ससुराल तो ससुराल ही होता है-मुकेश कुमार

श्रीकांत जी का घर पूरी तरह से दुल्हन की तरह सज चुका था  मौका था उनकी छोटी बेटी मालिनी की सगाई का, कुछ ही देर में  लड़के वाले श्रीकांत जी के घर पर सगाई के लिए आने वाले थे। घर में आज तरह तरह के पकवान बनाए जा रहे थे ताकि लड़कों वालों की मेहमान नवाजी में कोई भी कमी ना रह जाए।

क्योंकि मालिनी की शादी इस घर की आखिरी शादी थी श्रीकांत जी कोई भी कमी नहीं रहने देना चाहते थे।  श्रीकांत जी के दो बड़े बेटे थे जो कि अच्छे सरकारी जॉब में थे। उन दोनों की मालिनी इकलौती बहन थी इस वजह से मालिनी की शादी में कोई भी कमी नहीं छोड़ना चाहते थे।

वह चाहते थे कि मालिनी की शादी शहर की बेस्ट शादियों में एक हो। मालिनी की शादी जिस लड़के से हो रही थी वह लड़का शिक्षा पदाधिकारी था।  मालिनी थी भी तो बला की खूबसूरत उसे जब लड़के वाले देखने आए थे तो एक ही नजर में पसंद कर लिया था।

उसके बाद उसी दिन डिसाइड हुआ अगले महीने सगाई होगा और उसके अगले महीने शादी के डेट फिक्स हो जाएगा। मालिनी भी पढ़ाई में काफी तेज विद्यार्थी  थी वह शुरू से ही अपने क्लास में फर्स्ट आती रही है यहां तक कि दसवीं और बारहवीं में में वह सेकंड टॉपर भी रह चुकी है। ग्रेजुएशन कंप्लीट करने के बाद उसे यह  B.Ed करने का मन था लेकिन शादी की वजह से B.Ed करना टाल दिया था उसने सोचा कि जब शादी हो जाएगी तो वह अपना B.Ed कंप्लीट करेगी और टीचर की जॉब करेगी उसे टीचर की जॉब करना पसंद था।



बाहर गाड़ी की सायरन की आवाज सुनाई दी तो घरवाले  सब काम छोड़कर बाहर निकले तो लड़के वाले घर पर आ गए  थे। मालनी के दोनों बड़े भाई और पिता श्रीकांत जी ने मेहमानों का स्वागत करते हुए घर के अंदर लेकर आए कुछ देर बाद ही सगाई की रस्म अदा की गई मालिनी और उसका होने वाला पति दीपक एक दूसरे को अंगूठी पहना कर सगाई की रस्म अदा की।अगले महीने   पंडित जी को बुलाकर शादी की डेट फिक्स कर दी गई।

एक महिना कब बिता  पता भी नहीं चला और शादी का दिन नजदीक आ गया मालिनी की शादी बड़ी ही धूमधाम से हुई इस शादी की चर्चा पूरे शहर में थी। मालिनी के भाइयों का इच्छा था कि मालिनी के होने वाला पति हेलीकॉप्टर से दरवाजे पर उतरे और ऐसा ही हुआ।  

रात भर बहुत धूमधाम से शादी की सारी रस्में निभाई गई और सुबह होते ही विदाई का वक्त हो गया।  सब ने नम आंखों से मालिनी की विदाई की कुछ देर बाद मालिनी अपने ससुराल पहुंच चुकी थी वहां पर भी उसका स्वागत बहुत ही अच्छे तरीके से किया गया।

दीपक एक संयुक्त परिवार में रहता था इसलिए उसके यहां मेहमानों की कमी नहीं  थी घर मेहमानों से भरा हुआ था चाचा, मामा, ताऊ सब आए हुए हैं। दो-चार दिन तो मालिनी के कैसे बीते मालनी को पता भी नहीं चला।  मालनी से कोई भी काम करने नहीं दिया जाता था उसकी सेवा में सब हाजिर रहते थे।



