मेरी परछाईं  – कनक केडिया

अमन बहुत परेशानी से चक्कर काटे जा रहा था। पत्नी अंजलि का पहला प्रसव था और उसमें कई समस्याएं आ गयी थीं। उसका रक्तचाप काफी बढ़ा हुआ था और भी समस्या थी  उसकी डॉ ने ऐसा कहा था। अमन की मम्मी प्रसव के लिए इंदौर से दिल्ली आने वाली थीं पर समय से दो महीने

पहले उसकी प्रसव वेदना चालू हो गयी। अमन ने मम्मी को फ़ोन कर दिया था सारी परिस्थिति का। कोविड की वजह से आवागमन भी तो समस्या बन गया था। उन्हें बस से आना था ,लम्बा सफर था और जाहिर है दादी बनने जा रहीं थी तो जवान तो नही थीं। खैर बेचारी खबर मिलते ही जल्दी से जल्दी निकलने की चेष्टा में लग गईं।

इधर अमन को बच्चे की तो नही पर

अंजलि की बहुत चिंता हो रही थी।अंजलि पत्नी ही नही उसकी साथी,प्यार जिंदगी थी। शादी को तो

चार वर्ष हुए थे पर अमन को लगता था वो और अंजलि सालों से साथ हैं।

उसके साथ के बिना उसके लिए जीवन अकल्पनीय था।

अचानक अमन के सोच की कड़ी में बाधा पहुँची। ऑपरेशन रूम से नर्सों  का जल्दी जल्दी आना जाना उसकी घबराहट बढ़ा गया।

आधे घण्टे बाद डॉ ऑपरेशन रूम से

निकल  अमन के पास आईं और उसके कंधे पर हाथ रख कहा ,बहुत कोशिश की पर हम अंजलि को बचा

न सके। उच्च रक्तचाप की वजह से उन्हें  कई समस्याऐं आ गईं । इतना सुनते ही अमन संज्ञा शून्य हो गया। डॉ के आगे के शब्द कि वो अपनी परछाईं एक नन्ही परी छोड़ गई है वो सुन ही न सका। वो स्तब्ध बैठा रह गया।

कुछ घण्टे बाद उसकी माता जी पंहुची।  उनका भी रो रो कर बुरा हाल था पर उन्हों ने उस छोटी सी बच्ची को कलेजे से लगाया।फिर अंजलि को विदा करने घर ले जाने की व्यवस्था में लग गईं। अमन तो होश में था नही ,उन्हों ने दिल्ली में रह रहे रिश्तेदारों  और पड़ोसियों को कॉल किया और उसी दिन शाम तक अंजलि का शरीर पंचतत्त्व में विलीन हो गया।

अमन ने तो छोटी गुड़िया को देखा भी

नही था,सम्भल ही नहीं पा रहा था । एक दिन उसकी माँ ,गुड़िया को ला कर उसकी  गोद में दे गई पर अमन ने उपेक्षा से मुँह मोड़ लिया। 

अमन की माँ के पास कोई  विकल्प  नही बचा दिल्ली रहने के सिवा।  अमन के पापा तो रिटायर्ड थे ही ,वो भी दिल्ली आ गए। इंदौर का घर उन्हों ने एक बार बन्द कर दिया। अब गुड़िया की दादी ही जितना बन पड़ा गुड़िया की माँ बन गयी। उन्हों ने गुड़िया का नाम अवनी रखा। ज्योँ  ज्यों अवनी बढ़ रही थी उसकी खिलखिलाहट, उसकी मासूम शैतानियाँ उसके दादा और दादी को असीम सुख प्राप्त करा रहे थे। अमन




तो ज्यूँ मशीन बन दुनिया से नाता तोड़ चुका था।बस ऑफिस और घर तथा मौन यही उसकी  दैनिक परिचर्या थी। गुड़िया अभी समझने लायक नही हुई थी वरना उसे जरूर धक्का लगता। गुड़िया की ममता और अमन  की अंजलि के प्रति भावना उसके  मम्मी पापा को दूसरी शादी की बात भी नही उठाने दे रही थी।

समय के साथ गुड़िया एक साल की हो ठुमक ठुमक चलने लगी। उसकी दादी ने उसके पैरों में पायल पहना दी।

