सुंदर बहू – लतिका श्रीवास्तव

देख तुषार मुझे एकदम सुंदर स्मार्ट हीरोइन जैसी बहू चाहिए…. यही लड़की मेरी बहू बनेगी कितनी सुंदर है ये मुझे बहुत पसंद है क्या नाम है इसका …..माला जी तुषार के सामने ढेर सारी फोटो रख कर उत्साहित हो रही थी …कई फोटो देखने के बाद एक यही फोटो उन्हे बहुत ज्यादा पसंद आ रही थी।

जो भी नाम हो मां पर मुझे तो बिलकुल पसंद नहीं है तुषार ने उस लड़की का फोटो और बायोडाटा देखने के बाद कहा और एक दूसरी फोटो और बायोडाटा निकाल कर मां को देते हुए कहने लगा ..ये देखो मां इस लड़की का बायोडाटा कितना शानदार है इसकी शैक्षणिक योग्यता देखो ऐसी ही लड़की मुझे चाहिए….!जो मुझे और परिवार को समझ भी सके और किसी भी परिस्थिति का सामना धैर्य और कुशलता से कर सके….जैसे आप हो मां…!

बायोडाटा से क्या करना है इसकी सूरत तो देख एकदम सादी सी साधारण ..!ना ….सब नाते रिश्तेदार में मेरी नाक कट जायेगी सब ताना मारेंगे कैसी शक्ल की बहू पसंद की है तुमने!!मेरी बहू तो सुंदर सी होनी चाहिए जिसे देख कर देखते ही रहने का दिल करे….माला जी ने बड़ी हसरत से बेटे से कहा तो तुषार झल्ला गया क्या हो गया है मां आपको सुंदर बहू सुंदर सूरत ….!सुंदरता का मतलब क्या है मां!!आपने ही तो हमेशा गुणों की सुंदरता पर ध्यान दिया है और अभी उल्टा बोल रही हैं!!मुझे आपकी ही तरह आपकी बहू चाहिए मां….कह कर तुषार चला गया और माला जी को अवाक कर गया….मेरे जैसी बहू..!!!!

माला जी कुछ बोल ही नहीं पाईं वो खुद एक अत्यंत साधारण शक्ल सूरत वाली थीं उन्हें याद आ रहा था जब वो बहू बनकर इस घर में आईं थीं तब किसी ने भी उनकी सूरत की  तारीफ नहीं की थी बल्कि खुसुर फुसुर से गर्म होते माहौल में उन्होंने अपनी सूरत को लेकर बहुतेरे उपहास पूर्ण उद्गार सुने थे जिसमे एक उदगार उनकी सास जी का भी था कि ..”अब मेरी तो कोई सुनता नहीं इस घर में सब अपनी मर्जी का करते हैं….!उन्हें बाद में पता चला था कि उनके ससुर जी ने ही  सैकड़ों रिश्तों में उन्हें ही पसंद किया था ….पर क्यों..?? इसका उत्तर जानने की उनकी उत्कंठा अब तक बनी हुई है…. छोटे बेटे की शादी के समय सास जी ने किसी की नहीं सुनी थी और पिता जी की इच्छा के विरुद्ध खुद ही छोटी बहू सिमी के घरवालों से संपर्क करके रिश्ता तय कर आई थी……।




सास जी की पसंद की छोटी बहू सिमी निस्संदेह बहुत सुंदर थी बहुत खूबसूरत…!उज्जवल गोरा रंग ..मृगनयनी सी आंखें… सुतवा नाक ….घने काले बाल… धवल दंत पंक्ति….!पूरे खानदान में सास जी की पसंद की पुरजोर तारीफें हुईं थी….अधिकतर तारीफें एक बार फिर से बड़ी बहू के साधारण नैन नक्श की आलोचना से प्रेरित थीं….सास जी इस बार खुशी से कुप्पा हो रहीं थीं और पिता जी यानी कि ससुर जी को अप्रत्यक्ष रूप से माला जैसी साधारण  शक्ल को पसंद करने लानत भेज रही थीं….!