एक दिन सुबह   मालनी की सास ने मालिनी से बोला बहु अगर अपने मायके जाना चाहती हो तो दो-चार दिन के लिए चले जाओ क्योंकि सारे मेहमान जाते के साथ ही फिर  6 महीने जाने का समय नहीं मिलेगा।

यह सुन मालीनी बहुत खुश हुई और उसने अपनी मां को फोन करके यह बात बताई शाम को ही उसका छोटा भाई मालनी को लेकर अपने घर आ गया था।  घर आते ही मालनी को सब ने घेर लिया था मालिनी की दोनों भाभी और उसकी मां मालनी से पूछे जा रही थी बताओ कैसा है तुम्हारा ससुराल मालिनी भी बहुत खुश थी वह अपने ससुराल की बहुत ही तारीफ कर रही थी क्योंकि वहां पर अभी तक तो सब उसके साथ बहुत अच्छी तरह से पेश आ रहे थे सब कोई उसे बहुत प्यार कर रहा था जैसा उसने देखा वह सब कुछ अपने मायके में बता दिया।

उसकी मां ने भगवान   से बोला कि भगवान आपका बहुत-बहुत शुक्रगुजार हूं जो मेरी बेटी को इतना अच्छा ससुराल मिला जैसा हम चाहते थे वैसा ही हमारी बेटी को ससुराल मिला।

एक सप्ताह बाद ही दीपक मालिनी को लेने  अपने ससुराल आ गया अगले दिन ही मालिनी को बहुत अच्छे से दीपक के साथ विदाई दी गई और उनकी सुखी जीवन की आशीर्वाद देते हुए मालिनी के मां पापा ने विदा की।

मालिनी दीपक के साथ जैसे ही अपने ससुराल पहुंची तो ससुराल पूरी तरह से खाली हो चुका था सारे मेहमान अपने घर जा चुके थे घर  बिल्कुल सुना सुना लग रहा था। घर पहुंचते ही मालिनी ने अपने सास-ससुर के पैर छुए और अपने कमरे में चली गई ।



शाम होते ही मालिनी ने सोचा किचन में चलकर खाना बना देती हूं लेकिन जैसे ही किचन में पहुंची मालिनी के सास  ने उसे किचन में जाने से रोक दिया बोली बहू हमारे यहां बहू ऐसे ही किचन में नहीं चली जाती है कल सुबह अच्छे से नहा धोकर पूजा कर  किचन में प्रवेश करोगी। उसके बाद भी तुम किचन में खाना बनाना शुरु कर सकती हो।

दिनभर की मालिनी थकी हुई थी इस वजह से रात में कब उसकी नींद लग गई उसे पता ही नहीं चला क्योंकि।   मालिनी को अपने मायके में देर से सोने की आदत थी तो सुबह उसकी नींद ही नहीं खुली। मालिनी का पति दीपक सुबह सुबह पार्क में टहलने के लिए जाता था तो वह सुबह 5:00 बजे ही उठ कर चला गया था।  मालिनी के सास मालिनी के जगाते हुए बोली बहु अब कब उठोगी और कब सबके लिए नाश्ता तैयार करोगी।

अपनी सास की आवाज सुन मालनी झठ से उठ पड़ी ।  हाँ माँ जी थोड़ी आंख लग गई थी अभी जग रही हो। तभी उसकी सास ने अपने घर के नियम कानून समझाने लगी।  देखो बहू कल से सुबह 6:00 बजे नहा धोकर किचन में पहुंच जाना और हां यहां पर तुम्हें साड़ी ही पहनना है सलवार सूट पहने के बारे में तो सोचना भी मत क्योंकि हमारे घर की बहुएं सलवार सूट नहीं पहनती है और सिर से पल्लू गीरना नहीं चाहिए।

