पत्नियां तो ऐसी ही होती हैं – मुकेश कुमार

आज हमारी शादी की 20 वीं सालगिरह है, मैं और मेरी पत्नी रिचा और हमारे दोनों बच्चे बहुत खुशी से अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं।  आज भी मुझे ऐसा लगता है जैसे अभी-अभी हमारी शादी हुई है। हमारी शादी लव कम अरेंज हुई थी, हम दोनों एक ही कंपनी में जॉब करते थे वहीं हम दोनों का प्यार हुआ और फिर घर वाले की मर्जी से शादी भी हो गया।

हम कभी भी एक दूसरे के साथ पति-पत्नी के जैसा  नहीं रहते थे बल्कि एक सच्चे दोस्त की हैसियत से हम दोनों साथ रहते थे कभी-कभी तो मेरी पत्नी यह कहती थी कि आप कभी मुझे डांटते क्यों नहीं है, मैं कहता था यार तुमने डांटने वाली कोई काम करोगी तब तो मैं डांटुंगा या वैसे ही फालतू में डांटता रहूंगा।

लेकिन शादी के 10 दिन बाद जो हुआ वह हमने कभी सोचा भी नहीं था उस हादसे ने हमारी पूरी जिंदगी बदल दी हमारे सारे सपने चकनाचूर हो चुके थे।  दरअसल बात यह था।



मैं और  मेरी पत्नी रिचा शादी के 1 सप्ताह बाद ही हनीमून के लिए मुंबई गए हुए थे जिस दिन  हमारा मुंबई में आखिरी दिन था तो उस दिन हमने सोचा कि ट्रेन तो हमारी 10:00 बजे रात की है तो  शाम को गेटवे ऑफ इंडिया चलते हैं ।

गेटवे ऑफ इंडिया जाने के लिए हमने एक कैब बुक  किया। कैब वाला ड्राइवर गाड़ी इतना तेज चला रहा था मैंने कई बार बोला कि भाई गाड़ी थोड़ा धीमे चला लो लेकिन वह हमारी बात मान ही नहीं रहा था और फिर जो हुआ उसका नतीजा यह हुआ कि मैं और मेरी पत्नी रिचा दोनों अस्पताल पहुंच चुके थे।

 रिचा को तो खैर ज्यादा चोट नहीं आई थी लेकिन मेरे दोनों पैर पूरी तरह से फ्रैक्चर हो चुके थे और यहां तक कि डॉक्टर ने भी कह दिया था अब चलने की संभावना बहुत ही कम है क्योंकि पैरों की हड्डी  पूरी तरह से चकनाचूर हो चुका है।  मुंबई जैसे बड़े शहर में कोई जानने वाला भी नहीं था मेरी पत्नी परेशान हो गई थी।

रिचा ने हॉस्पिटल से ही मेरे घर पर फोन लगाया मेरे बड़े भाई और बाबूजी अगले दिन ही मुंबई पहुंच चुके थे । कुछ दिनों के बाद हॉस्पिटल से मुझे छुट्टी मिल गई लेकिन हॉस्पिटल वालों ने कह दिया कि मैं अब जिंदगी भर चल नहीं पाऊंगा एक की हल है या तो मेरे दोनों पैर काटने पड़ेंगे और आर्टिफिशियल पैर  लगाने पड़ेंगे लेकिन घरवाले इस बात के लिए राजी नहीं हुए और मुझे लेकर हमारे घर भोपाल आ गए।



उस  दिन के बाद से सबकुछ मेरे लिए बहुत ही तकलीफदेह था, सब कुछ बेड पर ही करना, एक छोटे  से काम के लिए भी किसी और को आवाज देना पड़ता था।  मैंने तो अपनी पत्नी रिचा से कह भी दिया था रिचा तुम मुझे तलाक दे दो और जाओ किसी और लड़के से शादी कर लो क्योंकि अब तो मैं तुम्हें ना कोई खुशी दे सकता हूं ना ही पैसे कमा सकता हूं।

लेकिन उस मुश्किल घड़ी में भी मेरी पत्नी रिचा ने मेरा साथ नहीं छोड़ा उसने रोजाना मुझे हिम्मत दिया मुझे रोज समझाती थी और हमेशा सकारात्मक सोच रखने को  कहती थी। मैंने तो एक बार कह भी दिया कि मैं इस तरह अपाहिज हो गया हूं तो क्या अभी मुझे तुम वैसे ही प्यार करती हो जैसे पहले प्यार करती थी उसका बस एक ही जवाब था क्या तुम्हारी जगह पर मैं आज होती तो क्या तुम मुझे छोड़ देते।  उस दिन के बाद से मुझे एहसास हुआ इसी का नाम तो जिंदगी है मैं अपने आप को बड़ा ही खुशनसीब मानता हूं कि मुझे रिचा जैसी पत्नी मिली। मेरी हर जरूरत का ख्याल रखती थी उसने तो मेरे लिए अपनी नौकरी भी छोड़ दी और घर में ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी ताकि वह मेरा ख्याल सही से रख सकें मुझे जरा सा भी कोई परेशानी होती वह खुद समझ जाती हमेशा वह मुझे प्रोत्साहित करती रहती थी।

