ढूंढा आपको, तुम्हारे जाने के बाद मुझे पता चला, संगीता ने छल, कपट से तुम्हे घर से निकलने पर मजबूर किया।”

“कौन हो, मैं नही पहचानती, मेरा कोई बेटा नही था।”

“माफ कर दो, मां, मेरी नजरें धोखा नही खा सकती।”

वो एक मां भी थी, पिघल गयी, और गले लग गयी।

पीछे से रवीना आके गले से लग गयी, अब आप कही नही जाएंगी।

स्वरचित

भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर

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