ननद रानी सयानी। – सपना बबेले 

दोस्तों शादी के बाद जब नये घर बहू का आगमन होता है ‌।

तो सासु मां तो खुश हो जाती हैं, पर ननद को अपनी भाभी आने की खुशी से ज्यादा, अपना वजूद कम होने की आशंका सताती रहती है।

सीमा के साथ भी यही हुआ। जब सीमा की शादी नहीं हुई थी, तब उसकी बड़ी ननद के पति वहीं पर बैंक में कार्यरत थे। जहां सीमा का  मायका था। ननंद ने अपने भाई के रिश्ते की बात चलाई। बड़ी-बड़ी ढींगे हांकी। सीमा के माता पिता बहुत खुश हो गए। कि हमारी लड़की का भाग्य देखो घर बैठे रिश्ता आ गया।

सीमा के माता पिता घर देखने आए, सबका व्यवहार बहुत अच्छा था बातों ही बातों में रिश्ता तय हो गया। एक माह बाद शादी का मुहूर्त निकल आया। सीमा की शादी हुई। नई बहू घर में आई। सब बहुत खुश थे, सीमा भी अपने भाग्य को सराह रही थी।

लेकिन जब दूसरी बार आई तो असली चेहरा सामने आया। सासू मां कुछ काम नहीं करती थी। ना कोई काम वाली बाई घर में लगी थी। बिचारी सीमा दिन भर काम करती और सब के ताने सुनती।

जब ननद रानी आती है तो मां-बेटी मिलकर सीमा की खूब बुराई करती । सीमा जब कुछ बोलती तो उसे झगड़ालू बहू का नाम दिया जाता। उस घर में अपनी सफाई में भी कुछ बोलने की इजाजत नहीं थी।


सीमा के पति भी कुछ नहीं बोलते, क्योंकि घर का खर्च सास ससुर उठा रहे थे। 2 सालों से बिजनेस ठप पड़ा था। सीमा का जब पहला बेटा हुआ तो मायके से लड्डू कपड़े गहने सब आए। ननंद ने उसमें भी कमी निकाल दी। सीमा का रो रो कर बुरा हाल हुआ। पर क्या करती पराधीन  थी। एक छोटी ननंद भी बहुत जिद्दी और मनमौजी थी। अगर सीमा ने उसे अपना समझ कर कुछ समझाने की कोशिश की तो चार बातें और जुड़ कर, बहुत बड़ी बन जाती थी । और सीमा को ही सब सुनना पड़ता था। सीमा बहुत दुबली हो गई थी। जिंदगी के संग इतना बड़ा खिलवाड़ जो हुआ था। लेकिन सीमा ने हिम्मत नहीं हारी। अपने पति को सलाह दी कि कब तक हम दूसरों के ऊपर निर्भर रहेंगे। आप कोई प्राइवेट नौकरी कर लीजिए। और हम भी किसी स्कूल में टीचर की नौकरी कर लेते हैं। दोनों के विचारों में सहमति हुई।

कहते हैं ना जहां सुमति  तहां सम्पत नाना।

दोनों ही काम करने लगे,और थोड़ा आत्मविश्वास भी जागा।

एक दिन फिर किसी बात पर झगड़ा हुआ।तब सीमा के पति ने कहा हम अपना खर्च खुद उठाएंगे लेकिन शांति बनी रहे घर में।

घर वाले सब चौंक गए कि अब काम कौन करेगा बहू जैसी नौकरानी कहां मिलेगी।चार बातें भी सुनती है और काम भी करती है। बड़ी ननद को फोन पर खबर मिली तो बोली , उन्हें अलग कर दो।काम वाली बाई लगाना और आराम से रहना।

सीमा अपने एक कमरे ही अपने परिवार के साथ रहने लगी।

फिर भी चैन नहीं ।पूरे  मुहल्ले में उसकी बुराई का बखान होने लगा।

सीमा के दुखों का अंत जब हुआ जब उसकी सरकारी नौकरी लग गई।टीचर बन गई सीमा।

जब खूब पैसा कमाने लगी तो सब बड़ी इज्जत देने लगे।ननद बोली पहली तनख्वाह पर हमें साड़ी चाहिए सिल्क की।

सीमा बड़े घर की संस्कारी बेटी थी। बाजार जाकर सास और ननद को साड़ी लाकर दी।

लेकिन बह अपनी ननद का सयानापन कभी नहीं भूली।

अब तो वह बातों बातों में ननद को पहले की बातों को याद दिलाती है।और ननद शर्मिंदा होकर चुप रह जाती है।

संदेश, किसी  महिला दुखी करने वाली एक महिला ही होती है।

ऐसी ही सयानी थी सीमा की ननद, अपने स्वार्थ के लिए किसी बेटी के संग छलावा किया।और फिर उसे ही सताने लगी।

सीमा दिखावटी रिश्ते को निभाती रही लेकिन दिल से कभी माफ नहीं किया।

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