उतरन-Mukesh Kumar

शिम्पी की मां का देहांत बचपन में ही हो गया था।  उसके  पापा एयरफोर्स में नौकरी करते थे घर में शिम्पी का देखभाल करने वाला कोई नहीं था उसकी  दादी थी लेकिन वह भी बूढ़ी हो चुकी थी।  उसके  नाना-नानी ने उसकी  मौसी रेखा से उसके पापा  रजत की शादी कर दी।

रेखा से  रजत  की शादी इसीलिए हुई थी कि शिम्पी को सौतेली मां का एहसास ना हो.  सब को यह लग रहा था कि बाहर की औरत आएगी तो वह शिम्पी को अपनी बेटी जैसी व्यवहार ना कर पाएगी।  लेकिन हुआ इसका उल्टा रेखा को भी जैसे ही एक बेटी हुई वह शिम्पी के साथ  सौतेली मां जैसा ही व्यवहार करना शुरू कर दिया।

शिम्पी उस घर की बेटी नहीं बल्कि एक नौकरानी बनकर रह गई थी रेखा  घर के सारे काम शिम्पी से ही करवाती रहती थी।  यहां तक कि अपनी बेटी की देखभाल भी शिम्पी से ही करवाती थी। उसकी  उम्र अभी 15 साल ही थी लेकिन वह घर के सारे काम करती थी सुबह खाना बनाती थी उसके बाद स्कूल भी जाना।

रेखा  दिन भर बस श्रृंगार करना और घूमना फिरना इसी में व्यस्त रहती थी।  दोपहर होते ही  रेखा  की सहेलियों का जमावड़ा जुट जाता था और वह सब मिलकर पूरे मोहल्ले भर की पंचायत यही करते थे।



शिम्पी की छोटी बहन यानी उसकी मौसी की लड़की रीना उससे उम्र में 3 साल ही  छोटी थी लेकिन देखने से ऐसा लगता था कि वही शिम्पी  से बड़ी हो। रीना के सारे कपड़े शिम्पी में सही फिट बैठ जाते थे इस वजह से रीना कई बार बाजार से अपने लिए कपड़े खरीद कर लाती थी और घर आने के बाद उसे पसंद नहीं आता था तो वह शिम्पी को दे देती थी।

शिम्पी को याद भी नहीं है कि उसने कब नए कपड़े अपने लिए खुद खरीदे हैं या उसकी मौसी या पापा ने खरीदा है वह हमेशा अपनी बहन की उतरन पहनती रहती थी।  मन में यही सोचती थी कि क्या हो गया मेरी बहन का पहना ही हुआ तो है। लेकिन इंसानी मन है। कभी ना कभी शिम्पी को भी बुरा लगता था कि आज अगर मेरी मां जिंदा होती तो  मुझे इतनी तकलीफ नहीं होती। सब लोगों ने यह सोचकर मौसी से पापा की शादी कराई थी कि मुझे किसी भी चीज की दिक्कत नहीं होगी। शिम्पी को ऐसा लगता था कि अगर उसके पापा किसी बाहर की औरत से शादी करते तो भी शायद इतनी तकलीफ वह उसे  ना देती जितना उसकी मौसी उसे देती है।

कई बार तो शिम्पी की दादी उसका पक्ष लेकर रेखा  को टोकती भी थी कि बच्ची है इससे इतना काम मत करवाया करो।  कुछ काम खुद भी कर लिया करो बहू। लेकिन दादी की बात सुनता कौन है मौसी दादी को भी डांट देती थी और यहां तक कह दे दी थी कि चुपचाप रहना है तो इस घर में रहो नहीं तो आप भी चले जाओ और अपनी शिम्पी को भी ले जाओ यहां से।  शिम्पी की दादी बेचारी क्या करती चुपचाप मन मसोसकर रह जाती।

