पछतावे के आंसू –  गीता वाधवानी

मां की तेरहवीं के सारे रीति रिवाज निपट चुके थे। सारे मेहमान भी जा चुके थे। अगले दिन जब पिताजी भी दुकान खोलने चले गए, तब वह मां की अलमारी खोल कर उसके सामने खड़ा था। यह था निखिल। हाथ में बीस हजार रुपए लिए मुस्कुराता हुआ खड़ा था। उसे पता था कि बचपन से आज तक जब भी उसने अपनी मां से पैसे मांगे थे, मां ने उसे हमेशा पैसे दिए थे, लेकिन पूरी जांच पड़ताल करने के बाद जब उसे तसल्ली हो जाती थी कि निखिल सही कारण से पैसे मांग रहा है, तभी वह उसकी डिमांड पूरी करती थी। 

अभी कुछ दिन पहले निखिल ने उनसे व्यापार में लगाने के लिए पचास हजार मांगे थे। मां हमेशा कुछ न कुछ जोड़कर रखती थी। उसी ने से निखिल की जरूरतें पूरी करती थी। वैसे तो निखिल के पापा ओम प्रकाश जी भी निखिल को किसी बात के लिए मना नहीं करते थे लेकिन वे बहुत ही गुस्से बाज इंसान थे। उनसे किसी चीज के लिए रुपए मांगना मतलब  सांप के बिल में हाथ डालना। वह निखिल की मां रश्मि और निखिल दोनों का बात-बात में अपमान करते थे और घर खर्च देते समय भी बहुत किट किट करते थे, हालांकि उनके पास दौलत की कमी नहीं थी।  

रश्मि बच्चों के खर्चे समझती थी इसीलिए वह हमेशा निखिल का सही बात में साथ देती थी और निखिल को फालतू खर्चा करते देख कर कई बार उसने उसे डांटा  भी था। 

रश्मि के डांटने और ओमप्रकाश के डांटने में जमीन आसमान का अंतर था। रश्मि सोच समझकर डांटती थी कि बच्चा अब बड़ा हो रहा है, उसी ऐसा नहीं लगना चाहिए कि मेरी बेइज्जती हो रही है या फिर मम्मी पापा मुझे प्यार नहीं करते। जब ओम प्रकाश जी निखिल को डांटते थे,वे आगा पीछा कुछ नहीं सोचते थे और निखिल पर गालियों की बौछार शुरू कर देते थे। रश्मि ने कई बार उन्हें समझाने की कोशिश की और बदले में उसने भी खूब गालियां खाई। 




ओमप्रकाश जी के इस बर्ताव के कारण निखिल उनसे दूर होता जा रहा था और उनसे नफरत करने लगा था। धीरे धीरे वह अपनी मां से भी दूर होने लगा, रश्मि उसे संभालने की भरपूर कोशिश करती थी और यह भी कोशिश करती थी कि वह कभी भी निराश ना हो। धीरे धीरे निखिल ढीठ और लापरवाह हो ना शुरु हो गया था। वह अब अपने पापा के साथ साथ अपनी मां का भी बात बात में अपमान करने लगा था। रश्मि उसे बहुत सी बातें समझाती थी। वह एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देता या फिर कहता कि मुझे उपदेश मत दो। रश्मि उसके व्यवहार से बहुत निराश की और जब निखिल, जिस पर वह जान लुटाती थी, उसका या ओम प्रकाश जी का अपमान करता तो वह अकेले में खूब रोती और सोचती की निखिल को कैसे रहा पर लेकर आऊं। उसने निखिल को समझाया-“बेटा निखिल, पापा थोड़ा ज्यादा गुस्सा करते हैं लेकिन दिल के बहुत अच्छे हैं और तुमसे बेहद प्यार करते हैं। तुम्हारी बहुत चिंता करते हैं। इसलिए कभी गुस्से में कुछ कह दें तो तुम पलटकर जवाब दिया करो और कभी गुस्सा आए भी तो मेरे बारे में सोच कर चुप हो जाया करो। देखो, मैं भी तो कभी उन्हें जवाब नहीं देती हूं। जवाब देने से झगड़ा बढ़ता है।” 

निखिल-“मम्मा, एक तो पापा खर्चा देते समय इतनी सवाल पूछते हैं और फिर कुछ कहो, तो गालियां देते हैं। अगर वो मेरी बेइज्जती करेंगें, तो मैं चुप नहीं रहूंगा।” 

