ऊँचा घराना- ऋतु गर्ग : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : नंदा की शादी उच्च घराने में हुई। यहाँ का वातावरण उसके लिए एक दम नया था। लेकिन बड़ी बहु होने के नाते जल्दी ही उसने सभी

पर अपना रोब बना कर रखा।

 कहा नहीं जा सकता कि जिम्मेदारियों ने उसे कड़क बना दिया या फिर पैसे ने।

 वह स्वयं को सर्वेसर्वा मानकर सभी पर हुकुम चलाती यहाँ तक की अपने ससुर की बातों पर भी ज्यादा ध्यान न देती ।

घर में सास न होने की वजह से सभी नंदा की  बातों का अनुसरण करते। 

शादी के बाद नंदा ने दो बेटों और दो बेटियों को जन्म दिया।

    घर में किसी प्रकार की कोई कमी न थी ।तो बच्चों पालन-पोषण भी  नौकर चाकरों, महाराज की देखरेख में हुआ।

 नंदा की छवि घर में तानाशाह शासक के रूप में बन चुकी थी।

 किसी की भी हिम्मत न होती थी उनसे कुछ पूछने की या बात करने की।

बच्चे भी यदि उनका कहना न मानते तो उनको दिनभर एक कमरे में भूखा प्यासा बंद कर देती। 

यह सभी देखकर घर के सेवकों का भी हृदय पिघल  जाता पर उनकी कुछ न चलती।

  दोनों बेटे चूंकि कुछ बड़े थे तो वह अपनी मां की स्वभाव की वजह से सुबह नाश्ता करके अपने पिता और बाबा के साथ दुकान पर जाने लगे।

 जिससे की वह अपनी मां के आक्रोश का शिकार होने से बच रहते।

    बेटियाँ भी अब स्वयं को व्यस्त रखती और अपनी मां के काम में हाथ बटांती या फिर रसोई में जहाँ महाराज खाना बनाता था वहीं पर खाना बनाने के साथ उनका हाथ बंटाकर काम सिखती।

   नंदा को लगता कि चलो अच्छा है बड़ी बेटी कुछ काम सीख रही है।

 जबकि छोटी बेटी पढ़ाई में अच्छी होने की वजह से ज्यादा समय अपनी पढ़ाई पर देती ।

समय बीतता गया। बड़ी बेटी नंदा की पिटाई से बचने के लिए ज्यादातर समय रसोई में बिताने लगी। 

वहीं पर नौकर चाकर काम करते और उससे हमदर्दी रखते।

   उम्र की इस दहलीज पर मनु के पांव डगमगाने लगे ।

   मनु को इनकी प्यार भरी बातें अच्छी लगने लगी।

 एक दिन मौका देखकर एक युवक नौकर मनु को बहकाकर ऊपर अपने कमरे पर ले गया और उसके साथ ओछी हरकत करने की कोशिश करने वाला था कि रामू काका ने अचानक से कमरे 

का दरवाज़ा खोला।

    जिसकी किसी को अपेक्षा नहीं थी ।

रामू काका जो कि पूरे घर की रखवाली करता था और साथ-2 बाग बगीचे का ख्याल भी रखता था।

अचानक से रामू काका को देखकर दोनों सकपका गए।

     मनु रामू काका से हाथ जोड़कर आग्रह करने लगी की यह बात किसी को न बताएं ।

     रामू काका की आँखे लाल हो चुकी थी।

 वह अपने मालिक के साथ नमक हरामी नहीं कर सकता था।

 मनु को डांटते हुए कहने लगा क्या तुमने अपने खानदान की नाम डुबोने की कसम खाई है।

बोलो क्यों कि ऐसी हरकत?

   ओर मनु को नंदा के पास ले जाकर सारी बात बताई।

यह जनकर नंदा को बहुत गुस्सा आया और सन्नाटेदार दो थप्पड़ मनु की गाल पर रसीद कर दिए।

  ओर पूछने लगी तुम्हे क्या मिलेगा माता पिता नाम डूबोकर।

 तूने एक बार भी नहीं सोचा।

 रामु काका यह सब सुन रहे थे।

    नंदा ने सबसे पहले नौकर को डांटकर उसको नौकरी से बाहर किया।

     रामू काका ने बहुत अदब के साथ नंदा के सामने हाथ जोड़ते हुए प्रार्थना की की यह इस बात को यहीं पर दफन कर देना बेटी।

     मैं तो नौकर हूं ,लेकिन यह बात यदि घर के बाहर जाएगी तो उच्च घरानों और उनकी परवरिश पर सदा के लिए प्रश्न चिन्ह लग जाएगा। 

उचित तो यह होगा कि आप अपने बच्चों को अनुशासित तो करें पर साथ-साथ उनके साथ प्रेम करें जिससे उन्हें बाहर का रास्ता नही चुनना पड़ेगा और बच्चे भी आपको अपनी पसंद नापसंद और मन की बात कर सकेंगे।

   यदि घर में ही संतुलित वातावरण तैयार होगा‌ तो बच्चों को भी घर की मान मर्यादा का ध्यान रहेगा और  उन्हें कोई बहला फुसलाकर गलत कार्य नहीं’ करवा सकेगा।

रामु काका की बातों ने नंदा को सोचने पर विवश किया की आज तक वह कितनी गलत थी।

 राम काका  ने आज घर की इज्जत को नाम डुबोने से बचा लिया।

  नंदा ने रामु काका के सामने हाथ जोड़ते हुए आभार व्यक्त किया कि आज आपकी वजह से मेरी आँखे खुल गई।

    नंदा की आँखों में आज पश्चाताप के आँसू थे। 

नंदा ने मन ही मन निश्चय किया कि वह घर में प्यार भरा वातावरण तैयार करेगी।

     नंदा ने मनु को गले लगाते हुए कहा- बेटी मुझे माफ‌ कर दो ,मेरी आँखो पर उच्च ऊँचे घराने की पट्टी चढ़ गई थी।

ओर नंदा ने अच्छे व्यवहार से जल्दी ही सभी के दिलों में अच्छी जगह बना ली।

ओर घर की इज्जत को संभालते हुए सही पथ प्रदर्शक के रूप में पहचान बनाई।

ऋतु गर्ग, सिलिगुड़ी, पश्चिम बंगाल

स्वरचित, मौलिक 

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