कई बार तो शिम्पी को लगता था कि सारी बात अपने पापा को बता दें लेकिन उसके पापा भी उसके मौसी के प्यार में इतनी पागल थे शिम्पी को लगता नहीं था कि वह उसकी बातों पर विश्वास करेंगे।   इस वजह से वह बिल्कुल चुपचाप रहती थी बस यही सोचती थी और कुछ साल ही तो मुझे यहां गुजारने हैं कहीं ना कहीं पापा मेरी शादी कर देंगे वहां मैं कम से कम अकेले अपना जीवन स्वतंत्र रूप से जी पाऊंगी जो मर्जी करेगा खरीदूँगी जो मर्जी करेगा पहनूंगी।



आखिर वह दिन आ ही गया जिसका शिम्पी का बहुत दिनों से इंतजार था  शिम्पी की शादी सरकारी बैंक में एक क्लर्क से हो गई। शिम्पी बहुत खुश थी।  दूसरी लड़कियों को अपने मायका छोड़ने का दुख होता है कि वह मायके में इतने साल रही वह ससुराल जाकर कैसे एडजस्ट करेगी।  लेकिन शिम्पी को बिल्कुल भी दुख नहीं था वह तो बहुत खुश थी कि वह कब इस मायके नाम की जेल से आजाद हो जाए और ससुराल चली जाए।

शिम्पी की शादी हो गई और वह अपनी ससुराल में पहुंच गई। शिम्पी के ससुराल में उसकी एक जेठानी और  एक उस से छोटी ननद थी। शिम्पी के लिए सिर्फ जगह बदला परिस्थितियां वैसी की वैसी ही रह गई जो कुछ कल्पना करके खुश हो रही थी वह कुछ भी  ससुराल में नहीं हुआ।

ससुराल पहुंचने के दो-तीन दिन बाद ही शिम्पी  के ननंद और जेठानी ने  शिम्पी से कहा  “शिम्पी आप अपना बैग खोलकर दिखाओ आपके मायके से क्या क्या मिला है।”   शिम्पी बड़ी प्यार से अपना बैग खोल कर अपने सारे कपड़े दिखाने लगी। शिम्पी की कई साड़ियां देखकर उसकी जेठानी बोली अरे वाह कितनी सुंदर साड़ी है कहां से खरीदी थी।  शिम्पी बोली कि सब मेरी मौसी माँ ने खरीद कर दी है।

शिम्पी की जेठानी अपने कमरे में गई और वहां से तीन- चार  साड़ियां लेकर आई जो उसने कभी खरीदी थी लेकिन उसको पसंद नहीं था।  वह अपने देवरानी शिम्पी को दिया और कहा शिम्पी यह साड़ी तुम रख लो उसके बदले में मैं तुम्हारी यह साड़ियां ले लेती हूँ।  शिम्पी बोली हां दीदी ले लो इसमें क्या बुरा है आप पहनो या मैं पहनूँ बात एक ही है। उसके बाद से शिम्पी ने अपने सलवार सूट दिखाना शुरू किया सलवार सूट देखते ही उसकी ननद  बोली “भाभी कितना सुंदर है सलवार सूट। आप मुझे यह सलवार सूट दे दीजिए ना आपको तो भैया बाद में भी खरीद देंगे मुझे बहुत पसंद है। सलवार सूट उठाकर अपनी ननद को दे दिया।



शिम्पी को यह लग रहा था यह तो मेरा परिवार है अब यहीं पर तो मेरी पूरी जिंदगी गुजारनी है यही कि खुशियों का ख्याल रखना है।  लेकिन शिम्पी को इस बात का एहसास नहीं हो रहा था कि वह जो कर रही थी उसकी पुरानी जिंदगी की शुरुआत फिर से ससुराल में हो चुकी थी।

धीरे-धीरे समय के साथ पूरे घर की जिम्मेदारी शिम्पी को  ही दे दी गई थी अब शिम्पी को लगने लगा था मायके और ससुराल में ज्यादा अंतर नहीं है वहां भी मैं घर के सारे काम करती थी और मेरी मौसी मां और मेरी बहन मौज करते थे और यहां पर भी घर के सारे काम मैं ही करती हूं और मेरी जेठानी और ननद मौज करते रहती हैं कभी कोई भी किचन के कामों में हाथ नहीं बटाता  है।