ऐसी बातें सुन-सुनकर रश्मि को बहुत टेंशन हो जाती थी। अभी उसकी मृत्यु से कुछ दिन पहले ही निखिल ने उनसे पचास हजार मांगे थे। उसी पचास हजार में से वह मां की अलमारी से ढूंढ कर ₹20000 निकाल  कर खड़ा था और साथ में एक चिट्ठी  भी थी। वैसे तो शायद वह उस चिट्ठी को पढ़ें बिना फाड़ कर फेंक देता, लेकिन चिट्ठी खोलते ही पहली पंक्ति देखते ही उसने पूरी  चिट्ठी पढ़ ली। पहली पंक्ति में मां ने लिखा था-“निखिल बेटा, मुझे पता है तुम्हें रुपयों की बहुत जरूरत है और अगर तुम्हें बाकी के रुपए चाहिए तो तुम्हें मेरा यह पत्र पूरा पढ़ना होगा। निखिल, मैं तुम्हें एक सच बता नहीं जा रही हूं वो यह कि तुम्हें हमने अनाथ आश्रम से गोद लिया था, लेकिन हमें एक पल भी यह बात याद नहीं थी। तुम हमारे लिए हमेशा अनमोल रहोगे। तुम्हारे पापा और मैं तुमसे बहुत ज्यादा प्यार करते हैं शायद तुम उस प्यार को कभी समझ नहीं पाए और छोटी-छोटी बातों में तुम हमारा अपमान करते रहे। जैसे कि कल की बात ले लो, मैं तुम्हारे कमरे में कुछ पूछने आई ,तब तुमने मुझे बुरी तरह झिड़क दिया-“जाओ यहां से यार, बार-बार सर खाने आ जाती हो दिखाई नहीं दे रहा क्या कि मैं फोन पर अपने दोस्त से बात कर रहा हूं।”मैं चुपचाप वहां से चली गई। शायद तुमने एक बार भी महसूस नहीं किया होगा कि तुमने अपनी मां का अपमान किया है। ऐसा ही तुमने कई बार पापा के साथ भी किया। खैर कोई बात नहीं हमने तुम्हें हमेशा बच्चा समझ कर माफ कर दिया। बाकी के 30,000 मेरी दूसरी अलमारी में रखे हैं और साथ में तुम्हारी मां का एक पत्र भी है जो कि हमें अनाथ आश्रम वालों ने दिया था। ये  उन्हें तुम्हारे साथ ही प्राप्त हुआ था तब से हमने उसे खोला नहीं है। लव यू सो मच बेटा।” 




निखिल दूसरी अलमारी से पैसे और पत्र निकालता है। पत्र  खोलकर पढ़ता है । 

“मेरे बेटे, अभी तुम सिर्फ पंद्रह दिन के हो और मैं तुम्हें अनाथ आश्रम के इस झूले में छोड़कर जा रही हूं मुझे माफ़ कर देना। बेटा, तुम्हारे पैदा होने से  कुछ दिन पहले तुम्हारे पिताजी गुजर गए और अब मुझे एक गंभीर बीमारी हो गई है मैं  तुम्हारे पालन पोषण में असमर्थ हूं। मेरे जीवन का कोई भरोसा नहीं। मैंने सुना है कि यहां अच्छे परिवारों के लोग बच्चों को गोद लेने आते हैं और उन्हें अच्छा जीवन देते हैं। बेटा, तुम जहां भी हो, अपने माता पिता का भरपूर सम्मान करना और हमेशा उनके साथ रहना। उन्हें स्नेह देना और हमेशा उनके चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लेते रहना। तुम्हारी अभागी मां उर्मिला।” 

दोनों माताओं के पत्र पढ़कर निखिल जार जार रो रहा था। उसकी आंखों में पछतावे के आंसू थे, वह अपने व्यवहार पर बहुत शर्मिंदा था, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। उसकी मां रश्मि पर क्या बीत रही होगी वह अब अच्छी तरह समझ पा रहा था और वह इस बात पर भी बेहद शर्मिंदा था कि मुझे गोद लेने के बावजूद मेरे माता-पिता ने कभी मुझे पराया होने का एहसास तक होने नहीं दिया और मैं उनके साथ कैसा व्यवहार करता रहा। अब मैं मां से कैसे माफी मांगू। प्लीज, मुझसे एक बार बात करो मां, मुझे कोई पैसे नहीं चाहिए। आप वापस आ जाओ और वह रोता जा रहा था, रोता ही जा रहा था। 

स्वरचित अप्रकाशित

 गीता वाधवानी दिल्ली

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