माला जी के दिल के अंदर ही अंदर तभी कहीं कुछ टीस सी बन गई थी …अपनी शक्ल सूरत छोटी बहू की तुलना में अपनी ही नज़रों में उनका उपहास उड़ाती फिरती थी….छोटी बहू अपनी सुन्दरता के गुण गान में गुम रहती थी सारी रिश्तेदारियों में  मां अपनी सुंदर सलोनी छोटी बहू को ही लेकर जाती थीं कॉलोनी की हर किटी पार्टी की शान थी छोटी बहू ही …मां उसे अपने सिर आंखों पर रखतीं थीं उनका गुरुर थी वो हमेशा उसको अपने साथ ही रखतीं घर का कोई भी काम उसे नहीं करने देती थीं बस रोज उसे सजा धजा कर अपने साथ घुमाने और पास पड़ोस में बिठाने ले जातीं थीं….. सिमी भी अपनी सुन्दरता के गुरुर में रहने लगी थी लापरवाह हो गई थी अपनी घरेलू जिम्मेदारियों के प्रति…मां की शह पाकर वो भी माला का मजाक उड़ाने और घोर उपेक्षा करने से बाज नहीं आती थी।

माला सबके अपरोक्ष उलाहने खामोशी से सुन घरेलू कार्यों को सुघड़ तरीके से करने के साथ साथ अपने बच्चों की पढ़ाई लिखाई में पूरी कर्मठता से अपने आपको व्यस्त रखती थी ….और अच्छी किताबे पढ़ना उसकी जीवनचर्या में शामिल था….

…पिताजी अपने सारे कार्य माला से ही करवाते थे इसलिए नहीं कि वो उनकी पसंद थी या उनके कारण इस घर में बहू बन कर आई थी बल्कि इसलिए कि पिताजी ने एक बार सिमी से अपनी किताबों की अलमारी साफ करने के लिए कहा था तो अव्वल तो उसने इस कार्य में कोई रुचि ही नहीं दिखाई क्योंकि उसे किताबों जैसी बेरंग निर्जीव चीजों में नहीं तड़क भड़क साड़ी कपड़ों और सौंदर्य प्रसाधनों में रुचि थी… फिर बहुत बार याद दिलाने पर जब उसने अलमारी जमाई भी तो पिताजी को अब किताबे ढूंढने में पहले से भी ज्यादा दिक्कत होने लगी थी…!और कई किताबें तो उसके लापरवाह हाथो के स्पर्श से फट भी गईं थीं ।

कौन कहता है किताबें निर्जीव होती हैं उनकी संगत में तो मृतप्राय इंसान सजीव हो उठता है… उन्हें भी उचित देख भाल की आवश्यकता होती है।

तब पिताजी ने अपनी नाराज़गी व्यक्त करते हुए तुरंत माला को बुला कर फिर से अलमारी जमाने के लिए कहा था..!माला ने बहुत प्रसन्नता से तुरंत पिताजी के आदेश का पालन करते हुए इतने व्यवस्थित तरीके से अलमारी जमाई की पिता जी गदगद हो गए थे ….माला की ढेरों तारीफ की थी उन्होंने और कई दिनों तक हर आने जाने वालों को अपनी अलमारी दिखाते रहे थे….




माला को किताबे पढ़ने में बचपन से ही दिलचस्पी थी उसे किताबों से प्रेम था वो तो अभी भी खाली समय में किताबे ही पढ़ती रहती थी….उसने पिताजी की अव्यवस्थित और मूल्यवान किताबों में जिल्द भी चढ़ाया ,सुंदर स्पष्ट नाम और लेखक लिखे फिर हिंदी की अलग और अंग्रेजी की अलग और उसमे भी आध्यात्मिक दार्शनिक सामाजिक स्वास्थ्य संबंधी किताबों को अलग अलग सुव्यवस्थित सजा दिया था …पिताजी को अब किसी भी तरह की किताब किसी भी समय ढूंढने में कोई परेशानी नहीं होती थी….उस दिन के बाद से पिता जी का विश्वास और स्नेह अपनी पढ़ी लिखी माला बहू की समझदारी के प्रति और भी दृढ़ हो गया था।

आज माला की उचित परवरिश एकाग्रता और शिक्षित माहौल के कारण ही उसके दोनों बच्चे उच्च शिक्षित भी हो गए थे अपना सफल करियर भी बना चुके थे …..

अपनी मां को ही बहू ढूंढने की जिम्मेदारी देकर तुषार तो निश्चिंत हो गया था परंतु माला  उहापोह में पड़ी थी पता नही बहू के नाम से उसकी कल्पना में हमेशा सुंदर सी सूरत ही आ जाती थी…जैसे उसकी देवरानी थी …..शायद अपरोक्ष रूप से माला के मन की दबी हुई टीस आज अपने बेटे के लिए सुंदर सूरत वाली बहू लाकर अपना बदला लेने पर उतारू थी…!

