जिन्दगी की नीरसता – डा. मधु आंधीवाल

 

आशू तुम मुझे छोड़ कर तो नहीं जाओगे ये वाक्य हमेशा पीहू पूछती थी और आशू का एक ही उत्तर होता क्या तू अकेली नहीं रह पायेगी मेरे बिना ? ये बात होती थी दोनों में अभी उम्र ही क्या थी दोनों की आशू 10 साल का और पीहू 6 साल की । दोनों के घर आस पास छत्त से छत्त मिली हुई । दोनों के घर वालों मे भी बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध थे । दोनों बच्चे एक साथ ही खाते खेलते बड़े हो रहे थे । जैसे जैसे वह बड़े होते जा रहे थे उतना ही उनका लगाव बढ़ता जा रहा था । 

         अब दोनों किशोरावस्था छोड़ कर युवा वस्था में पैर रख चुके थे । पीहू के मम्मी पापा ने अब उसे समझाना शुरू कर दिया कि बेटा अब तुम बड़ी हो गयी आशू के साथ इतनी घनिष्ठता उचित नहीं । पीहू को बहुत दुख होता कि मां पापा क्यों टोकते हैं । उधर आशू भी उससे थोड़ा कटा कटा रहता क्योंकि उसके दोस्त पीहू को लेकर उस पर कटाक्ष करते थे । दोनों सोचते इन दोनों में ऐसा क्या है जिससे वह एक दूसरे के बिना नहीं रह पाते । आज दोनों बहुत समय बाद आमने सामने आये पर झिझकते हुये । आशू बोला पीहू तुम उसी पेड़ के पास पहुँचो जहां बचपन से लेकर आजतक हम साथ साथ खेल कर बड़े हुये हैं। पीहू जब वहाँ पहुँची तब देखा आशू पेड़ के सहारे खड़ा कुछ सोच रहा है। आज पहली बार पीहू को आशू के पास जाने में संकोच हो रहा था । उसने आशू को आवाज दी आशू ने पलट कर देखा और बोला पीहू क्या तुम मेरे बिना रह पाओगी । पीहू एक दम से उसके हाथ पकड़ कर रोने लगी बोली आशू मै शायद तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगी । आशू ने उसे बांहो में ले लिया बोला पगली यही तो प्यार है और यह पेड़ हमारे प्यार का बहुत बड़ा गवाह है। जिसके साये में बचपन से लेकर आज तक  हम बड़े हुये हैं। मै शायद आगे शिक्षा के लिये बाहर जाऊं तुम मेरा इन्तजार करोगी क्या ? पीहू बोली मरते दम तक तुम्हारा इन्तजार करूगी । कुछ समय बाद आशू विदेश चला गया । पीहू भी अपनी शिक्षा पूरी कर चुकी थी उसके मां पापा ने शादी के लिये लड़के देखना शुरू कर दिया पर पीहू ने जिद पकड़ ली कि उसे शादी नहीं करनी । उसी समय उसकी नियुक्ति प्रवक्ता पद पर होगयी । वह आशू का इन्तजार कर रही थी । अब धीरे धीरे आशू से फोन पर भी बात नहीं हो पाती क्योंकि वह कहता कि बहुत अधिक व्यस्त होगया है।

         कुछ दिन बाद आशू की बहन से पता लगा कि आशू ने वहीं की नागरिकता लेकर किसी विदेशी लड़की से ही शादी कर ली । यह बहुत बड़ा आघात था पीहू के लिये पर उसे आशू की एक बात याद आ रही थी जब बचपन में वह कहती थी कि आशू तुम मुझे छोड़ कर तो नहीं जाओगे तब आशू कहता था क्या तू अकेली नहीं रह सकती । आज वह उसी पेड़ के नीचे खड़ी थी और सोच रही थी जब मन उदास हो  तब कुछ समय  अपने साथ ही बिताना चाहिये और बस उसने दृढ़ता से मन से कहा मै अकेली रह सकती हूँ क्यों किसी के लिये जिन्दगी को नीरस बनाऊं । मेरा दोस्त यह पेड़ है  मेरी उदासी और खुशी का साथी ।

#कभी धूप कभी छांव

स्व रचि

डा. मधु आंधीवाल

अलीगढ़

 

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