और हां जब घर के सारे बड़े बैठे हो तो वहां आ कर मत बैठ जाना बल्कि अपने कमरे में रहना। उसके बाद मालिनी ने हां में सिर हिलाते हुए सबकुछ स्वीकार कर लिया लेकिन अपने सास के जाते ही वह सोचने लगी शादी के 7 दिन बाद ही  कितना कुछ बदल गया मैं सोचती थी कि मेरा ससुराल कितना अच्छा है सब आजाद ख्याल के लोग हैं लेकिन यह तो पूरी तरह से दकियानूसी सोच रखते हैं।



मालिनी एक स्वतंत्र सोच वाली लड़की थी और वह इन सब  पुरातन प्रथा को बदलने की सोच रखती थी । तभी उसे अपनी मां की विदाई के समय वाली बात याद आई बेटी अपने ससुराल में ऐसा कोई भी काम ना करना जिस वजह से तुम्हारे बाबूजी और तुम्हारे मायके की बदनामी हो यह सोचकर उसने अपने  सास की हर बात मान जाती थी।

दीपक मालिनी को बहुत प्यार करता था लेकिन वह अपनी मां से बहुत डरता था इस वजह से बहुत कुछ चाह कर भी नहीं कर पाता था वह ऑफिस से घर आता तो भी अपने कमरे में नहीं जाता था बल्कि मां बाबूजी के साथ ही उनके पास ही बैठा रहता था।

जब सोने का समय होता तभी वह अपने कमरे में जाता इस वजह से मालिनी और दीपक में बहुत कम ही बात हो पाती थी क्योंकि तब तक दिन भर की थकी हारी मालिनी को नींद आने लगी होती थी और वह सो जाती ऐसे ही करते हुए दिन बीते जा रहा था।

एक दिन मालिनी को उसके पसंदीदा हीरो की फिल्म रिलीज हुई थी उसने देखने की इच्छा जाहिर की तो उसने बोला इसमें कौन सी बड़ी बात है चलो चलते हैं टिकट बुक करवा लिया था और तैयार होकर सिनेमा देखने के लिए जैसे ही निकले मां दरवाजे के पास खड़ी थी।



मां ने पूछी लिया कहां जा रहे हो बहू, बहू ने  धीरे से बोला माँ जी बहुत दिनों से सिनेमा देखने का मन हो रहा था वही देखने जा रहे हैं इतना सुनते ही मालिनी के सास गुस्से में लाल हो गई।  

मालिनी याद रखो यह तुम्हारा मायका नहीं ससुराल है जब मर्जी जहां भी चल दो यहां बहुएं सिनेमा देखने नहीं जाती हैं अगर कहीं घूमने का मन हो तो तुम मेरे साथ मंदिर चल लेना।

बाहर लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे बेटा और बहू देखो अभी शादी के 1 महीने भी नहीं हुए और ऐश करने लगे।  मां के सामने दीपक की एक भी नहीं चलती थी दीपक बोला मालिनी रहने देते हैं बाद में कभी चलेंगे। उस दिन मालिनी को बहुत बुरा लगा लेकिन वह कर भी क्या सकती थी।

उसने अपने ससुराल वाले के बारे में इतनी अच्छी सोच रखती थी कितनी तारीफ की  थी अपने मायके में लेकिन वह सब कुछ झूठ निकला।

मालिनी अब उदास उदास रहने लगी थी.। अब  जब उसे इसी घर में ही रहना था उसने सोचा कि क्यों ना B.Ed की तैयारी कर लेती हूँ।  शाम को जब दीपक घर पर आया तो रात में मालिनी ने उसे B.Ed पढ़ने के बारे में बताया दीपक तैयार हो गया था लेकिन उसने बोला मालिनी एक बार मां से भी राय ले लेते हैं अगर वह तैयार हो जाती हैं तो मैं तुम्हारा नाम  B.Ed में लिखवा दूंगा।