अब तो घर मे मीठी सी झंकार, खुशी की लहरें उठाती रहतीं।

दादा और दादी की स्नेह छाया में अवनी का बचपन बढ़ने और खिलने लगा। अब अवनी डेढ़ साल की हो गयी अतः उसके दादा ने उसे प्ले ग्रुप

में डाल दिया। खुद ले जाते और लिवा लाते।

एक बार रविवार को चाय पर अमन की मम्मी ने कहा,बेटा गृहस्थी चलाने वाली की व्यवस्था की सोचो। हम दोनों तो बूढ़े हो चले,हमारा क्या ठिकाना। अवनी भी छोटी है उसे भी सम्भाल की जरूरत है। अमन चाय छोड़ उठ खड़ा हुआ और कहा माँ दुबारा ये बात मत उठाना।अंजलि ही मेरा पहला और अंतिम प्यार थी। माँ बेचारी चुप हो गईं।अब अवनी चार साल की  हो गयी। अब वो अपने पापा को पहचानने लगी और उसके मन मे उनसे प्रेम,स्नेह की भावना जागृत हो गयी।स्कूल में भी वो बच्चों को बातें करते देखती थी कि मेरे पापा मेरे लिए खिलौने लाये या आज हमे घुमाने ले गए तो उसे आश्चर्य लगता कि मेरे पापा मुझसे बात भी नही करते आखिर क्यूँ ? उसकी बाल सुलभ जिज्ञासा उसके दादा दादी को कई बार मुसीबत में डाल देती क्यों कि उसका ये सवाल एक दो दिन में पूछा ही जाता था। वो समझा देते थे तुम्हारे पापा जरा अलग हैं,उन्हें चुप रहना पसंद है। अवनी को तो एक ही लगन लगी थी कैसे पापा को रिझाऊँ ?

भगवान ने अवनी को मौका दिया। एक दिन उसके पापा अमन आफिस से लौटे तो तबियत ठीक नही थी उनकी। उन्हें बुखार चढ़ गया और डॉ ने टाइफाइड का निदान किया। दवा हो रही थी,अमन जी आराम कर रहे थे। पर वो जिसकी उपेक्षा करते रहे सालों तक वही मधुर चेहरा रात को उनकी जब भी आँख खुलती पैरों के पास सोया मिलता। कभी उन्हें महसूस होता आधी नींद में जैसे नन्हे हाथ उनका माथा सहला रहे हों ,पैर दबा रहे हों। दोनो पिता,बेटी लूका छुपी खेल रहे थे हृदय में स्नेह का तूफान छुपाये। अवनी  दिन में कई बार बाहर से झांकती जब देखती पापा सो रहे हैं ,तब दबे पावँ आती और माथा छू कर देखती कि बुखार तो तेज नही है। कई बार अमन उसकी आवाज सुनते दादी से जिद्द करते कि पापा के खाने के बाद ही खाये गी। अब अमन के मन मे भी अवनी के लिए अनचीन्ही सी भावनाएँ जाग उठी।

एक दिन रात को वो जगा तो अवनी उसके बेड पर पैरों के पास सोई हुई थी। उस समय अमन ने उसके जन्म के बाद उसको पहली बार गौर से देखा और उसके भोले चेहरे को मंत्रमुग्ध ही देखता रह गया। उसके हर नयन नक्स से अंजलि की झलक आ रही थी। उसे लगा अरे उसकी अंजलि तो उसके पास ही थी और वो दीवाना बना जा रहा था। उसने अवनी को बड़े ही स्नेह से उठा कर सीने से लगा लिया। उसे महसूस हुआ जलती हुई आग पर शीतल जल के छींटे पड़ गए हों। अद्भुत सुख उसे मिल रहा था,उसकी नज़रें हटती नही थीं अवनी के चेहरे से। उसकी बाहों के दबाव से अवनी जाग पड़ी। कुछ देर तो उसे कुछ समझ ही नहीं आया ,फिर जब आया तो उसे विश्वास नही हो रहा था।उसके नन्हे नाजुक होंठ कांपने लगे,आँखों से अश्रुधारा बह चली। फिर तो वो भी अपने पापा से लिपट गयी। एक पिता सन्तान सुख और एक कोमल बच्ची पिता का सानिध्य का सुख चख रहे थे। बड़े खूबसूरत पल थे।