हमेशा की तरह शाम को जब वो चाय लेकर पिताजी के कमरे में गई तो वहां आज असमय ही मां को देख कर चकित हो गई ..और मां भी उसे देख कर अचानक चुप हो गईं …. मुंह घुमा कर अपने बहते हुए आंसुओं को छुपाने के यत्न में लग गईं थीं…!क्या हो गया मां आपकी तबियत ठीक नहीं है क्या …माला के .पूछते ही पिताजी मां से कह उठे थे … हां बताओ बताओ अपनी इस बहू से भी तो बता  दो ….अब तुम अपने मुंह से इससे भी कह कर देख लो अपनी लाडली सिर चढ़ी बहू की असलियत….और चाय पीने में मगन हो गए थे।

मां क्या बात है….कुछ कहिए भी….माला ने मां के पास बैठकर आहिस्ता से कहा तो मां की आंखों से भरभरा कर आंसू बह निकले….अब क्या कहूं तुझे बहू …आज छोटी बहू ने सबके सामने मुझे बुढ़िया सठिया गई है कहा और साथ में कहीं भी ले जाने से मना कर दिया कहती है अब मैं उसके स्टेटस के लायक नहीं हूं…..सारे घर से लड़ाई करके उसे अपनी बहू बना कर लाई थी……इतने वर्षो से उसके सारे नखरे उठाए फिरती रही सारी दुनिया में उसकी तारीफों के कसीदे पढ़ती रही….और आज मुझको स्टेटस जता रही है…आज से अपना खाना नाश्ता अलग करने की चेतावनी भी दे दी …अब इस उम्र में मैं कैसे अलग अपना खाना नाश्ता बनाऊंगी ….!आहत स्वर था मां का।

इतनी सी बात पर आप इतना दुखी हो रही हैं मां ….बहू के होते हुए खाना नाश्ता की चिंता आप क्यों करती हैं….हम सब तो रोज पिताजी के साथ खाना नाश्ता करते ही हैं अभी तक आप छोटी के साथ ही करती थीं अब आपका साथ हम लोगो को भी मिल जायेगा कितना अच्छा लगेगा मां…!है ना पिता जी..!!कह उसने पिता जी की तरफ देखा तो पिता जी हर्षविव्ह्वल हो गए थे।

….देखा तुषार की दादी मां आज मेरी पसंद पर तुम्हें भी गर्व हो रहा होगा तुमने हमेशा बाहरी सुंदरता को महत्व दिया और मैंने आंतरिक सुंदरता को प्राथमिकता दी जो सही और उच्च शिक्षा दीक्षा से ही संभव हो पाती है जैसे अपनी ये माला बहू है भले ही दिखने में साधारण शक्ल सूरत की है जिसके कारण तुम इसे हमेशा उपेक्षित और छोटी को सम्मानित करती रही हो परंतु समझदारी सौम्यता और ज्ञान से पूर्ण अद्भुत गुणों की खान है ये ….मैने इसकी योग्यता देख कर ही इसे पसंद किया था…इसकी संतानें भी इससे प्रभावित हुई और इसीलिए संस्कारी और प्रतिभाशाली बन पाई…….

बाह्य सुंदरता अस्थाई होती है आंतरिक सुंदरता ही जीवन को स्थाई रूप से सुंदर संतुलित और पूर्ण बनाती है….!

हां तुषार के दादाजी आप एकदम सही कह रहे हैं मैं बाहरी चमक दमक के फेर में अंधी हो गई थी ….ये मेरी माला बहू ही मेरी सबसे सुंदर बहू है जिसकी सुंदरता कभी फीकी नहीं पड़ेगी….!मेरी पसंद आज मुझ पर ही भारी पड़ रही है …आपकी ही पसंद खरी है ….सच में मैं बहुत बुरी हूं मूर्ख हूं…..दुखी हो रही मां को टोकते हुए माला ने कहा …”अरे मां आप भी तो पिताजी की ही पसंद हैं …..इसीलिए बुरी कैसे हो सकती हैं…क्यों पिता जी ठीक कहा ना मैने….माला के कहते ही पिता जी दिल खोल के हंस पड़े …हां हां बहू एकदम ठीक कहा तुमने ….मेरी पसंद कभी बुरी हो ही नही सकती….मां की आंखों के पश्चाताप के  झिलमिलाते अश्रु पिताजी की आनंदित गुदगुदाती आंखों से मिल कर मुस्कुराने लगे थे….।

…आज माला के दिल में बरसों से दबी हुई टीस सहसा गायब हो गई थी और उस टीस रहित उत्फुल्लित दिल में उसे अपनी सुन्दरता और अपनी होने वाली बहू की सुंदरता का पैमाना स्पष्ट दिखने लगा था..।

#बहू 

लतिका श्रीवास्तव

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!