वो अब भी है दिल में! ! (भाग 1)- गीता चौबे “गूँज” : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi :‘ शीतल मंद सुरभि बह बाउ…’ तुलसीदास जी की इस पंक्ति को सुरभि के लब गुनगुना रहे थे जिसे वह साक्षात आत्मसात कर रही थी। बड़ा ही सुहावना मौसम था। सुंदर सुवासित समीर मंद गति से बह रहा था मानो हौले – हौले किसी महबूब की भांति सुरभि के बदन को बड़े प्यार से सहला रहा था…चारों तरफ़ सोंधी सी महक बिखरी हुई थी…। एक मादक खुशबू का झोंका कुछ इस तरह सुरभि के नथुनों में समाया जैसे किसी ने हवा में इत्र की शीशी उड़ेल दी हो… ।

सुरभि ने पीछे मुड़कर कनखियों से देखा तो पाया कि एक गज़ब का खूबसूरत नौजवान स्मित मुस्कान से उसे ही देखे जा रहा था… एक पल के लिए तो उसने शरमा के अपनी पलकें नीची कर ली। फिर तुरंत संभलते हुए कड़क आवाज़ में पूछा,

” ऐ मिस्टर! इस तरह क्या घूरे जा रहे हो? कुछ शर्मोहया है भी या नहीं… इतना भी नहीं जानते कि किसी लड़की को इस तरह घूरना नैतिकता के विरुद्ध तो है ही, कानूनी अपराध भी है … ।

” अरे बाप रे! इतना लंबा – चौड़ा भाषण…! मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि आप अवश्य पेशे से वकील होंगी…

कोई बात नहीं, वैसे मेरा नाम शेखर है। मैं एक इंजीनियर हूँ। यह जो खूबसूरत प्लॉट, जिसकी सुंदरता को आप मुग्ध भाव से निहार रही हैं, मुझे यहाँ एक खूबसूरत रिज़ॉर्ट की डिज़ाइनिंग का कॉन्ट्रैक्ट मिला है और मैं आपको नहीं आपके पीछे जो लॉन है उसका मुआयना कर रहा था। ” सुरभि की कड़कदार आवाज़ से सकपकाते हुए शेखर सफेद झूठ बोल गया।

” वैसे अगर मेरी आँखें आपको देख भी रही थीं तो इसमें उनका कोई कुसूर नहीं… आप हैं ही इतनी बला की खूबसूरत कि कोई भी अगर एक बार आपको देख ले तो पलकें झपकाना भूल जाए…। ” शेखर की इन बातों से सुरभि खिलखिलाकर हँस पड़ी।

” क्षमा करें! मैंने आपको गलत समझा। मुझे लगा आप उस टाइप के लड़के हैं।

‘उस टाइप के?’ क्या मतलब है आपका…? शेखर को भी बात बढ़ाने का मौका मिल गया।

‘जी मेरा मतलब था… गुंडा टाइप का…’

“क्या मैं आपको गुंडा लग रहा हूँ? कमाल है! अब तो आप ज्यादती कर रही हैं मोहतरमा…” अपनी हँसी दबाते हुए शेखर ने सुरभि पर अपना प्रभाव डालने की कोशिश की जिसमें कामयाब भी हुआ।

सुरभि घबरा गयी और हकलाते हुए बोलने लगी, “जी… वो.. मैं.. मेरा मतलब…”

” अरे रे! आप तो बुरी तरह डर गयी… मैं तो मज़ाक कर रहा था। वैसे आपकी तसल्ली के लिए बता दूँ कि मैं एक भला इंसान हूँ। क्या आप मुझसे दोस्ती करेंगी…?”

शेखर ने सुरभि को सहज करने के लिए दोस्ती का प्रस्ताव रखा जिसे सुरभि ने सहर्ष स्वीकार कर लिया और दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए कहा,

”क्यों नहीं… मेरा नाम सुरभि है और आपने सही पहचाना… मैं एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में लीगल एडवाइजर हूँ। ”

इस तरह शेखर और सुरभि की यह पहली मुलाकात बड़ी यादगार और रोचक रही। फिर तो मुलाकातों का सिलसिला ही चल पड़ा…।

जब भी मौका मिलता सुरभि अपनी छुट्टियां मनाने के लिए वहीं आ जाती। शेखर का तो वह कार्यक्षेत्र ही था। जब भी मिलते दोनों… घंटों बातें करते… देश की… दुनिया की… अपने भविष्य की योजनाओं की… कुछ अपने बारे में कहते… कुछ दूसरे की सुनते… प्यार का अंकुर तो दोनों के मन में फूट चुका था… पर इजहार करने से दोनों ही डरते थे कि कहीं इस वजह से उनकी दोस्ती न टूट जाए।

सुरभि अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। सुरभि के पिता एक बहुत बड़े वकील थे। वकालत पढ़ने की प्रेरणा सुरभि को अपने पिता से ही मिली थी। वह भी उनके नक्शेकदम पर चल उनकी तरह नाम कमाना चाहती थी। उसके लिए जी-तोड़ मेहनत भी की थी। उसके पिता का भी सपना था अपनी बेटी को एक बड़े वकील के रूप में देखने का। पर उनका यह सपना पूरा होने से पहले ही काल के क्रूर पंजों ने उन्हें दबोच लिया…

सुरभि उस बहुराष्ट्रीय कंपनी के लिए इंटरव्यू देने मुंबई गयी थी तभी उन्हें विश्वास हो गया था कि उनकी बेटी कामयाब होगी और जब सुरभि ने चयनित होने की खुशखबरी सुनाते हुए कहा कि कल से ही जॉब जॉइन करना है। अभी तो वह होटल में है पर जल्दी ही किराए पर फ्लैट लेकर माँ पापा को बुलाएगी।

अगला भाग

वो अब भी है दिल में! ! (भाग 2)- गीता चौबे “गूँज” : Moral stories in hindi

 

गीता चौबे “गूँज”

बेंगलुरु

 

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