सुबह होते ही ऑफिस जाते वक्त में अपनी मां से मालिनी की  B.Ed वाली बात बताई। दीपक तुम गुस्से में हो गई उसने अपने बेटे से बोली तुम्हें पता नहीं है कि हमारे घर की बहू नौकरी करने नहीं जाती है जब तुम कमाते ही  हो

तो वो जॉब करने के लिए क्यों जाएगी इतनी बदनामी होगी हमारे मोहल्ले में लोग कहेंगे इनकी  बहू नौकरी करने जाती है।

यह सुन चुपचाप  दीपक ऑफिस चला गया।  शाम को जब घर आया तो मालिनी को उसने बता दिया  की माँ मना कर रही है B.Ed करने से इस बार तो मालिनी को बहुत गुस्सा आया लेकिन क्या करें मजबूर थी आखिर ससुराल था अपने मन की करें तो कैसे करें।  

एक दिन शाम को दीपक जब ऑफिस से घर आया तो वह काफी देर तक बैठा रहा लेकिन मालिनी नहीं आई उसको सर में दर्द था इस वजह से वह सो गई थी। दीपक ने अपनी मां से चाय बनाकर पी लिया और बैठ के सब टीवी देख रहे थे तभी मालिनी अपने कमरे से उठ कर आए और देखें कि दीपक कब के आए हुए हैं और उन्होंने दीपक से सॉरी बोला आंख लग गई थी पता ही नहीं चला आप कब आए हैं।

मालिनी ने बोला कि आप ने मुझे जगाया क्यों नहीं यह सुनते ही दीपक उससे बहुत गुस्सा हो गया उसने बोला हां तुम्हें अब तो  जगाना पड़ेगा तुम तो इस घर की महारानी हो। बातों बातों में ही दीपक ने मालिनी को एक थप्पड़ लगा दिया मालिनी बेहोश होकर जमीन पर गिर गई आनन फानन में डॉक्टर को बुलाया गया डॉक्टर ने दीपक को बताया दीपक अब तुम लड्डू खिलाओ क्योंकि अब तुम पिता बनने वाले हो।



घर में सब खुश हो गए थे मालिनी को भी होश आया तो वह भी खुश थी लेकिन धीरे-धीरे वह कमजोर होते जा रही थी उससे अब कोई भी घर का काम नहीं हो पा रहा था तो उसने दीपक से बच्चा जन्म होने तक अपने मायके में रहने की बात कही।  दीपक के घर वाले भी इस बात के लिए तैयार हो गए थे दीपक की मां ने सोचा अच्छा है बहुत चली जाएगी तो वरना रहेगी इसकी सेवा मुझे ही करनी पड़ेगी।

अगले दिन ही मालिनी का पिताजी आकर मालिनी को अपने घर ले गए।

मालिनी अपने मां से मिलते ही बहुत जोर से रोने लगी सब आश्चर्यचकित हो गए कि मालिनी  इतना रो क्यों रही है उसने तो बताया था उसके ससुराल वाले बहुत अच्छे हैं क्योंकि आज तक उसने अपने ससुराल की एक बार भी किसी के सामने बुराई नहीं की।  चाहे वह कितना भी दुख झेल ल रही थी। रात में मालिनी और उसकी मां जब सोए हुए थे मालिनी ने अपने ससुराल कि हर एक बात अपनी मां से बता दी उसकी मां ने उसे तुरंत गले लगाया और बोला मेरी बच्ची कितने दिन से इतना दर्द झेल रही थी और तुमने एक बार भी नहीं बताया।   मालिनी बोली कैसे बताती मां आपने ही तो अपने बोला था आज के बाद से तुम्हारा ससुराल ही तुम्हारा घर है अब मैं अपने घर की बुराई कैसे करती ।

