आक्रोश – आरती झा आद्या

मन करता है तलाक ही ले लूॅं तुमसे। देखना एक दिन तुम तलाक लिवा कर ही मानोगी…संजय और करुणा की पच्चीस साल की शादी में बहस तो आम सी बात हो गई थी।

हाॅं हाॅं…सही है…पहले जहर खा लूॅंगा…घर छोड़ कर चला जाऊॅंगा कहकर चुप कराते थे, अब तलाक का शौक हो आया है… करुणा भी उतनी ही जोर शोर से जवाब दे रही थी।

हाॅं तो इस किच किच से तंग आकर इंसान कुछ तो करेगा…संजय चिल्लाया।

तो ये तो शादी से पहले सोचते ना , कम से कम बच्चे होने से पहले सोचते… अब नाटक करके क्या फायदा.. करुणा भी कहाॅं कम थी।

गलती हो गई मुझसे…

ऐसा भी क्या पाप हो गया था मुझसे जो तुम जैसे इंसान से शादी हो गई मेरी… दोनों एक दूसरे पर दोषारोपण किए जा रहे थे।

कमरे में पढ़ रहा उनका बीस साल का बेटा अनुभव और चौबीस साल की बेटी अनुभा दोनों का चिल्लाना सुन एक दूसरे को देख गहरी साॅंस लेते हैं।

क्या है दीदी…कभी कभी तो मन करता है घर ही छोड़ दूॅं… एक दिन भी शांति से नहीं रह सकते हैं दोनों… ना खुद कहीं आते जाते हैं ना हमें आने जाने देते हैं। ना हँसना, ना बोलना, हर बात में अपनी फरमान सुना देंगे। लेकिन मजाल है जो हमारी कोई बात बिना कुछ बोले सुन लें, बीच में ही शुरू हो जाएंगे। ये भी कोई जिंदगी है दी…अनुभव गुस्से से भर उठा था।

भाई मैं तो जबसे पैदा हुई हूॅं, देख ही रही हूॅं…लेकिन फिर भी घर छोड़ने का खयाल नहीं आया। तुम भी ये फितूर दिमाग से निकालो और पढ़ लिख कर कुछ अच्छा करो और निकलो यहाॅं से…ऐसे घर छोड़ना कोई समाधान तो नहीं है ना…अनुभा भाई की बातों को समझती और समझाती हुई कहती है।

दी तुम तो नौकरी करती हो, फिर क्यों हो यहाॅं..कहीं और क्यों नहीं रहती तुम…अनुभव कलम मुंह में चबाता हुआ कहता है।

क्योंकि मेरे भाई वहाॅं मुझे कंपनी देने के लिए तू नहीं होगा ना…चल मैगी बनाए खाए और सोए। अब कल तक तो पापा भूख हड़ताल पर रहेंगे और मम्मा गुस्से में तो अपना खाना अपने हाथ…बोलती हुई अनुभा मैगी बनाने किचन की ओर चली गई।




अनुभा कल तुम्हें देखने लड़के वाले आ रहे हैं… ढंग से तैयार हो जाना…संजय फरमान सुना टीवी पर चल रहे डिबेट की ओर एकाग्र हो गया या एकाग्र होने का दिखावा करने लगा, भगवान ही जाने।

मां ये क्या है, बिना मुझसे पूछे ये ताम झाम…

जा अपने बाप से पूछ…मुझसे कब किसी ने कुछ पूछा है और पूछा भी है तो सिर्फ सिर्फ हां हां करवाने के लिए…अनुभा की बात बीच में ही काट करुणा पति को सुनाती हुई चिल्लाई।

तुम्हें क्या लगता है मैं अपने बच्चों का भला नहीं चाहता हूं..संजय जो टीवी छोड़ कर जल्दी उठता नहीं था , अभी करूणा को जवाब देने किचन तक चला आया।

अच्छा बड़े हितैषी बन रहे हो, भूल गए जब अनुभा बचपन में पहला ट्रॉफी जीत कर आई थी तो तुमने कहा था जो बच्चे अभी अच्छा करते हैं, वो बड़े होकर अच्छा नहीं करते हैं। बड़े आए हितैषी बनने वाले… करूणा के जुबान भी उसके काम करते हुए हाथों के जैसे चल रहे थे।

जो मन आए करो, मुझसे कुछ मत कहना…

हां इसके अलावा डराने का कोई और साधन नहीं है ना तुम्हारे पास…संजय की बात पर करुणा का जवाब आया और जिसकी शादी की बात चलाई जा रही है, वो कमरे में चुपचाप बैठी माता पिता की बहस सुन रही थी।

उन्हें अनुभा पसंद है, एक दो दिन डेट भी फाइनल कर देंगे..संजय ऑफिस से आते ही करुणा से कहता है।