रिचा को यह बात पता था कि मुझे पेंटिंग करने का बहुत शौक है उसने मुझे दोबारा से पेंटिंग  करने के लिए उत्साहित किया और बाजार से पेंटिंग का ब्रश, पेंट और कैनवास खरीद कर लाई और वह कहती थी  विनोद तुम्हें कुछ नहीं हुआ है कहा जाता है कि मन के हारे हार है और मन के जीते जीत, तुम हारे नहीं हो अभी भी तुम बहुत कुछ कर सकते हो।

यह पेंटिंग तुम्हारी जिंदगी बदल सकती है आज से तुम्हारे मन में जो भी भाव आते हैं उसे अपने भावों को एक पेंटिंग की शक्ल दे दो।  धीरे धीरे मैंने बहुत सारी पेंटिंग बनाई और वह मेरी पेंटिंग को शहर में जहां जब भी कोई प्रदर्शनी होता उसमें रिचा जरूर ले जाकर लगवा देती  थी। मेरी पेंटिंग धीरे-धीरे बहुत अधिक कीमत पर बिकना शुरू हो गया था। मैंने रिचा से बोला, “रिचा मैं एक पेंटिंग अकैडमी खोलना चाहता हूं हमारे जो दिव्याङ्ग  हैं उनको मैं सिखाना चाहता हूं ताकि जिंदगी में उनको किसी के आगे हाथ फैलाना न पड़े।



मेरी पत्नी बोली  ठीक है हमारे घर मे जो आगे का  कमरा है, मैं उसमें तुम्हारे ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट खोलने की व्यवस्था कर दूंगी। धीरे धीरे सब कुछ सही चलने लगा सिर्फ मेरे चलने के अलावा।

ऐसे करते करते 2  साल से भी ज्यादा बीत गया लेकिन मेरे पैर मे कोई सुधार नहीं हो रहा था आखिर में हारकर मैंने भी सब से कह दिया कि ऐसे तो मैं पूरी जिंदगी बेड पर ही पड़ा रहूंगा इससे अच्छा है मेरे दोनों पैर कटवा दो कम से कम मैं आर्टिफिशियल पैर के सहारे  चल तो पाऊंगा मेरी पत्नी ने यह खबर सुनी तो रोने लगी।

मैंने अपनी पत्नी को समझाया रोने का वक्त नहीं है तुमने भी तो 2 साल तक इंतजार किया ना, देखा ना, कुछ नहीं हो रहा है, आखिर कब तक मुझको सेवा करती रहोगी मैं ऐसे बिस्तर पर बहुत दिनों तक रह नहीं सकता हूँ। मैंने अपने पत्नी को राजी किया और भोपाल में मे ही एक  हॉस्पिटल में अपना ऑपरेशन करवाया उसके 3 महीनों के बाद आर्टिफिशियल पैर लग गया और मैं धीरे धीरे चलने लगा।

अगले साल  ही मेरी पत्नी रिचा ने जुड़वा बच्चे को जन्म दिया जो एक लड़का और एक लड़की थी। मैं और पत्नी  रिचा अपने बच्चों के साथ हंसी-खुशी जीवन बिताने लगे। हमारी अकैडमी भी अब बहुत अच्छा चल पड़ा था।   मेरे पेंटिंग देश-विदेश में फेमस हो गए थे और उधर मेरी पत्नी ने जो ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया था उस ट्यूशन को छोटे से प्ले स्कूल में परिवर्तन कर दिया था।  हम अपने मोहल्ले में ही एक घर किराए पर लेकर प्ले स्कूल चलाना शुरु कर दिए थे।

आज मेरी पत्नी का प्यार और सहयोग का नतीजा यह है कि आज 20 सालों बाद भी मेरे पैर नहीं है लेकिन कभी भी मुझे पैर ना होने का एहसास नहीं हुआ।  कभी मेरी पत्नी मेरे दोनों पैर बन जाती है तो कभी मेरे दोनों बच्चे।

दोस्तों मुझे अपनी कहानी बताने का आपसे बस इतना ही तात्पर्य था कि जीवन में कुछ भी मुश्किल नहीं है आपके अंदर इरादे और हौसले होने चाहिए आप कुछ भी कर सकते हैं।

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