सास से पंगा.. – संगीता त्रिपाठी

 “मम्मी जी आपके झुमके बहुत सुन्दर है, आप पर बहुत अच्छे लग रहे “बहू प्रीति ने सासू माँ ऊषा की तारीफ करते कहा..।

         “तुम्हे पसंद है बहू तो तुम पहन लो, “उषाजी ने कहा

   “अरे नहीं माँ, आप उतरिये मत ..,आप का झुमका इतना सुन्दर है मै तारीफ से अपने को रोक ना पाई,”बहू की आँखों में झुमका उतरते देख चमक आ गई।

     ऊषा जी ने झुमका उतार कर बहू के हाथ पर रख दिया। थोड़े ना -नुकुर के बाद प्रीति ने खुशी -खुशी झुमका पहन लिया..। ऊषा जी ने सोचा, बहू को प्यार दूंगी तभी तो बहू मुझे माँ समझेगी…।

     अब अक्सर ऐसा होने लगा, ऊषा जी कुछ भी पहनती, प्रीति ढेरों तारीफ करती तब ऊषा जी उसे दे देती…। एक दिन ऊषा जी के पति ने उन्हें समझाया ” बहू खुद भी इतना कमाती है, फिर भी तुम्हारे गहने -कपड़ों पर आँख लगाये रहती है….,तुम बहू को दो, मै मना नहीं करता, पर ध्यान रखों अति हर चीज की बुरी होती है…, उसे गलत आदत मत लगाओ…।

   “बच्ची है, उसे पसंद आ गया तो मैंने दे दिया, कौन सा ले कर भाग जायेगी..”उषाजी ने बहू की तरफदारी करते कहा। बात आई -गई हो गई।

   एक दिन ऊषा जी को शादी में जाना था, कांजीवरम साड़ी पहनी तो उस पर झुमके पहनने का मन हो आया, प्रीति से मांगने गई तो वो बोली “वो तो मै लॉकर में रख आई मम्मीजी “

    “बहू, लॉकर में रखने की क्या जरूरत थी “उषाजी कहा।

       “मम्मीजी, मैंने सोचा चोरी ना हो जाये इसलिये मै अपने लाकर में रख आई।

     ऊषा जी अपने कमरे में लौट आई, दूसरे दिन फिर रिश्तेदारी में जाने के लिये तैयार हुई तो बहू से वो चैन मांगने गई जो बहू एक दिन उनसे मांग कर ले गई थी, पर प्रीति ने उसे भी लॉकर में रख दिया था..।

     अब ऊषा जी को समझ में आने लगा बहू उनके सीधेपन का फायदा उठा सब कुछ ले ले रही है..।




   कुछ दिन बाद एक रात ऊषा जी किसी पार्टी से लौटी “अरे वाह ..मम्मी जी, इतनी सुन्दर पश्मीना की शाल…, कितनी खूबसूरत शाल है “प्रीति एक बार फिर सासू माँ की तारीफ करने से ना चुकी।

  “हाँ, तेरे ससुर जी ने पिछले साल मेरे जन्मदिन पर दिया था “ऊषा जी ने खुश हो कर कहा।

    “एक दिन मै भी लूंगी इसे आप से .. मेरी सहेलियां तो जल जायेंगी, मेरी ये ट्रेडिशनल शाल देख कर “प्रीति बोली।

    “ये प्योर पश्मीना है, तेरे ससुर जी ने अपने एक दोस्त से कश्मीर से मंगवाया था…”ऊषा जी ने बताया।

      प्रीति इंतजार करती रही सासू माँ और सामान की तरह इसे भी दे देंगी, पर इस बार सासू माँ ने उसे शाल ऑफर नहीं की, और अपने कमरे में चली गई…,

       ऊषा के दिमाग में दूसरी खिचड़ी पक रही थी, बहू को कैसे सबक सिखाया जाये…।

         एक दिन बहू अपना खूबसूरत हार पहन कर कहीं जाने को तैयार थी,ऊषा जी ने हार की खूब तारीफ की…,अगली सुबह ऊषा जी ने बहू हार पहनने को मांग लिया, बहू ना नहीं कर पाई, अब ऊषा जी बहू के हर सामान को उसकी तरह मांग लेती, जब बहू मांगती तो बोल देती अपने लॉकर में रख आई…।

      बहू को समझ में आ गया अब दाल नहीं गलने वाली… एक दिन ऊषा जी के सारे गहने वापस कर बोली “मम्मी जी मुझसे गलती हो गई थी, मै आज आपके सारे गहने लॉकर से निकाल लाई, अब आप मेरे गहने भी दे दीजिये…”।

     ऊषा जी मन ही मन मुस्काई… नादान लड़की..चली है सास से पंगा लेने….।

      . —-संगीता त्रिपाठी

                             #स्वरचित और मौलिक

    #बहू

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