दूसरे दिन सुबह से अमन की जिंदगी बदल गयी,घर का माहौल बदल गया।बैलून, खिलौने,चॉकलेट सब आने लगे ये तो रोज की बात हो गयी। घर मे ठहाके ,गूंजने लगे और भी जाने बाप बेटी कितने खेल खेलते थे। अवनी  की दादी और दादू ने भी चैन की सांस ली।




वक़्त के साथ दादी और दादू दोनो संसार से विदा ले गये। अवनी भी एक सुघड़ सुंदर समझदार तरुणी हो चुकी थी। वो एम बी ए कर के एक बैंक में नौकरी कर रही थी। अमन ने भी बड़ी सुंदरता के साथ प्रौढ़ावस्था को अपनाया था। बुज़ुर्ग पर सन्तुलित और दर्शनीय व्यक्तित्व के थे।

अब फिर अमन चिंतित रहने लगे।दो चिंता उन्हें सताने लगी,एक तो अवनी की शादी की दूसरी अवनी की शादी के बाद उसके बिना जिंदगी बिताने की। उन्हें लगता था अवनी का जाना उन्हें मृतप्राय कर जाए गा।

इधर अवनी ने उनकी ये भी चिंता सुलझा दी। एक दिन उसने रात के खाने पर अरविंद जो कि उसके दोस्त और बैंक में उसके सिनियर थे उन्हें खाने पर बुलाया।वो अपने दोस्तों को बुलाती रहती थी तो अमन जी को जरा अजीब नही लगा। अरविंद के साथ खाने के टेबल पर उनकी काफी

बातें हुईं।अरविंद उन्हें अच्छा ही लगा।

खाने के बाद कॉफी के साथ एक बड़े आश्चर्य का तोहफा अवनी ने अमन को बड़े साधारण ढंग से पकड़ा दिया। उसने बिना लाग लपेट कहा पापा अगले महीने मैं और अरविंद शादी कर रहे हैं और फिर आप और मैं  अरविंद के घर रहने चले जाएं गे। अरविंद की भी माँ नही हैं,पापा हैं। उसके पापा को भी मित्र की बहुत आवश्यकता है। हमारे दो घर रहें गे हम बारी बारी से दोनों जगह समय व्यतीत करें गे । 

अमन जी अवनी को तकते ही रह गए। फिर वो पल भी आ गया जब अवनी  दुल्हन बनी। उसने अपनी माँ की साड़ी पहनी और तैयार भी उन्ही की तरह उनकी फोटो देख हुई। अमन ने देखा तो उनकी आँखें नम हो गईं। सालों बाद भी उनकी अंजलि बिल्कुल उसी तरह खूबसूरत और लजीली उनके समक्ष थी। अंजलि कह रही थी देखो जी तुम्हारे लिए अपनी परछाईं छोड़ गई हूँ। सादगी और सुरुचि से विवाह संपन्न हुआ ।

         शादी के बाद की तो पूछिये ही मत  अमन और  अरविंद जी के पापा की दिनचर्या  !! बचपन लौट आया उनका,उनके बच्चे खुश थे,उनको साथ मिल गया। बहार ही बहार थी उस घर में।

शाम के 6 बजे थे। अमन जी सैंडविच और चाय तैयार कर रहे थे और अरविंद के पापा माधव जी दरवाजा खोल बच्चों का इंतज़ार कर रहे थे। इतने में गाड़ी का हॉर्न बजा, अवनी,अरविंद घर मे चाय चाय कहते घुसे। अमन जी ने जल्दी से सैंडविच और चाय पेश की फिर दोनों की दिन भर की बातों का सिलसिला। कभी ठहाके कभी किसी की चुटकी——-

मैं बगल के घर मे रहती हूँ, आप ने सुना होगा ना दीवारों के भी कान होते हैं खास कर हमारे भारत में। पर मैं तो बड़ी खुश थी अब कान लगाई रहती थी कब अंजलि के नानी बनने की खबर मिले

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