पर पापा मुझे शादी करनी ही नहीं है। मैं अपना खर्च खुद ही उठा सकती हूं। अगर आप लोगों को बोझ लग रही हूं तो कहीं और जाकर भी रह सकती हूं…अनुभा जो अपने पापा के स्वभाव के कारण उनसे बहुत कम बोलती है, आज दो टूक कह रही थी।

पागल हो गई है, क्यूं नहीं करनी तुझे शादी.. करुणा बिफरती हुई पूछती है।

आज तो आप दोनों एक ही सुर अलाप रहे हैं। आप दोनों को क्या मिल गया शादी करके…दिन रात की किट किट। दादी भी कहती हैं कहीं जा नहीं सकते थे, इसीलिए दादा जी की बातों को बर्दाश्त कर रहना पड़ा। नानी भी तो यही कहती हैं ना मां और बुआ तो कहती ही हैं अगर बच्चे नहीं हुए होते तो उस आदमी को कब का छोड़ देती। आपको और पापा को तो जबसे होश संभाला मैने लड़ते ही देखा। अलग हो जाने की धमकी ही देते सुना है। आपने भी तो कितनी बार कहा माॅं अगर ये बच्चे नहीं होते तो कब का चली गई होती, मतलब तो यही हुआ ना कि शादी और बच्चे जी का जंजाल हैं। सही है जिस इंसान की इज्जत नहीं कर सकते, जिस बच्चे को एक नॉर्मल लाइफ नहीं दे सकते , उसे इस दुनिया में हम लाऍं ही क्यूॅं। आपलोग को लगता है ये पीढ़ी उद्दंड है इसीलिए शादी विवाह के बंधन में बॅंध जिम्मेदारी उठाना नहीं चाहती है। लेकिन पिछली किसी पीढ़ी ने सोचा है उन्होंने इन सब चीजों के बारे में हमारे सामने क्या उदाहरण पेश किया है। मैं बताती हूॅं पापा, पिछली हर पीढ़ी ने अपने अनुभव के आधार पर शादी , बच्चे वाहियात ही बताए हैं। सिर्फ अपना गुस्सा उतारने के लिए, उसे प्रॉपर्टी बनाने के लिए इस दुनिया में नहीं लाना मुझे। शादी, बच्चे जबरदस्ती का समझौता बताया है, जीवन में फालतू का बंधन बताया आपलोगों ने..पुरानी पीढ़ी वालों ने ही हमें इस राह पर चलने के लिए मजबूर किया है…कभी आप सभी अपने गिरेबान में भी झाॅंक कर देखिएगा…. तालमेल सिर्फ बोलते रहे, तालमेल करते कभी नहीं दिखे…अनुभा के दिल में इतने दिनों का जमा गुबार , उसका आक्रोश उसे चुप होने नहीं दे रहा था। मैं नहीं पड़ना चाहती इन सब चीजों में। मुझे अपनी जिंदगी अपनी शांति पसंद है..अनुभा कहती है और पैर पटकती वहाॅं से चली गई।




सच में करुणा हमने बच्चों के सामने क्या उदाहरण सेट किया है। हर वक्त की मारा मारी, बच्चे तो यही देखते बड़े होते हैं और तब उनके लिए रिश्ते नाते झूठे ही होते हैं और फिर हम उन्हें अपने बचपन की कहानियाॅं सुना कर ये जतलाते हैं कि रिश्ते नाते कितने अच्छे होते हैं। जबकि हम भूल जाते हैं बच्चों के लिए सत्य वही होगा जो वो सामने देख रहे हैं। अनुभा का या अनुभा जैसे बच्चों का आक्रोश बिल्कुल जायज है। हम बोलते कुछ हैं और करते कुछ हैं। कहते वक्त तो हम कह देते हैं बेटा कोई दिक्कत आए तो हमें जरूर बताना और जब बताते हैं तो हम ही गालियों से उनका और उनकी बात का स्वागत करते हैं करुणा। बच्चों में ही नहीं सबसे पहले हमें अपने आचरण में सुधार की जरूरत है। जो हमारी पिछली पीढ़ी ने हमें दिया, जो हमने देखा , वही अपने बच्चों के साथ करने लगे। हमने अपना आक्रोश अपनी आगे की पीढ़ी पर निकाला। गनीमत है कि आज की पीढ़ी अपना आक्रोश आगे की पीढ़ी के लिए सौगात के रूप में नहीं रखती। अपने आक्रोश में भी टू द प्वाइंट बात कर समाधान निकालती है। हमें भी सुधरना होगा करुणा…कहते हुए संजय बच्चों के कमरे की ओर बढ़ गए।

आरती झा आद्या

दिल्ली

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