शिम्पी की जेठानी बाजार से कोई साड़ी खरीद कर लाती थी अगर वह पसंद नहीं आता था तो वह शिम्पी को ही दे देती थी।  शिम्पी साड़ी देखो तुम पर बहुत अच्छा लग रहा है रख लो इसे। शिम्पी का मन नहीं होता था फिर भी रखना पड़ता था। कई बार उसके पति उसके लिए सूट खरीद कर लाते थे।  जैसे ही वह लाते उसकी ननद ले लेती थी और बोल देती थी भैया ! भाभी के लिए दूसरा सूट खरीद देना मुझे बहुत पसंद है।

शिम्पी को यह अहसास होने  लगा था कि वह मायके में भी उतरन  पहन रही थी और यहां भी। शादी से पहले यही सोच कर रह जाती थी कि शादी के बाद ससुराल में वह अपनी खुद की जिंदगी जो उसकी मर्जी करेगा करेगी जो उसे पहनने को मन करेगा पहनेगी लेकिन यह क्या यहां भी कुछ नहीं बदला बस रिश्तो के रूप बदल गए हैं वहां मौसी मां थी और यहां पर जेठानी हो गई मौसी माँ की लड़की की जगह पर यहां मेरी ननद हो गई।



शिम्पी के अंदर का आत्म सम्मान अब  जाग उठा था उसने सोच लिया था कि अब जब भी उसकी जेठानी अपनी नापसंद साड़ी उसे देंगी वह उसे  लेने से मना कर देगी और अगर वह बाजार से कोई भी सूट खरीद के लाएगी या उसके हस्बैंड खरीद के लाएंगे उसकी ननद मांगेगी तो  बोल देगी कि तुम्हें नया खरीद के दे दिया जाएगा। लेकिन यह मैं नहीं दूंगी।

शिम्पी समझ गई थी कि कई बार अपना अधिकार जताना भी चाहिए अगर आप अपने अधिकार को ऐसे ही दान में देते  रहेंगे तो कोई भी उसे दान समझ कर ले लेगा।

होली का त्यौहार आने वाला था उसके पति ने सबके लिए कपड़े खरीद कर लाए थे।  सबको बुलाकर शिम्पी के हस्बैंड कपड़े दे रहे थे भाभी यह साड़ी आपके लिए है और यह शिम्पी तुम्हारे लिए और अपनी बहन के लिए उसने एक अच्छा सा सूट खरीद रखा था और अपने मां के लिए भी एक अच्छा सा साड़ी।  शिम्पी की जेठानी को शिम्पी की साड़ी ज्यादा पसंद आ रहा था उसने शिम्पी से बोला “शिम्पी अगर तुम्हें बुरा ना लगे तो क्या मैं तुम्हारी साड़ी ले ले सकती हूं तुम मेरी वाली रख लो।”

इस बार शिम्पी का सब्र का बांध टूट गया था।  भाभी आपको अगर यह साड़ी पसंद नहीं है तो आप  अपने पसंद का दूसरा खरीद लीजिए लेकिन मैं यह साड़ी नहीं दूंगी मैं क्या सिर्फ सब के उतरन पहनने के लिए पैदा हुई हूं।  शिल्पी के हस्बैंड ने बोला भाभी   कोई बात नहीं अगर आपको साड़ी पसंद नहीं है तो आप मेरे साथ चलना और आप अपनी पसंद का जो मर्जी खरीद लेना।

 वह बहुत दिनों से सोच रही थी कि वह अब जब भी ऐसा मौका आएगा इसका जवाब जरूर देगी।  वह अब बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। आज शिम्पी अंदर ही अंदर घुटने से अच्छा अपने विचार कह देने से हल्का महसूस कर रही थी।  उस दिन के बाद से मजाल है कभी उसकी जेठानी और उसकी ननद ने उसे अपने उतरन देने की हिम्मत की हो।

कई बार क्या होता है कि हम दूसरों को बुरा ना लग जाए इस वजह से चुप हो जाते हैं लेकिन वह सामने वाले के लिए हमारी कमजोरी बन जाता है और वह उसका इस्तेमाल बार-बार करता है इसीलिए कई बार आपको अपना अधिकार जताना भी आना चाहिए।

Writer:Mukesh Kumar

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