मायके में मालिनी की सब बहुत ही सेवा करते क्योंकि इसकी भाभी मालनी को बहुत प्यार करती थी इस मामले में मालिनी बहुत लक्की थी।  मालिनी को कोई भी काम करने नहीं दिया जाता था धीरे धीरे डिलीवरी की तारीख नजदीक आ गए मालिनी को हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया गया था।  कुछ देर बाद ही मालिनी ने एक प्यारी सी बच्ची को जन्म दिया।



सब बहुत खुश थे।  और उन्होंने मालिनी के हसबैंड दीपक को फोन कर कर इस बारे में जानकारी दें  मालिनी को बहुत प्यारी सी एक बच्ची हुई है। जब दीपक ने यह सुना कि मालिनी ने एक लड़की को जन्म दिया है वह फोन काट दिया और दोबारा फोन करने पर फोन बिजी बताने लगा।  

कई दिन बीत गए मालिनी के ससुराल वालों की तरफ से ना कोई फोन आया ना ही कोई उससे मिलने आया मालिनी अपने घर आ गई थी।  उसमें भी कई बार दीपक को फोन लगाने की कोशिश की लेकिन दीपक मालनी का फोन नहीं उठाता था।

मालिनी के घर वालों को जब उसके ससुराल वालों की करतूत के बारे में पता चला तो यह भी मालिनी को वहां पर भेजने को तैयार नहीं थी नहीं वह मालिनी को लेने आए और ना ही मालिनी के घर वालों ने वहां मालिनी को भेजने का कोई प्रयास किया ऐसे करते-करते मालिनी  4 साल की हो गई।

अब मालिनी को अपने बच्चे की पढ़ाई की चिंता सताने लगी आखिर वह कब तक किसी और पर निर्भर रहेगी।  उसने अपनी B.Ed की पढ़ाई के लिए अपने भाइयों से बात की उसके बड़े भाई ने मालिनी के B.Ed में एडमिशन करा दिया और  कुछ साल बाद मालिनी एक सरकारी स्कूल में शिक्षक बन गई।

अब मालिनी को भी दीपक के बिना जीने की आदत पड़ चुकी थी दीपक तो पता नहीं कब मालिनी के दिल से  बुझ चुका था।



जिस  स्कूल में मालिनी शिक्षक थी  उसी स्कूल में एक दिन अचानक से दीपक को निरीक्षण के लिए जाना था  और वह स्कूल पहुंचकर जिस क्लास में निरीक्षण के लिए गया वहां मालीनी को देखकर दंग रह गया।  

अब मालिनी से नजरें नहीं मिला पा रहा था वह वापस लौट आया था।  बाहर आकर स्कूल की छुट्टी होने का इंतजार कर रहा था जैसे ही स्कूल की छुट्टी हुई मालिनी स्कूल से बाहर निकली दीपक  उसके पास चला गया और उससे माफी मांगने लगा मालिनी मुझे माफ कर दो मैंने तुम्हें समझ नहीं सका।

मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है लेकिन हिम्मत नहीं हो पाती थी कि मैं तुमसे बात करता हूं चलो अब घर लौट चलो मां भी तुम्हारा इंतजार कर रही है।  मालिनी ने दीपक को जवाब दिया दीपक तुम्हारे नाम का दीपक तो आज से 3 साल पहले ही बुझ चुका है ।

जब तुम मुझे और मेरी बेटी को देखने तक नहीं आए मैंने तो उसी दिन से फैसला कर लिया था कि मैं और अपनी बेटी की जिंदगी में तुम्हारे नाम को हमेशा के लिए बुझा दूँगी।

दीपक ने कई बार आग्रह किया कि मालिनी प्लीज मुझे माफ कर दो मुझे बहुत अफसोस है मैंने तुम लोगों को बहुत ही दिल दुखाया है।  

लेकिन मालिनी मानने को तैयार नहीं थी।  दीपक समझ गया था कि अब बहुत देर हो गई है  एक बार जब मोम का दीपक पूरी तरह से जल जाता है तो उसे दोबारा जलाया नहीं जा सकता है।

लेखक:मुकेश कुमार

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!